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निशाने पर पंजाब, हकीकत में Uttar Pradesh व Haryana के शहर ज्यादा Polluted

दिल्ली सरकार राजधानी में प्रदूषण के लिए पंजाब के किसानों को दोषी ठहराने में लगी है। हकीकत यह है कि पंजाब के मुकाबले हरियाणा और यूपी में पराली को आग ज्यादा लगाई जा रही है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 18 Oct 2019 01:23 PM (IST)Updated: Fri, 18 Oct 2019 08:55 PM (IST)
निशाने पर पंजाब, हकीकत में Uttar Pradesh व Haryana के शहर ज्यादा Polluted
निशाने पर पंजाब, हकीकत में Uttar Pradesh व Haryana के शहर ज्यादा Polluted

चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। दिल्ली सरकार एक बार फिर से राजधानी में प्रदूषण के लिए पंजाब के किसानों को दोषी ठहराने में लगी हुई है। हकीकत यह है कि पंजाब के मुकाबले हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली को आग ज्यादा लगाई जा रही है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इन दिनों दिल्ली के आसपास लगते उत्तर प्रदेश और हरियाणा के शहरों में प्रदूषण का स्तर पंजाब से काफी ज्यादा है। कुछ शहरों में तो पंजाब के मुकाबले प्रदूषण का स्तर डेढ़ से दो गुना ज्यादा है। हरियाणा की बात करें तो माना जा रहा है कि वहां पूरा प्रशासनिक तंत्र विधानसभा चुनाव करवाने में व्यस्त है। इसलिए पराली जलाने वाले किसानों पर सख्ती नहीं हो पा रही है।

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पिछले 24 घंटों में प्रदूषण काफी ऊपर नीचे हो रहा है। इसके बावजूद पंजाब में एक भी शहर ऐसा नहीं है जहां प्रदूषण संतोषजनक मानक से बहुत ज्यादा हो, जबकि हरियाणा में धान पैदा करने वाले जिले खराब स्थिति वाले वर्ग में चले गए हैं। दरअसल हरियाणा में विधानसभा के आम चुनाव होने के कारण सारी सरकारी मशीनरी चुनाव के काम में व्यस्त है जिसका फायदा राज्य के किसान उठा रहे हैं। पराली जलाने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन उन पर सख्ती करने वाला कोई नहीं है।

भारतीय किसान यूनियन के प्रधान बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि ऐसा लगता है कि पंजाब के किसानों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को पराली जलाने से रोकने की कोई बात नहीं की जा रही है। उन्होंने कहा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सामने भी हमने यह पक्ष रखा था कि पराली संभालने में किसानों का प्रति एकड़ छह हजार रुपये का खर्च आ रहा है, इसलिए उन्हें आग लगाना ज्यादा आसान लगता है।

उन्होंने कहा कि हमारी मांग थी कि एनजीटी केंद्र सरकार को निर्देश दे कि किसानों को दो सौ रुपये प्रति क्विंटल अवशेष प्रबंधन खर्च दिया जाए, लेकिन एनजीटी ने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया। इससे साफ लग रहा है कि पंजाब के किसानों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है और हर किस्म के प्रदूषण के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। हर तरह की पाबंदियां भी उन्हीं पर लादी जा रही हैं, जबकि केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है।

पंजाब के शहरों की स्थिति

अमृतसर में 16 अक्टूबर को एयर क्वालिटी इंडेक्स (पीएम 10) 140 था जो 17 अक्टूबर को शाम चार बजे की रिपोर्ट के अनुसार 104 रह गया है। इसी तरह जालंधर में यह 181 से 200 हो गया। खन्ना में 119 से 126, लुधियाना में 185 से 236 पटियाला में 113 ,औद्योगिक नगरी मंडी गोबिंदगढ़ में 96 है।

हरियाणा में अंबाला की स्थिति ही संतोषजनक

अगर हरियाणा के शहरों की बात करें तो अंबाला में ही स्थिति कुछ संतोषजनक है जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स 184 है। करनाल में यह 322, कुरुक्षेत्र में 288, कैथल में 260, पानीपत में 347 और यमुनानगर में यह 294 है।

उप्र में नोएडा का बुरा हाल

दिल्ली के आसपास के उत्तर प्रदेश के शहरों का हाल भी हरियाणा से अलग नहीं है। नोएडा में एयर क्वालिटी इंडेक्स 326, गाजियाबाद में 318 रहा, जबकि बुलंदशहर में यह 260 और बागपत में 307 है। 

प्रदूषण का मानक (पीएम 10 : एयर क्वालिटी इंडेक्स)

  • सामान्य : 0 से 100 तक
  • खराब : 101 से 350 तक
  • बहुत खराब : 351 से 700 तक

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