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उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने इसरो चेयरमैन डॉ. के सिवन को विज्ञान रत्न की डिग्री देकर किया सम्मानित

पंजाब यूनिवर्सिटी में दीक्षा समारोह में 1301 स्टूडेंट्स को पीएचडी एमफिल एमए बीए की डिग्रियां गोल्ड मेडल व मेरिट सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया

By Edited By: Published: Sun, 28 Apr 2019 06:49 PM (IST)Updated: Mon, 29 Apr 2019 03:04 AM (IST)
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने इसरो चेयरमैन डॉ. के सिवन को विज्ञान रत्न की डिग्री देकर किया सम्मानित
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने इसरो चेयरमैन डॉ. के सिवन को विज्ञान रत्न की डिग्री देकर किया सम्मानित

जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब यूनिवर्सिटी का रविवार को 68वां दीक्षा समारोह आयोजित किया गया। जिसमें 1301 स्टूडेंट्स को पीएचडी, एमफिल, एमए, बीए की डिग्रियां, गोल्ड मेडल व मेरिट सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया गया। मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शिरकत की। जिनके साथ प्रशासक वीपी सिंह बदनौर, वाइस चांसलर प्रो. राजकुमार, रजिस्ट्रार प्रो. करमजीत और डीन शंकरजी झा मौजूद रहे।

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समारोह में देश के रॉकेट नाम से प्रसिद्ध इसरो के चेयरमैन डॉ. के सिवन को विज्ञान रत्न की डिग्री देकर भी सम्मानित किया गया। जबकि डिग्री इन लिटरेचर को हासिल करने के लिए इन्फोसिस की ट्रस्टी सुधा मूर्ति मौजूद नहीं हुई। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने पीयू के पूर्व एलुमनी का हवाला देते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, इंद्र कुमार गुजराल, केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज, राज्यपाल किरण बेदी, अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला समेत विभिन्न हस्तियां पीयू से ही पढ़कर देश और विदेश में अपना प्रभुत्तव स्थापित कर पाई हैं। इस प्रकार के स्टूडेंट्स पीयू को ज्यादा से ज्यादा तैयार करने चाहिए।

दूसरे देशों में जाने के बजाय स्वदेश को दें तरजीह

उन्होंने स्टूडेंट्स से भी अपील की कि पीयू विश्व की बेहतरीन यूनिवर्सिटीज में से एक है। यहां से डिग्री लेकर दूसरे देश में जाकर काम करने का कोई फायदा नहीं है। दूसरे देश में यदि जाना भी है, तो कुछ समय के लिए जरूर जाओ, लेकिन वहां पर जाकर रुको नहीं, भारत माता की सेवा करो। इसके अलावा उन्होंने स्टूडेंट्स से मातृभाषा से प्यार करने की भी प्रेरणा दी। विदेशों का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां के लोगों ने इंग्लिश में पीएचडी की होती है, लेकिन वे दूसरे देश के व्यक्ति से बोलने के लिए भी अपनी मातृभाषा का इस्तेमाल करते हैं। हमें भी हिंदी के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। हिंदी भाषा को उन्होंने नजर की संज्ञा दी, जबकि दूसरी भाषाओं को चश्मे का नाम दिया। यदि नजर काम नहीं करेगी, तो चश्मे भी जचते नहीं है।

सीनेट-सिंडीकेट सदस्यों को लगाई लताड़

उपराष्ट्रपति ने पीयू की सीनेट और सिंडीकेट सदस्यों को भी फटकार लगाई। उन्होंने कहा कि दोनों ही कमेटियों का काम एकेडमिक स्तर को बढ़ाना है। एकेडमिक काम के अलावा कमेटियों के सदस्यों को राजनीति पूरी तरह से बंद कर देनी चाहिए। जब राजनीति बंद होगी, तो पीयू निश्चित तौर पर विकास करेगी और देश के विकास में भागीदार बनेगी।

सफल बनने के लिए कान्वेंट स्कूल में जाना जरूरी नहीं

डिग्री हासिल करने वाले स्टूडेंट्स को वेंकैया नायडू ने कहा कि यदि सफल बनना है, तो उसके लिए जरूरी नहीं है कि आप कान्वेंट स्कूल में पढ़े हों। आज आपको डिग्री मिल रही है, जिसके लिए आपके माता-पिता ने बलिदान दिया है। टीचर्स ने मेहनत की है और आप यहां इस डिग्री के लिए पहुंचे हो। बहुत सारे स्टूडेंट्स के अंदर हीन भावना आ जाती है। उन्हें लगता है कि वह कान्वेंट स्कूल में नहीं पढ़े, जिसके कारण सफल इंसान नहीं बन सकते है। मैं खुद किसान का बेटा हूं। कभी कान्वेंट स्कूल नहीं गया, लेकिन आज उपराष्ट्रपति हूं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम कभी कान्वेंट स्कूल नहीं गए थे। इसी प्रकार से सैकड़ों ऐसे लोग हैं, जो कि सफल हैं, लेकिन कान्वेंट स्कूलों में नहीं पढ़े। सफलता के लिए टैलेंट और मेहनत करने की बहुत ज्यादा जरूरत है।

राजनीति के बजाय पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दें

नायडू ने कहा कि भारत को कभी कम नहीं समझना चाहिए, क्योंकि हम विश्व गुरु हैं। हमें इस बात का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कैंपस में पढ़ाई-लिखाई को बढ़ावा देने के लिए किसी प्रकार की पॉलिटिक्स न करने के लिए भी कहा। उपराष्ट्रपति ने कहा कि विद्यार्थी विदेश के बजाय भारत में ही सेवाएं दें और अपनी मातृभाषा में सेवा करें।

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