Navjot Singh Sidhu: क्रिकेट की तरह ही रहा नवजोत सिंह सिद्धू का सियासी सफर, हमेशा विवादों से नाता, पढ़ें गुरु का सफरनामा
नवजोत सिंह सिद्धू का विवादों से हमेशा नाता रहा है। वह किसी न किसी तरह सुर्खियों में बने रहते हैं। अब रोड रेज मामले में सजा सुनाए जाने के बाद एक बार फिर सिद्धू सुर्खियों में हैं। आइए पढ़ते हैं उनके सियासी सफर के बारे में...
जेएनएन, चंडीगढ़। Navjot Singh Sidhu: 34 वर्ष पुराने रोडरेज मामले में एक वर्ष सश्रम कैद की सजा सुनाए जाने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू एक बार फिर सुर्खियों में हैं। क्रिकेट हो या राजनीति नवजोत सिंह सिद्धू हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। क्रिकेट के मैदान में अपने छक्कों के लिए मशहूर रहे नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने राजनीतिक करयर की शुरुआत 2004 में भारतीय जनता पार्टी से की थी।
इससे पहले सिद्धू ने कप्तान से विवाद के बाद क्रिकेट से संन्यास ले लिया था। वर्ष 2004 में भाजपा नेता अरुण जेटली ने सिद्धू को भाजपा में शामिल किया था। सिद्धू जेटली को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे, लेकिन जब जेटली ने अमृतसर से चुनाव लड़ता तो सिद्धू उनका प्रचार करने तक नहीं आए।
नवजोत सिंह सिद्धू ने वर्ष 2004 में पहली बार अमृतसर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे रघुनंदन लाल भाटिया को एक लाख से अधिक मतों से हराया। इसके बाद रोड रेज मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले सिद्धू ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद अमृतसर लोकसभा सीट पर फिर उपचुनाव हुआ। भाजपा ने सिद्धू को एक बार फिर चुनाव मैदान में उतारा। सिद्धू ने इस चुनाव में भी शानदार जीत दर्ज की और कांग्रेस के सुरिंदर सिंगला को हराया।
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में सिद्धू फिर चुनाव मैदान में उतरे और कांग्रेस के ओपी सोनी को हराकर तीसरी बार लोकसभा पहुंचे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सिद्धू को टिकट देने के बजाय उनके राजनीतिक गुरु अरुण जेटली को मैदान में उतारा।
जेटली को अमृतसर से चुनाव लड़वाने के कारण सिद्धू नाराज हो गए। वह जेटली के प्रचार के लिए भी नहीं पहुंचे। इस चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अरुण जेटली को हराया। वहीं, सिद्धू की नाराजगी को दूर करने के लिए भाजपा ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया, लेकिन सिद्धू की नाराजगी कम नहीं हुई।
वर्ष 2017 में नवजोत सिंह सिद्धू ने अचानक राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। साथ ही उन्होंने भाजपा भी छोड़ दी। कुछ दिन तक सिद्धू अपना मोर्चा बनाने में जुटे रहे, लेकिन इसमें वह सफल नहीं हुए। आखिरकार सिद्धू वर्ष 2017 में कांग्रेस में शामिल हो गए।
वर्ष 2017 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए। इसमें सिद्धू अमृतसर पूर्वी विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। तत्कालीन कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार में सिद्धू स्थानीय निकाय मंत्री बनाए गए। अपनी महत्वाकांक्षा के कारण सिद्धू का कैप्टन अमरिंदर सिंह से मतभेद हो गया।
वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव में सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ खुला मोर्चा खोल दिया। बठिंडा में चुनाव प्रचार के दौरान सिद्धू ने खुले मंच से कैप्टन पर बादल परिवार से मिलीभगत के आरोप लगा डाले।
वर्ष 2019 में कैप्टन ने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया। इस दौरान नवजोत सिंह सिद्धू से स्थानीय निकाय विभाग छीनकर ऊर्जा विभाग दे दिया गया, लेकिन सिद्धू ने ऊर्जा विभाग का काम नहीं संभाला और उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
मंत्री पद से इस्तीफे के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने चुप्पी साध दी। लंबे समय तक सिद्धू न इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय दिखे और न फील्ड में, लेकिन जब पंजाब कांग्रेस प्रभारी की कमान उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत ने संभाली तो सिद्धू अचानक सक्रिय हो गए।
हरीश रावत ने सिद्धू व कैप्टन के बीच चल रहे शीतयुद्ध को शांत करने के लिए कदम उठाए। रावत सिद्धू को कैप्टन के समकक्ष तवज्जो देने लगे। इससे कैप्टन के लिए पार्टी में स्थितियां असहज होने लगी। 8 जुलाई 2021 को अचानक पार्टी हाईकमान ने तत्कालीन प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ को हटाकर सिद्धू को प्रदेश प्रधान की कमान सौंप दी।
पंजाब कांग्रेस की कमान मिलने के बाद सिद्धू अपने शक्ति प्रदर्शन में जुट गए। 19 जुलाई 2021 को सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को ताकत दिखाई, 5 मंत्री समेत 35 विधायकों के साथ बैठक की। इसके बाद कैप्टन को सीएम पद से हटाने की पटकथा लिखी जाने लगी।
24 जुलाई 2021 को चार मंत्री और एक विधायक परगट सिंह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत की शुरुआत की। उन्होंने कैप्टन के खिलाफ अविश्वास जताया।
18 सितंबर 2021 को तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने देर रात को ट्ववीट कर 19 सितंबर को कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई। बिना कैप्टन की सहमति के विधायक दल की बैठक बुलाने पर कैप्टन नाराज हो गए और उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया।
19 सितंबर 2021 को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में नए सीएम के नाम का फैसला नहीं हो सका। 20 सितंबर को फिर सीएम पद के नाम के लिए मंथन किया गया, जिसमें सुनील जाखड़ के नाम पर मोहर लगी, लेकिन फिर अचानक अंबिका सोनी के एक बयान ने जाखड़ को इस पद से दूर कर दिया।
सबसे बड़ी बात यह रही कि सीएम पद के लिए सिद्धू का नाम नहीं उभरा। विधायक उनके पक्ष में नहीं थे। इससे सिद्धू मन ही मन में आहत हो गए। पार्टी ने दलित चेहरे चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर दांव खेला और चन्नी को सीएम बना दिया गया।
चन्नी के सीएम बनने के तीन-चार दिन तक सिद्धू चन्नी के इर्द-गिर्द ही नजर आए। सिद्धू चाहते थे कि चन्नी डमी सीएम बनें और सारे फैसले वह (सिद्धू) लें, लेकिन चन्नी ने ऐसा नहीं किया। 28 सितंबर को अचानक नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि कुछ दिनों बाद सिद्धू ने इस्तीफा वापस ले लिया।
पंजाब कांग्रेस प्रधान के रूप में सिद्धू अपने ही सीएम के लिए मुश्किलें खड़ी करते रहे। पार्टी ने चुनाव मैदान में चन्नी के नेतृत्व में उतरने का फैसला किया, लेकिन चुनाव में पार्टी की बुरी गत हुई। पार्टी 18 सीटों पर सिमटकर रह गई।
विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद कांग्रेस ने नवजोत सिंह सिद्धू से इस्तीफा ले लिया और युवा चेहरे अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग को प्रधान पद की कमान सौंप दी। वहीं, सिद्धू ने भले ही प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन वह प्रधान के समकक्ष अपने कुनबे को मजबूत करने में जुटे हैं। अब सिद्धू रोडरेज मामले में घिर गए हैं। अब यह भविष्य के गर्भ में छिपा है कि आगे क्या होता है...