चंडीगढ़ में बोले मुनि विनय कुमार आलोक- संस्कारों को उपजाने की कारगार भूमि है बाल अवस्था
चंडीगढ़ में मुनि विनय कुमार आलोक ने सेक्टर 24 स्थित अणुव्रत भवन के सभागार में बोलते हुए कहा कि बालकों में संस्कार निर्माण हेतु ज्ञानशाला का माध्यम बहुत महत्वपूर्ण है। इसी ज्ञानशाला से निकलने वाले बालक कई मुनि बन गए कई अच्छे श्रावक नागरिक बन गए।
चंडीगढ़, जेएनएन। बाल्य अवस्था ही ऐसी अवस्था है जिसमें सद संस्कारों का बीजारोपणा होता है। आगे चलकर वही राष्ट्र के लिए फलदार वृक्ष, छायादार वृक्ष होते है जो राष्ट्र को छाया और फल देते है। संस्कारों के अभाव में लोकतंत्र कोई मायने नहीं रखता। यह शब्द मुनि विनय कुमार आलोक ने सेक्टर 24 स्थित अणुव्रत भवन के सभागार में कहे। उन्होंने कहा कि बालकों में संस्कार निर्माण हेतु ज्ञानशाला का माध्यम बहुत महत्वपूर्ण है। इसी ज्ञानशाला से निकलने वाले बालक कई मुनि बन गए कई अच्छे श्रावक नागरिक बन गए। हर बालक यह प्रत्यन करे कि मुझे देश हित के लिए कार्य करना है।
जीवन के प्रति किसी मलाल का न होना ही आत्मिक शांति और सहजता की दशा है। जब यह दशा उपलब्ध हो तो आसपास बिखरे हुए संसार के अच्छे-बुरे का द्वंद्व मायने नहीं रखता। यह विरोधाभास प्रतीत होता है, पर जब बाहरी चीजों पर हमारी आतंरिक निर्भरता समाप्त हो जाती है, तब जीवन की बाहरी-भीतरी स्वाभाविक अवस्था अपने शुद्ध रूप में प्रकट होती है। जिन वस्तुओं, व्यक्तियों और परिस्थितियों को हम अपनी प्रसन्नता के लिए अनिवार्य मानते हैं, वह हमारी ओर निष्प्रयास ही आने लगती हैं। हम उनका आनंद मुक्त रूप से उठा सकते हैं, जब तक वह टिकी रहें। सृष्टि के नियमों के अंतर्गत वे सभी वस्तुएं और व्यक्ति कभी न कभी हमारा साथ छोड़ ही देंगे। आने-जाने का चक्र चलता रहेगा, लेकिन उन पर निर्भरता की शर्त टूट जाने पर उनके खोने का भय नहीं सताएगा।
मुनि ने कहा कि जीवन की सरिता स्वाभाविक गति से बहती रहेगी यदि संसार दिखावे की भक्ति कर रहा है तो हर कोई एक दूसरे से बढकर दान पुण्य व धर्म कर्म की बाते करते रहते है, लेकिन जो सब ज्ञाताओं का ज्ञाता है उसके आगे अगर चतुर चालाकियां व दिखावा किया जाए तो सब बेकार है। बेशक हम संसार मे किसी भी स्थान पर चले जाए लेकिन परमात्मा की नजरो से नही बच सकते। जो परमार्थ दिखावे के लिए होता है, वह स्वार्थ से भी बुरा है और जो स्वार्थ सबके हित में हो, वह परमार्थ से भी अच्छा है। हम जितनी ऊंचाइयों के साथ देखते हैं, स्वार्थ को उतनी ही हेय दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन मेरा मानना है कि अगर नकली है तो परमार्थ भी बुरा है और अगर सच्चा है तो स्वार्थ भी अच्छा है। वास्तव में, जो परमार्थ सिर्फ दिखावे के लिए किया जाता है, वह नकली परमार्थ है। हमे अपने ईश्वर के प्र्रति स्वार्थी होना होगा इसके लिए हमे संसारिक मोह माया,भोग बिलास आदि को सबकुछ न मानकर ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा भक्ति अपनानी होगी। सच्चा स्वार्थी बनने के लिए ऐसी दृष्टि चाहिए कि हम स्वभावगत परमार्थी को समझ पाएं।
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