Punjab Budget 2021: राजनीतिक फर्ज निभाने के फेर में बजट से ज्यादा कर्ज बढ़ता जा रहा
Punjab Budget 2021 पंजाब कर्ज जाल में फंस चुका है। पंजाब की कर्ज सीमा 19 हजार करोड़ रुपये के आसपास है लेकिन इसी साल राज्य सरकार ने 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का ब्याज दिया गया है।
चंडीगढ़, अमित शर्मा। 11 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सोमवार को पेश किया गया पंजाब का बजट कैप्टन अमरिंदर सरकार के इस कार्यकाल का अंतिम बजट था। सो जाहिर है चुनावी एजेंडे के साथ-साथ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन में किसान-मजदूर एकता के नारों की गूंज साफ सुनाई देनी ही थी। ठीक वही गूंज जो बजट से चंद घंटे पहले मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा ‘एजेंडा-2022’ शीर्षक के तहत जारी किए सात सूत्रीय एक्शन प्लान में बड़ी स्पष्टता से प्रतिध्वनित हुई थी। चुनावी साल में पेश किया गया बजट एक तरह से पूरी तरह लोकलुभावन रहा।
आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए जनता के हर वर्ग के लिए बड़ी घोषणाएं की गईं। महिलाओं को बसों की मुफ्त यात्र, सरकारी कर्मचारियों के लिए छठे वेतन आयोग अनुसार जुलाई से वेतन, बुजुर्गो, विकलांगों को पेंशन में बढ़ोतरी, शगुन योजना के तहत अनुदान में वृद्धि..लगभग हर घोषणा में वोट बैंक पॉलिटिक्स की वही छाप साफ देखने को मिली, जो किसी भी राज्य सरकार के अंतिम बजट में अमूमन देखने को मिलती है। शुरुआती दौर से ही राज्य सरकार द्वारा समर्थित किसान आंदोलन के चलते स्वाभाविक तौर पर बजट का एक बड़ा हिस्सा किसानों को समर्पित किया गया है। किसानों और भूमिहीन मजदूरों के 1,712 करोड़ रुपये की कर्जमाफी के एलान के अतिरिक्त 7,180 करोड़ रुपये की बिजली सब्सिडी भी जारी रखने की घोषणा करते हुए ‘कामयाब किसान, खुशहाल पंजाब’ जैसे एक नए नारे के तहत अनेक उत्कृष्ट सुविधाओं का प्रविधान किया गया है।
पंजाब जैसे राज्य में चूंकि चुनावी प्रबंधन का एक अहम हिस्सा है शहरी और ग्रामीण वोट बैंक को साथ लेकर चलना। सो पिछले चार वर्षो में राज्य के बड़े शहरों में अपने ही विधायकों के मुख से ‘जट्टां दी सरकार’ का तंज ङोलते वित्त मंत्री ने इस बार नि:संदेह गांव और शहर के वोटरों में कुछ हद तक तालमेल बिठाने की कोशिश जरूर की है। जहां शहरों के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर देते हुए बजट में स्थानीय निकाय विभाग को अब तक की सबसे ज्यादा राशि आवंटित की गई है, वहीं एक साल तक कोरोना महामारी के शिकंजे में जकड़े रहे उद्योग-धंधों को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के लिए तमाम दुकानों और वाणिज्यिक संस्थानों को 365 दिन और 24 घंटे खुले रहने की छूट देकर शहरी वोटर को साधने का प्रयास किया गया है।
अब बजट की बात हो और वह भी चुनावी साल में तो जाहिर है कोई भी सरकार नया या अतिरिक्त कर लगाने की सोच भी नहीं सकती। चार वर्ष पहले कैप्टन अमरिंदर सरकार के पहले बजट में प्रदेश के आयकरदाताओं पर प्रोफेशनल टैक्स थोपने वाले वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने भी इस बजट में आम जनता पर कोई नया बोझ डालने से सीधा परहेज किया। मजेदार बात तो यह है कि पिछले चार वर्षो के दौरान ‘कंजूसी’ और ‘कठोर’ आर्थिक फैसलों पर जहां वित्त मंत्री ने माफीनामा पेश किया, वहीं इस बजट में दी गई तमाम रियायतों और लोकलुभावन फैसलों के पीछे की मंशा को यह कह कर स्पष्ट कर दिया कि ‘अपनी पार्टी को दलदल से बाहर निकालना उनका अहम फर्ज है।’
यह तो ठीक है कि वित्त मंत्री ने अपना फर्ज बता दिया है, लेकिन राज्य के वित्तीय प्रबंधन में कर्ज का जो मर्ज लाइलाज होता जा रहा है, उसके इलाज का उन्होंने कोई रोडमैप नहीं दिया। तीन दिन पहले सामने आई कैग की रिपोर्ट ने भी इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है। दरअसल पंजाब कर्ज जाल में फंस चुका है। यानी पंजाब अपनी कर्ज सीमा का जितना कर्ज ले सकता है, उससे ज्यादा तो उसे हर साल ब्याज देना पड़ रहा है। पंजाब की कर्ज सीमा 19 हजार करोड़ रुपये के आसपास है, लेकिन इसी साल राज्य सरकार ने 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का ब्याज दिया है। इसके अलावा 31 हजार करोड़ रुपये के दीर्घकालिक कर्ज किस्तें अलग हैं। समग्रता में थोड़ा बेबाकी से कहें तो कई वर्षो से हालात ऐसे होते रहे कि राजनीतिक फर्ज निभाने के फेर में बजट से ज्यादा कर्ज बढ़ता जा रहा है।
खैर, बजट बेशक चुनावी है, लेकिन आशावादी भी। अब यह आशा बेशक कर्ज के फेर में ही क्यों न फंसी हो। ठीक वही आशा जिसे वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने बजट भाषण का समापन करते हुए मशहूर शायर अल्लामा इकबाल के शब्दों में बयान करते हुए कहा कि..
नहीं हूं नाउम्मीद इकबाल अपनी किश्त-ए-वीरां से,
जरा नम हो तो यह मिट्टी बड़ी जरखेज है साकी।
[स्थानीय संपादक, पंजाब]