PU व पंजाब एग्रो ने किन्नू के अवशेष से तैयार किया नया उत्पाद, पोल्ट्री फीड का करेगा काम
पंजाबी यूनिवर्सिटी (Punjabi University) पटियाला और पंजाब एग्रो चंडीगढ़ (Punjab Agro Chandigarh) ने इस अवशेेेष से एक नया उत्पाद लिमोपैन तैयार करने में सफलता हासिल की है। यह उत्पाद मुर्गियों के फीड में मिलाया जाएगा। यह मुर्गियों के लिए फायदेमंद है।
जेएनएन, चंडीगढ़। आम के आम गुठलियों के भी दाम, यानी दोहरा लाभ। अभी तक किन्नू का जूस निकालने के बाद जो अवशेष बच जाता था सिरदर्द था। इससे बीमारियां फैलने का भी खतरा रहता था, लेकिन अब यही अवशेष फायदेमंद साबित होगा। पंजाबी यूनिवर्सिटी (Punjabi University), पटियाला और पंजाब एग्रो चंडीगढ़ (Punjab Agro Chandigarh) ने इस अवशेेेष से एक नया उत्पाद 'लिमोपैन' तैयार करने में सफलता हासिल की है।
लिमोपैन को पोल्ट्री फीड (Poultry feed) में एंटी-बायोटिक्स (Anti-biotics) के रूप में डाला जा सकता है। यह फीड सप्लीमेंट (Feed supplement) के रूप में काम करेगा। पंजाबी यूनिवर्सिटी और पंजाब एग्रो ने इसे पेटेंट के लिए भी अप्लाई कर दिया है। इससे पहले हजारों टन यह अवशेष कचरे के ढेर के रूप में पड़ा रहता था। फंगस लगने के कारण यह खतरनाक बना रहता था।
मुर्गियों को बीमारी कम लगेगी, पोषक तत्व बढ़ेंगे
नैनो टेक्नोलाजी (Nanotechnology) के जरिए इसे फीड सप्लीमेंट में बदला गया है। इसको खाने से मुर्गियों को बीमारी कम लगेगी और उसके उत्पादों में पोषक तत्व (Nutrients) ज्यादा होंगे। पंजाब एग्रो के एमडी मनजीत सिंह बराड़ ने कहा कि यह विकल्प भविष्य के औद्योगिक-अकादमिक भागीदारी के लिए नया रास्ता खोल देगा। पंजाब एग्रो ने इस उत्पाद के लिए वित्तीय स्पोर्ट उपलब्ध करवाया है।
नौ साल से चल रही थी रिसर्च
इस फीड सप्लीमेंट को तैयार करने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे भवनदीप सिद्धू ने बताया कि पोल्ट्री फीड में एंटीबायोटिक्स लगातार दिए जा रहे हैं, जिसका असर मानव शरीर में भी देखने को मिलता है। हम पिछले नौ साल से इन अवशेषों को पोल्ट्री फीड के सप्लीमेंट में बदलने पर रिसर्च कर रहे हैं।
यह पूरी तरह से सुरक्षित
उन्होंने बताया कि यह उत्पाद किन्नूू के छिलकों में मौजूद फाईटोकोनस्टिटुऐट्स (Phytoconstitutes) के रोगाणुनाशक क्षमता (Disinfectant capacity) का प्रयोग करता है। उन्होंने बताया कि लुधियाना स्थित गुरु अंगद देव वेटरनरी यूनिवर्सिटी (Guru Angad Dev Veterinary University) से भी हमें काफी सपोर्ट मिली। अब हमारे पास सबसे बड़ा चैलेंज था कि कहीं इसके चूजों या मुर्गियों पर विपरीत असर भी तो नहीं पड़ रहा है। हमने इसकी जांच मोहाली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फार्मा एजुकेशन एंड रिसर्च (National Institute of Pharma Education and Research) से करवाई और पाया कि यह सुरक्षित है। उसके बाद ही इसके कामर्शियल प्रयोग के लिए जुग्गरनाट हास्पीटेलिटी सर्विसेज, पुणे भेजा गया। कंपनी जल्द ही इस पर अपना प्लांट लगाकर काम शुरू कर देगी।