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Punjab Chunav 2022: राजनीतिक दलों के समक्ष घोषणापत्र पर सरकार बनाए कानूनी दस्तावेज

कई बार मांग उठती है कि घोषणापत्र को कानूनी दस्तावेज माना जाए। इससे राजनीतिक दलों के समक्ष वादे पूरे करने की बाध्यता होगी और बेतहाशा घोषणाओं पर लगाम लगेगी। राजनीतिक दलों को दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए कानून बनाना चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 01:33 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 01:43 PM (IST)
Punjab Chunav 2022: राजनीतिक दलों के समक्ष घोषणापत्र पर सरकार बनाए कानूनी दस्तावेज
घोषणापत्र को कानूनी दस्तावेज मानने की मांग हर चुनाव में उठती है। फाइल फोटो

मंजीत सिंह नारंग। हर चुनाव में हर राजनीतिक दल कई वादे करता है। इन वादों में कितने पूरे होते हैं और कितने नहीं, यह कहना मुश्किल है। ऐसा शायद ही होता है कि कोई दल अपने घोषणापत्र के सभी वादों को पूरा करता हो। इन घोषणाओं, वादों को रोकने की मांग उठती रही है लेकिन सवाल यही है कि इन्हें रोकेगा कौन?

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चुनावी घोषणाओं को रोकना न तो चुनाव आयोग के बस में है और न ही अदालत के। क्योंकि संविधान में राजनीतिक दलों की घोषणाओं को रोकने का कोई उल्लेख ही नहीं है। असल में इसी बात का फायदा राजनीतिक दल उठाते हैं और चुनाव में ऐसी-ऐसी घोषणाएं करते हैं, जिन्हें पूरा कर पाना किसी हाल में संभव नहीं होता। यह बात राजनीतिक दलों को भी पता है कि वे अगर सत्ता में आ जाएं तो अपनी घोषणाओं को पूरा कर पाना उनके लिए भी संभव नहीं। लेकिन जितना ढिंढोरा पीटते हुए घोषणाएं की जाती हैं, न चाहते हुए भी लोगों को उन पर विश्वास हो जाता है। असल बात यह भी है कि उस शोर के बीच लोग यह समझने का प्रयास करते भी नहीं हैं कि क्या संभव है और क्या नहीं। एक भ्रम का जाल बिछ जाता है। इस भ्रम के जाल में सब उलझते जाते हैं। अंत में जिन वादों पर काम नहीं होता, उनमें लोग छला महसूस करते हैं।

जनता के साथ राजनीतिक दल यह विश्वासघात न कर सकें, इसलिए उनके घोषणापत्र को कानूनी दस्तावेज मानने की मांग हर चुनाव में उठती है। चुनाव आयोग भी इस तरह की बात कहता रहा है। 2017 में इसी तरह का प्रस्ताव आया था। तब हमने इस प्रस्ताव को चुनाव आयोग को भेज दिया था। संभवत: आयोग ने भी प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेज दिया था। दरअसल राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्र को कानूनी दस्तावेज बनाने को लेकर पहले संसद में कानून बनाना होगा। कानून केवल संसद ही बना सकती है। चुनाव आयोग या कोर्ट नहीं। चुनाव आयोग या देश की सबसे बड़ी अदालत तो यह देख सकते हैं कि कानून का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है। लेकिन गलत क्या है सही क्या है ये तो कानून बनने के बाद ही पता चलेगा। जब तक केंद्र सरकार घोषणापत्र को कानूनी दस्तावेज मानने के लिए कानून नहीं बनाएगी, तब तक इन घोषणाओं पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। यह पार्टियों की इच्छाशक्ति पर निर्भर है? असल में कई राजनीतिक दल भी जानते हैं कि यदि ऐसा हुआ तो उनकी राजनीति खतरे में पड़ जाएगी।

[पूर्व अतिरिक्त मुख्य चुनाव अधिकारी, पंजाब]


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