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जब नेहरू के आने की खबर मिलते ही नंगे पांव दौड़ गए थे समर्थक

आज के दौर में जहां पॉलीटिक्ल पार्टी के लीडर्स जहां खुद अपना भविष्य देखते हुए पार्टी बदलने में जरा भी नहीं हिचकते वहीं पार्टी वर्कर्स भी अपने लीडर्स के साथ सोच समझकर कदम बढ़ाते हैं

By Vipin KumarEdited By: Published: Tue, 23 Apr 2019 01:49 PM (IST)Updated: Wed, 24 Apr 2019 04:46 PM (IST)
जब नेहरू के आने की खबर मिलते ही नंगे पांव दौड़ गए थे समर्थक
जब नेहरू के आने की खबर मिलते ही नंगे पांव दौड़ गए थे समर्थक

कुराली [चेतन भगत] आज के दौर में जहां पॉलीटिक्ल पार्टी के लीडर्स जहां खुद अपना भविष्य देखते हुए पार्टी तक बदलने में जरा भी नहीं हिचकते, वहीं पार्टी वर्कर्स भी अपने नफा नुक्सान को मद्देनजर रखते हुए अपने लीडर्स के साथ सोच समझकर कदम बढ़ाते हैं। अगर देश में पिछले दौर के चुनावों एवं लीडर्स की बात करें तो नीयत हो या नीति आज के दौर में सब कुछ बदल चुका है।

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1950 के दशक की सियासत की यादों को ताजा करते हुए शहर के वरिष्ठ जनसंघी लाला तारा चंद अग्रवाल का कहना था कि उस दौर में लीडर्स की अपने समर्थकों तथा पार्टी वर्कर्स के ज़हन में अलग ही छवि विद्यमान होती थी। उस दौर में समर्थक लीडर्स की स्पीच को घंटों बैठ सुना करते थे और उनके हर एक शब्द के मायने हुआ करते थे, जिसके चलते पार्टी वर्कर्स एवं समर्थक के लिए लीडर की कही बात पत्थर की लकीर की तरह हुआ करती थी।

कार्यकर्ता में निस्वार्थ पाया जाता था सेवा भाव

तारा चंद अग्रवाल का कहना था कि आज के दौर की पॉलीटिक्स जिस तरह पूरी तरह स्वार्थी हो चुकी है। चाहे वो लीडर हो या पार्टी वर्कर हर वर्ग अपने मतलब के लिए मानो पार्टी से जुड़ा हुआ है। मतलब निकलते ही लीडर्स द्वारा उनपर भरोसा कर उन्हें जीताने में अहम भूमिका अदा करने वाले वर्कर्स एवं जनता के साथ किए लुभावने वायदों को भूलने का अब चलन ही बन गया है, पर पुराने दौर की पॉलीटिक्स ऐसी नहीं थी। उस समय में लीडर की जुबान का मूल्य हुआ करता था और उनकी कथनी एवं करनी समान हुआ करती थी। जिसके फलस्वरूप लोग उनपर बावलेपन की हद तक भरोसा करते थे और उनके इस असीम भरोसे की कदर लीडर्स की आंखों में सहज ही देखी जा सकती सकती थी।

नेहरू की एक झलक पाने को बेताब थे समर्थक

वर्ष 1957 की यादों को स्मरणीत करते हुए तारा चंद अग्रवाल ने बताया कि उस वक्त कुराली जिला अंबाला में हुआ करता था। 10 नवंबर 1957 को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू कुराली के निकटवर्ती गांव सिंघपुरा में लाइब्रेरी एवं पशु अस्पताल का नींव पत्थर रखने के लिए पहुंचने वाले थे।

प्रचार के साधनों के आभाव के बावजूद उनके कुराली आगमन की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई और उनके समर्थकों में उनका इस कदर क्रेज था कि उनके पहुंचने से घंटों पहले की उनकी एक झलक पाने की मंशा से लोग गांव ङ्क्षसघपुरा पहुंचने शुरू हो गए। उनके साथ पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप ङ्क्षसह कैरों, ज्ञानी जैल ङ्क्षसह तथा चौधरी रणबीर ङ्क्षसह हुड्डा भी पहुंचे थे। हालत यह थे कि अपने प्रिय लीडर्स को देखने के लिए उमड़ी भीड़ में अधिकांश लोग नंगे पांव ही घरों से निकल वहां पहुंचे हुए थे।


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