बिजली वितरण में प्राइवेट कंपनियों के दखल का विरोध, एसोसिएशन का दावा- बिहार, महाराष्ट्र व एमपी में फेल रहा प्रयोग
ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स एसोसिएशन इलेक्ट्रिसिटी संशोधन बिल के खिलाफ है। एसोसिएशन का दावा है कि बिहार महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में निजीकरण के प्रयोग फेल रहे हैं।
जेएनएन, चंडीगढ़। केंद्र सरकार के इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) बिल-2020 का विरोध तेज हो गया है। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। सरकार ने सभी राज्यों से इस पर अपने विचार देने को कहा है। मानसून सत्र में इसे संसद में रखा जा सकता है। एसोसिएशन ने संशोधन पर अपना नोट ऊर्जा मंत्रालय को दिया है। यह एसोसिएशन सभी बिजली बोर्ड में काम करने वाले इंजीनियरों का एक राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म है।
एसोसिएशन के नेता व पूर्व चीफ इंजीनियर पदमजीत सिंह ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहा कि 1948 में बनाए गए 'द इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई एक्ट में स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्डों के लिए तीन फीसद अतिरिक्त बिजली सुनिश्चित करने का प्रावधान था, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया। इसके बाद इलेक्ट्रिसिटी एक्ट-2003 में नियामक आयोगों के गठन का प्रावधान किया गया। इन आयोगों ने बिजली दरों में बिजली बोर्ड के लाभ का प्रावधान करना था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अब सरकार इसका निजीकरण करने जा रही है।
पदमजीत सिंह ने कहा कि बिल में मुख्य विरोध बिजली वितरण का काम प्राइवेट कंपनियों को सौंपने का है, लेकिन बिहार के भागलपुर, गया और समस्तीपुर, मध्य प्रदेश में ग्वालियर, सागर और उज्जैन, महाराष्ट्र में औरंगाबाद, नागपुर, जलगांव, झारखंड में रांची व जमशेदपुर में बिजली वितरण को निजी हाथों में देने के प्रयोग असफल रहे हैं।
सरकार ने महाराष्ट्र में एनरॉन और उड़ीसा में एईएस के अनुभवों से कुछ नहीं सीखा। ऐसा फैसला लेने से पहले भारत सरकार को बिजली क्षेत्र के निजीकरण के अब तक के अनुभव पर श्वेत पत्र लाना चाहिए। नई व्यवस्था में नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर व रीजनल लोड डिस्पेंस सेंटर को निजी कंपनियों के लिए कलेक्शन सेंटर बनाने का प्रावधान है। 'द इलेक्ट्रिसिटी कांट्रैक्ट एन्फोर्समेंट अथॉरिटी का गठन सिर्फ निजी कंपनियों के व्यावसायिक हितों को बचाने के लिए किया जा रहा है।
बिजली सब्सिडी व डीबीटी को समाप्त करना
सरकार एक ही झटके में बिजली सब्सिडी व क्रॉस सब्सिडी को खत्म करना चाहती है। पूर्व सरकारों के समय महंगे बिजली खरीद समझौतों को लागू करवाने के लिए इलेक्ट्रिसिटी ट्रिब्यूनल का गठन करने का प्रावधान किया गया है। अगर कोई विवाद है तो यह ट्रिब्यूनल ही हल करवाएगा।
राष्ट्रीय रिन्यूएबल एनर्जी पॉलिसी की जरूरत
केंद्र सरकार का लक्ष्य सौर, पवन व हाइड्रो पावर से साल 2022 तक 175 गीगावॉट ऊर्जा का उत्पादन व इसे साल 2030 तक बढ़ा कर 450 गीगावॉट करना है। केंद्र सरकार ने अब तक राज्यों को इस बिजली के वितरण की कोई योजना नहीं बताई है। उल्टा राज्यों पर पेनल्टी लगाने की तैयारी है। लागत के आधार पर बिजली दरें निर्धारित करने से 400 केवी या 220 केवी की ग्रिड से बिजली आपूर्ति वाले औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली दरें कम हो जाएंगी इससे बड़े उद्योगपतियों को लाभ व किसानों व ग्रामीणों का नुकसान होगा।