चंडीगढ़ में मुनि विनय कुमार आलोक बोले- दूसरे के लिए कुछ करने से पहले खुद की पहचान करना जरूरी
मुनि विनय कुमार आलोक ने सेक्टर-24 में आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमें खुद की इंद्रियों के अधीन नहीं बल्कि उन्हें खुद के अधीन रखने की जरूरत है। यदि हमारी इंद्रियां हमारे वश में होगी तभी हम खुद के कर्म को कंट्रोल कर सकेंगे।
चंडीगढ़, जेएनएन। दैनिक जीवन में हर परिस्थिति का आकलन करने के लिए और उचित ढंग से शरीर का संचालन करने के लिए ज्ञानेंद्रियों का उपयोग करना अनिवार्य है। हमें खुद की इंद्रियों के अधीन नहीं बल्कि उन्हें खुद के अधीन रखने की जरूरत है। यह शब्द मुनि विनय कुमार आलोक ने सेक्टर-24 में आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए कहे।
उन्होंने कहा यदि हमारी इंद्रियां हमारे वश में होगी तभी हम खुद के कर्म को कंट्रोल कर सकेंगे। यदि इंद्रियां हमारे नियंत्रण नहीं होती तो हम उनका सही उपयोग नहीं कर पाते कर पाते हैं, उल्टा इंद्रियों हमें उलझा कर रखती है। हमें स्वयं की पहचान करनी बहुत जरूरी है क्योंकि ब्रह्मानुभूति से ही आत्मानुभूति सम्भव है। स्थिर परमात्मा से जीवन में स्थिरता, शान्ति और सन्तुष्टि जैसे दिव्य गुण आते हैं। परमात्मा पूरे ब्रह्माण्ड का कर्ता है इसकी अनुभूति हर कार्य को सहजता से स्वीकार करने की अनुभूति देती है। परमात्मा का आधार लेने से जीवन में उथल-पुथल सन्तुष्टि में परिवर्तित हो जाती है।
मुनि विनय कुमार ने कहा कि लोग बुरी आदतों को दूर करने में पूरजोर प्रयास नहीं करते। बुरी आदतों से लड़ना तब तक सहज नहीं, जब तक आपने उन पर अच्छी तरह सोच-विचार न किया हो। मान लें कि आपको क्रोध जल्दी आता है। तो क्रोध का त्याग करने में अधिक सहायता इससे मिलेगी कि आप मन की शांति पर विचार करें और उसे बढ़ाने का प्रयत्न करें। दुर्गुणों को दूर करने की भेंट में सदगुणों का विकास करना अत्यंत सरल है। दुनिया में ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं होगा, जिसके अंदर कोई आदत न हो क्योंकि आदतें मनुष्य जीवन का एक अभिन्न पहलू हैं। जो हर पल व्यक्ति के स्वभाव में शामिल रहती हैं।
उन्होंने कहा प्रत्येक मनुष्य अपनी आदतों के अनुसार ही चिंतन करता है, इच्छाएं संजोता है और दूसरों के साथ व्यवहार करता है। यदि हम आदत के शब्दकोश अर्थ को देखें तो उसमें यह बताया गया है कि ऐसा कुछ जो आप अक्सर और नियमित रूप से करते हैं, कभी-कभी यह न जानते हुए कि आप यह कर रहे हैं। उसे आदत कहते हैं। यदि सरल भाषा में इसे परिभाषित करने जाएं तो आदतों को अनैच्छिक कार्यों के रूप में वर्णित कर सकते हैं क्योंकि वह एक तरह का स्वचालित व्यवहार है। मसलन जब हम किसी व्यक्ति से पूछते हैं कि आप इतना जोर से क्यों बोलते हो कि आस-पास का माहौल ही अशांत हो जाता है। तो वह कहेगा मेरी पहले से आदत है। ऐसा कहकर वह यह कहना चाहता है कि वह जानबूझकर या सोच-समझकर ऐसा नहीं करता परंतु स्वाभाविक ही उससे हो जाता है।