चंडीगढ़ में स्मार्ट मीटर लगे नहीं, बिजली को निजी कंपनी को सौंपने की तैयारी, जानें पूरा मामला
शहर में बिजली के खराब मीटर समय पर नहीं बदला जा रहा है जिसपर भी जेईआरसी ने विभाग को कई निर्देश दिए हैं। जेईआरसी ने कहा है कि काम न करने वाले मीटरों को सप्लाई कोड रेगुलेशन्स 2018 के तहत निर्धारित समयसीमा में बदला जाना चाहिए।
चंडीगढ़, जेएनएन। प्रशासन योजना तो लागू कर देता है लेकिन उनकी याेजनाओं की गति कछुआ चाल की तरह चलती है।जबकि दावे बड़े बड़े किए जाते हैं।ऐसी ही एक योजना थी स्मार्ट मीटर लगाने की।प्रशासन ने साल 2018 के जून माह में जब स्मार्ट बिजली मीटर लगाने की योजना शुरू की थी तो कहा था कि जल्द ही पूरे शहर में मीटर लग जाएंगे इसके पीछे प्रशासन ने बिजली चोरी को रोकने को एक बड़ा कारण बताया था। काम धीमी गति से चलने के कारण ज्वाइंट इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (जेईआरसी) ने विभाग से रिपोर्ट मांगी है।
शहर में बिजली के खराब मीटर समय पर नहीं बदला जा रहा है, जिसपर भी जेईआरसी ने विभाग को कई निर्देश दिए हैं। जेईआरसी ने कहा है कि काम न करने वाले मीटरों को सप्लाई कोड रेगुलेशन्स 2018 के तहत निर्धारित समयसीमा में बदला जाना चाहिए और इसमें लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए। ऐसे में अब स्मार्ट मीटर लगाने की रिपोर्ट हर माह जेईआरसी को देनी होगी।प्रशासन अभी तक सात हजार मीटर लगा चुका है।
ट्रांसमिशन ड्रिस्टीबयूशन लासिज से जो बचत होगी उसका 50 फीसद मिलेगा आपको
प्रशासन ने बिजली का निजीकरण करने की योजना बनाई है जिसके तहत कंपनियों की बिड भी आ चुकी है। टाटा ग्रुप, रिलायंस और अडानी समेत कुल 6 कंपनियां बिजली निजीकरण के लिए बिड दे चुकी है।निजी कंपनियों द्वारा फाइनेश्यिल बिड आने के बाद चंडीगढ़ प्रशासन ने बिजली निजीकरण के लिए निकाले गए आरएफपी (रिकेवस्ट फॉर प्रपोजल) की चंद शर्तों में जो बदलाव किया है उस पर एसोसिएशन ऑफ प्रोड्यूसर ने आपत्ति जताई है। एसोसिएशन के अनुसार जो भी बदलाव किए गए हैं उसे तत्काल प्रभाव से खारिज किया जाए।मालूम हो कि चंडीगढ़ में बिजली के निजीकरण के लिए छह कंपनियों की बिड आ चुकी है।
एसोसिएशन का कहना है कि सभी बिड आने के बाद नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता। मालूम हो कि पहले जब आरएफपी निकाला गया था तो यह कहा गया था कि ट्रांसमिशन ड्रिस्टीबयूशन लासिज से जो बचत होगी उसमें 75 फीसद कंपनी को मिलेगा और 25 फीसद पब्लिक को मिलेगा जबकि ज्वाइंट इलेक्ट्रीसिटी कंपनी ने प्रशासन ने यह शेयर 50-50 फीसद कर दिया जाए। जिसके बाद इस शर्त में बदलाव कर दिया गया।