Good News! अब पहले से आसान होगा टीबी का इलाज, PGI चंडीगढ़ ने की नई तकनीक इजाद
इस नई तकनीक के साथ शरीर के बाहरी हिस्सों का इलाज होगा। इसे पीजीआइ के दो डॉक्टरों ने नई तकनीक का इजाद किया है।
चंडीगढ़, [विशाल पाठक]। टीबी के मरीजों के लिए एक अच्छी खबर है। अब पीजीआइ चंडीगढ़ में नई तकनीक के जरिए टीबी के मरीजों का इलाज होगा। अभी तक शरीर के अंदरुनी हिस्से की टीबी का इलाज ही सफल तरीके से किया जाता था। लेेकिन अब शरीर के बाहरी हिस्सों जैसे आंखों, जोड़ों, पेट, सिर में होने वाली टीबी के सफल इलाज के लिए पीजीआइ के दो डॉक्टरों ने नई तकनीक का इजाद किया है। इन नई तकनीक को सबसे पहले यूनिवर्सिटी आफ फ्लोरिडा ने मान्यता दी थी। लेकिन अब पीजीआइ चंडीगढ़ के दो डॉक्टरों की रिसर्च वर्क के बाद भारत में नई तकनीक को मान्यता दे दी गई है। इस तकनीक को इजाद करने वाले पीजीआइ चंडीगढ़ की डॉक्टर प्रो. कुसुम शर्मा और उनके भाई प्रो. अमन शर्मा की टीबी के इलाज की इस नई तकनीक को नई दिल्ली से पेटेंट कराया गया है।
पुरानी तकनीक से जल्द नहीं पता लगता था टीबी का
पीजीआइ के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट की प्रो. कुसुम शर्मा ने बताया कि टीबी में बैक्टीरिया की संख्या कम होने के कारण पुरानी तकनीक से टीबी की बीमारी का देरी से पता चलता था। लेकिन अब पीसीआर यानी की पॉलीमरेज चेन रिएक्शन जोकि टीबी के इलाज की नई तकनीक है। इससे जल्द से जल्द से टीबी का पता चल जाएगा अौर बेहतर तरीके से इलाज हो सकेगा। डॉ. अमन शर्मा ने बताया कि हाल ही में सेट्रल डिविजन नई दिल्ली ने इन एक्स पलमोनरी टीबी की बढ़ती समस्या को देखते हुए एक गाइडलाइंस जारी करते हुए इस समस्या पर रिसर्च के लिए प्रो. कुसुम शर्मा को चुना था। इस रिसर्च में पीजीआइ के एक्स डीन सुभाष वर्मा के नेतृत्व में काम किया गया।
नई तकनीक से ऐसे होगा इलाज
डा. कुसुम शर्मा और डा. अमन शर्मा ने बताया कि पहले पीसीआर में सिर्फ एक प्राइमर का प्रयोग किया जाता था। लेकिन नई तकनीक में अब टीबी की जांच में तीन प्राइमर का प्रयोग किया जाएगा। जिससे की जल्द ही मरीज में टीबी का पता लगाया जा सकेगा। इससे टीबी के मरीजों को जल्द इलाज मिल सकेगा।
वर्ष 2007 में इस क्षेत्र में शुरू किया था काम
डा. कुसुम शर्मा और डा. अमन शर्मा ने बताया कि वर्ष 2007 में इस तकनीक पर काम करना शुरू किया गया था। डा. अमोद गुप्ता ने आंखों की टीबी, प्रो. एमएस ढिल्लों ने जोड़ों की टीबी, प्रो. एसके सिन्हा ने पेट की टीबी, प्रो. सुदेश प्रभाकर ने सिर की टीबी और डा. सुभाष वर्मा ने पलमोनरी टीबी में अपना अहम योगदान दिया है।