पंजाब में रेल ट्रैक पर धरना दे रहे किसानों से पंजाब सरकार की वार्ता अपेक्षित नतीजे पर पहुंचती दिख रही
Punjab Farmers Protest पिछले करीब दो माह से पंजाब में रेल ट्रैक पर धरना दे रहे किसानों से रेलवे व पंजाब सरकार की वार्ता अपेक्षित नतीजे पर पहुंचती दिख रही है जिसे कायम रखना ही सभी के हित में है।
चंडीगढ़, अमित शर्मा। Punjab Farmers Protest अपनी बेबाक टिप्पणियों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दो महीने से आंदोलनरत किसान संगठनों के अड़ियल रवैये पर पिछले सप्ताह पहली बार सार्वजनिक तौर पर खुल कर नाखुशी जाहिर की। राज्य में रेल यातायात अवरुद्ध होने से राज्य के हर वर्ग को हो रहे आर्थिक नुकसान और केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के अंतर्गत वितरण के लिए जरूरी 40 लाख मीटिक टन चावल की आपूर्ति पंजाब के बजाय तेलंगाना व आंध्र प्रदेश से करवाए जाने वाले फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने आंदोलनकारियों को उनके अड़ियलपन को लेकर चेताया भी।
बातों ही बातों में बहुत हुआ.. अब और बर्दाश्त नहीं वाले लहजे में उन्होंने परोक्ष रूप से वह सब भी कह डाला जो शायद भाजपा नेता चाहते हुए भी नहीं कह पा रहे थे। यहां तक कह दिया कि किसान संगठनों को यह समझना चाहिए कि जब पूरा पंजाब किसान हित में उनके साथ खड़ा था तो ऐसे में सभी को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी भी किसान संगठनों की ही थी।
कैप्टन अमरिंदर के लहजे में आए इस बदलाव से बेशक विरोधी दलों समेत कांग्रेसी खेमों में भी असहजता और असहमति के धीमे स्वर बुलंद हुए, लेकिन इसका सीधा असर यह हुआ कि आंदोलनकारी किसान नेताओं ने अंतत: अगले एक पखवाड़े के लिए रेल रोको आंदोलन स्थगित करते हुए रेलवे को राज्य में पिछले करीब दो माह से बंद पड़ी मालगाड़ियों और यात्री ट्रेनों को बहाल करने की इजाजत दे दी। विरोध की राजनीति छोड़ अगर यही पहल अमरिंदर सिंह की सरकार ने उस समय की होती, जब किसानों ने रेल पटरियों पर स्थाई मोर्चा लगाना शुरू किया था तो न सिर्फ राज्य सरकार को होने वाले हजारों करोड़ के नुकसान से बचा जा सकता था, बल्कि व्यापार व उद्योग जगत समेत अनेक अन्य वर्गो का समर्थन भी इस आंदोलन को शायद उसी तरह जारी रहता जिस तरह आरंभ में मिला था।
खैर, दो महीने बाद ही सही, जब यह गतिरोध टूटा है तो जहां केंद्र और राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि बातचीत का यह जरिया 15 दिनों बाद भी टूटे नहीं, वहीं अगली रणनीति बनाते समय किसान जत्थेबंदियों को रेल या सड़क मार्ग अवरुद्ध कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाली नीति को नकारना होगा। उन्हें यह समझना होगा कि यदि धरने प्रदर्शन का मकसद केंद्र द्वारा बनाए कृषि कानूनों का विरोध जताना था तो वह तो कब का हो चुका है।
धरने पर बैठे किसान यूनियनों के सदस्यों को उन राजनीतिक दलों व तमाम तथाकथित किसान हितैषी बुद्धिजीवियों से भी दूरी बनानी होगी जो कृषि कानूनों के विरोध की आड़ में पराली जलाने का कानूनी अधिकार हासिल करने जैसे अन्य निजी एजेंडे इस आंदोलन में शामिल कराना चाहते हैं। चूंकि राज्य के समस्त किसान संगठन पहली बार एक मंच पर एकत्रित हुए हैं, ऐसे में उन्हें व राज्य सरकार को भी केवल दो फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म होने की शंका से पनपी संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर इस एकजुटता को उस मौके के रूप में लेना चाहिए, ताकि किसानी से जुड़े उन तमाम मुद्दों पर एकमत होकर वर्षो से लटकती आ रही कृषि नीति या फिर बिजली सब्सिडी को खत्म करने जैसे नीतिगत फैसलों पर अंतिम निर्णय लिए जा सकें, ताकि वास्तव में छोटे किसानों के हितों की रक्षा हो सके।
इत्तेफाक है या विडंबना कि किसानों के मुद्दों का झंडा बुलंद करने का दावा करने वाली यूनियनों ने आज तक कभी यह मसला ही नहीं उठाया कि सरकार की मुफ्त बिजली योजना किसानों को फायदा देने के बजाय उनका अहित करती आई है। जब कभी भी कृषि अर्थशास्त्रियों ने इस सब्सिडी योजना को तर्कसंगत बनाने के लिए राज्य सरकारों से सिफारिश की तो इन्हीं जत्थेबंदियों ने वोट बैंक के फेर में फंसी राज्य सरकारों को ऐसे हर फैसले को लंबित करने पर मजबूर किया जिसमें छोटे किसानों का फायदा था। यूं तो पंजाब सरकार 6,500 करोड़ रुपये की बिजली सब्सिडी हर वर्ष किसानों को दे रही है, लेकिन इस राशि का आधे से ज्यादा हिस्सा केवल 59 हजार ऐसे लोगों में बंट जाता है जो किसान कम, जागीरदार (जमींदार) ज्यादा हैं।
एकजुट हुए इन तमाम संगठनों के लिए अब यह एक बड़ा मौका है कि इस मुफ्त बिजली योजना को तर्कसंगत बनाने के लिए मिलकर इस कदर दबाव डालें कि राज्य सरकार इस छोटे से वर्ग पर बिजली सब्सिडी के नाम पर 3,000 करोड़ खर्च करने के बजाय इसका इस्तेमाल छोटे किसानों की न्यूनतम आय सुनिश्चित करने और मध्यवर्गीय किसानों की आय बढ़ाने के लिए करे। जैसाकि कैप्टन सरकार की ओर से गठित पंजाब किसान आयोग के चेयरमैन अजयवीर जाखड़ ने दो वर्ष से फाइलों में धूल फांक रहे कृषि नीति ड्राफ्ट में सुझाया था।
इतनी बड़ी संख्या में एक ही प्लेटफॉर्म पर इकट्ठा हुए अनेक किसान संगठनों से आज जब कैप्टन सीधे रोज खुद संवाद कर रहे हैं तो उनकी सरकार के लिए भी यह सुनहरा मौका है कि वह उन तमाम कृषि सुधारों को धरातल पर लागू करें जो पिछले वर्षो में राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव से सरकारी फाइलों तक ही सीमित रह गए थे। ठीक उसी तरह जिस तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने छह फसलों पर भावांतर योजना लागू कर राज्य के किसानों का समर्थन और विश्वास इस कदर जीत लिया कि आज राज्य का अधिकांश किसान उनकी हर बात, हर योजना पर पूर्ण विश्वास करता है।
[स्थानीय संपादक, पंजाब]