मुनि विनय कुमार आलाेक बोले- मित्रता ऐसी भावना है जो दो दिलों को आपस में जोड़ती है
मुनि विनय कुमार आलोक ने अणुव्रत भवन सेक्टर-24 के सभागार में प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि मित्रता बड़ा ही प्यारा शब्द है क्योंकि इसे खुन कर और निभाकर सुख की अनुभूति होती है। मित्रता की कोई परिभाषा नहीं है इसको शब्दों में बांधा नहीं जा सकता।
चंडीगढ़, जेएनएन। मित्रता ऐसी भावना है जो कि दो दिलों को आपस में जोड़ती है। मित्र का सानिध्य हमें सुखद लगता है तथा हम स्वयं को सहज महसूस करते हैं, इसलिए अपने मित्र से अपना दुख सुख बांटने में जरा भी झिझक नहीं होती, बल्कि अपने मित्र से अपना दुख बांटकर हल्का महसूस करते हैं और सुख बांटकर सुख में और भी अधिक सुख की अनुभूति करते हैं। यह शब्द मुनि विनय कुमार आलोक ने अणुव्रत भवन सेक्टर-24 के सभागार में कहे। उन्होंने कहा कि वैसे तो कहा जता है कि मित्रता में जाति, धर्म, उम्र तथा स्तर नहीं देखा जाता, किन्तु मेरा व्यक्तिगत अनुभव कि मित्रता यदि समान उम्र, सामान स्तर, तथा रूचि के लोगों में अधिक गहरी होती है तो वह भी स्वाभिक है।
मुनि विनय कुमार आलोक ने कहा कि मित्रता बड़ा ही प्यारा शब्द है क्योंकि इसे खुन कर और निभाकर सुख की अनुभूति होती है। मित्रता की कोई परिभाषा नहीं है, इसको शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। सच्चा मित्र एक दवा की तरह है जो हमेशा असरदार होता है। बचपन की मित्रता, जवानी की मित्रता, बुढ़ापे की मित्रता- हर उम्र में मित्र की आवश्यकता वैसे ही जरूरी है जैसे वातावरण में हवा की।
मित्र हमें हमेशा सही राह दिखाता है, सुख दु:ख में साथ निभाता है। कृष्ण और सुदामा, अर्जुन और कृष्ण, विभीषण और सुग्रीव की राम से मित्रता- ये मित्रता के अनोखे उदाहरण हैं।मित्र को सुख दु:ख का सहभागी माना गया है। एक अच्छे मित्र की पहचान विपत्ति में ही की जा सकती है। तुलसीदास ने भी मित्र की परीक्षा आपत्ति काल में ही बताई है 'धीरज धरम मित्र अरु नारी, आपद्कालि परखिए चारि। जीवन में अच्छा मित्र मिलना, सागर में मोती मिलने के बराबर है। लोग तो बहुत मिल जाते हैं पर उनमे से मित्र मिलना बहुत कठिन है और जब वह मिल जाता है तो जीवन के अंधेरे में रोशनी मिल जाती है।