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मोहाली जिले में कुल तीन फायर स्टेशन, बड़ी आग लगे तो चंडीगढ़ और पंचकूला से मांगी जाती है मदद

मोहाली जिले में कुल तीन फायर स्टेशन हैं। ऐसे में बड़ी आगजनी की घटना हो जाए तो दूसरे राज्यों से मदद लेनी पड़ती है। हैरत की बात तो यह है कि मोहाली शहर का दायरा इतना बड़ा है और वहां कुल एक ही फायर स्टेशन है।

By Ankesh KumarEdited By: Published: Sat, 13 Mar 2021 01:27 PM (IST)Updated: Sat, 13 Mar 2021 01:27 PM (IST)
मोहाली जिले में कुल तीन फायर स्टेशन, बड़ी आग लगे तो चंडीगढ़ और पंचकूला से मांगी जाती है मदद
मोहाली जिले में कुल तीन फायर स्टेशन, बड़ी आग लगे तो चंडीगढ़ और पंचकूला से मांगी जाती है मदद।

मोहाली, जेएनएन। जिला मोहाली में अगर भंयकर आग लगी तो काबू पाना मुश्किल होगा। जिला मोहाली की ऊंची इमारतों से लेकर सरकारी इमारतें सुरक्षित नहीं है। 1978 में जब मोहाली शहर बसना शुरू हुआ था तो उस समय एक पुलिस थाना और एक दमकल विभाग का दफ्तर खोला गया था। लेकिन समय बदलने के साथ जिले में पुलिस स्टेशन की संख्या 27 से पहुंच गई है, जबकि अभी तक फायर ब्रिगेड स्टेशन तीन ही बन पाए हैं। इसमें मोहाली, डेराबस्सी और खरड़ शामिल हैं।

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करीब पांच साल पहले मोहाली के सेक्टर-78 और इंडस्ट्रियल एरिया फेज-8 में दो नए फायर स्टेशन बनाने की कवायद शुरू हुई थी। लेकिन यह प्रक्रिया फाइलों से आगे ही नहीं बढ़ पाई है। हालांकि मोहाली जिले में कई नामी इंडस्ट्रीज आ चुकी हैं। ऐसे में वहां पर आग का खतरा बना रहता है। डेराबस्सी सब डिवीजन और मोहाली एरिया में पिछले साल आग लगने की कई बड़ी घटनाएं हुई थीं, जिसमें काफी नुकसान हुआ है।

साजो सामान अति आधुनिक, पर मुलाजिमों की कमी

शहर में एक मात्र फायर स्टेशन फेज-1 में है। जबकि दो फायर स्टेशन काफी समय से प्रस्तावित हैं। यहां पर 10 फायर टेंडर हैं। इनमें अति आधुनिक हाईड्रॉलिक प्लेटफार्म वाली मशीन, रेस्क्यू टेंडर और फॉम टेंडर तक शामिल हैं। लेकिन मोहाली में मुलाजिमों की काफी कमी है। सिर्फ टेलीफोन ऑपरेटर समेत 24 मुलाजिम हैं। इनमें चार फायर अफसर हैं। नियमों के मुताबिक एक गाड़ी के साथ छह मुलाजिमों का स्टाफ रहता है। लेकिन आपातकाल में अधिकारियों को भी खुद ही गाड़ियां चलानी पड़ती हैं।

न्यू चंडीगढ़ में कोई फायर स्टेशन नहीं

खरड़ में कुछ समय पहले एक फायर ब्रिगेड की गाड़ी निकाय विभाग की तरफ से मिली है। लेकिन फायर स्टेशन अभी तक नहीं है। ऐसे में न्यू चंडीगढ़ बसाया जा रहा है। लेकिन यहां पर भी फायर सेफ्टी के कतई इंतजाम नहीं किए गए हैं। उत्तरी भारत का सबसे बड़ा कैंसर अस्पताल यहां बनने जा रहा है। लेकिन यह एरिया भी बड़ी आग लगने पर बचाव के लिहाज से सुरक्षित नहीं है। अगर यहां बड़ी आगजनी होती है तो एरिया के लोगों को चंडीगढ़ या मोहाली पर निर्भर होना पड़ता है।

नयागांव और कुराली में भी नहीं फायर टेंडर

नयागांव चंडीगढ़ के बिल्कुल साथ लगता है और यह मोहाली जिले में आता है। लेकिन बड़ी आगजनी से निपटने के लिए यहां एक भी फायर ब्रिगेड की गाड़ी नहीं दी गई है। कुराली शहर उत्तरी भारत में पटाखों के बाजार के लिए जाना जाता है। यहां भी फायर ब्रिगेड की सुविधा नहीं है। मोहाली से ही गाड़ी भेजी जाती है। अभी जीरकपुर नगर परिषद यहां फायर ब्रिगेड की बिल्डिंग के लिए कई जगह देख चुकी है। लोकल बॉडीज विभाग के अंतर्गत आने वाले नगर परिषद जीरकपुर और फायर ब्रिगेड दोनों ही एक ही विभाग की अलग-अलग शाखाएं हैं। इसके लिए जीरकपुर को फायर ब्रिगेड दस्ते के साथ हाइड्रोलिक लैडर की जरूरत है। शहर में इस समय 80 से ज्यादा ऐसी बिल्डिंग हैं जो 18 मंजिला हैं। जीरकपुर में इसलिए भी यह जरूरी है कि यहां एमसी के पास खुद की फायर ब्रिगेड को शुरू हुए एक साल हुआ है। अभी तक आगजनी की बड़ी घटना में डेराबस्सी या आसपास के शहरों की मदद से ही काम चल रहा है।


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