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Agriculture Bill 2020 की खूबी-खामी पर ध्‍यान नहीं, बस किसान वोट बैंक की राजनीति, पंजाब के दलों में लगी होड़

Agriculture Bill 2020 पंजाब में कृषि विधेयकों की आड़ में किसान वोट बैंक की राजनीति हो रही है। सभी दलों में इसकी होड़ लगी है और विधेयक के प्रावधानों पर कोई ध्‍यान तक नहीं है

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 18 Sep 2020 10:27 AM (IST)Updated: Fri, 18 Sep 2020 03:35 PM (IST)
Agriculture Bill 2020 की खूबी-खामी पर ध्‍यान नहीं, बस किसान वोट बैंक की राजनीति, पंजाब के दलों में लगी होड़
Agriculture Bill 2020 की खूबी-खामी पर ध्‍यान नहीं, बस किसान वोट बैंक की राजनीति, पंजाब के दलों में लगी होड़

चंडीगढ़, जेएनएन। Agriculture Bill 2020: राजनीतिक दलों में कृषि विधेयकों को लेकर किसान वोट बैंक की सियासत की होड़ मची हुई है। किसी दल का ध्‍यान इन विधेयकों की खूबी-खामियों पर नहीं है, बस इसके बहाने खुद को सबसे बड़ा किसान हितैषी साबित करने की प्रतिस्‍पर्धा है। राज्य में इन पर जमकर राजनीति हो रही है। सभी दल अपनी ताकत अपने आप को किसान हितैषी और दूसरे दल को किसान विरोधी बताने में लगा रहे हैैं।

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कृषि अध्यादेश और विधेयकों में क्या है, इन्हें लाने की क्या जरूरत थी, इनमें कौन-कौन से ऐसे प्रावधान हैं जो किसानों, आढ़तियों और राज्य सरकारों के लिए नुकसानदायक या फायदेमंद हैैं, इस बारे में समझाने या बताने का राजनीतक दलों द्वारा कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। वे बस इसको लेकर किसानों में अपनी पैठ बढ़ाने की सियासत करने में जुटे हैं।

शिरोमणि अकाली दल: तीन महीने समर्थन, संसद सत्र से एक दिन पहले यू टर्न

तीन महीने तक कृषि अध्यादेशों पर स्‍पष्‍ट रुख न रखने वाला और इसका समर्थन करने वाला शिरोमणि अकाली दल (शिअद) अचानक पीछे हट गया। देश में यह पहला मामला है जब किसी दल ने पहले अध्यादेशों का समर्थन किया और बाद में रुख बदल लिया। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का वीडियो बनाकर वायरल किया गया, जिसमें वह बता रहे हैैं कि अध्यादेश किसानों के हित में हैं और कांग्रेस किसानों को गुमराह कर रही है।

वहीं, पार्टी प्रधान सुखबीर बादल ने इसके समर्थन में दो बार प्रेस कांफ्रेंस भी की। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का पत्र दिखाते हुए मीडिया को बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म न किए जाने के बारे में उन्होंने अकाली दल को पत्र लिखा था।

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इसके बाद संसद सत्र से एक दिन पहले पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में अकाली दल ने अपना स्टैंड बदल लिया। कहा गया कि जब तक किसानों के संदेह दूर नहीं होते तब तक विधेयक संसद में पेश न किया जाएं। वहीं, संसद में विधेयक पर बहस के दौरान विरोध दर्ज करवाया। दरअसल, राज्य में किसान संगठनों के विरोध के कारण शिरोमणि अकाली दल को वोट बैंक खिसक जाने का डर भी सता रहा है।

पंजाब कांग्रेस: किसानों पर दर्ज केस वापस लिए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने

वोट बैंक की राजनीति केवल अकाली दल कर रहा है, ऐसा भी नहीं है। इस मामले में कांग्रेस भी पीछे नहीं है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह लगातार इन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं। वह जानते हैं कि शिअद को हाशिए पर धकेल कर डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में किसान वोट बैंक का लाभ लिया जा सकता है। इसलिए कैप्टन ने जहां कोरोना के बावजूद मेडिकल प्रोटोकॉल को तोड़ किसानों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन के चलते उन पर दर्ज केस वापस लेने का ऐलान किया।

वहीं, किसानों से दिल्ली में धरना देने की बात की। कैप्टन ने कभी यह भी नहीं बताया कि इन विधेयकों के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई हाई पावर कमेटी में पंजाब भी शामिल रहा है। बाद में यह जरूर कहा कि पंजाब को बाद में शामिल किया गया और उसके बाद हुई बैठकों में अध्यादेशों और विधेयकों पर चर्चा नहीं हुई। इन बैठकों में वित्तमंत्री मनप्रीत बादल, कृषि सचिव काहन सिंह पन्नू भाग लेते रहे हैैं।

आम आदमी पार्टी: किसानों की हमदर्दी जुटाने में कसर नहीं छोड़ रही

आम आदमी पार्टी (आप) भी अलग से इस मामले पर राजनीति को चमका रही है। पार्टी के पास अभी खोने के लिए कुछ नहीं है और न ही वह कभी सत्ता में रही है, इसलिए वह किसानों की इस मुद्दे पर हमदर्दी जुटाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। राज्य में पंजाब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हरपाल सिंह चीमा पार्टी को लीड कर रहे हैं तो लोकसभा में पार्टी प्रधान भगवंत मान ने मोर्चा संभाला हुआ है। भगवंत मान ने तो यहां तक कह दिया कि जिस समय संसद में विधेयक पारित करने के लिए रखे गए उस समय सुखबीर बादल और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल सदन में मौजूद नहीं थे।

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