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अपने दम पर लिखी अपनी किस्मत, पाकिस्तानी धावक को हराने के बाद भी रोये थे मिल्खा सिंह

उड़न सिख पद्मश्री मिल्खा सिंह बताते थे कि उनका बचपन और जवानी ऐसे माहौल में बीते थे कि उन्हें एथलेटिक्स की स्पेलिंग तक नहीं आती थी। सेना में जाने के बाद उन्हें अच्छे कोच मिले जिन्होंने ऐसा तराशा की उनके नाम के आगे फ्लाइंग सिख लग गया।

By Edited By: Published: Sat, 19 Jun 2021 03:59 AM (IST)Updated: Sat, 19 Jun 2021 10:52 AM (IST)
अपने दम पर लिखी अपनी किस्मत, पाकिस्तानी धावक को हराने के बाद भी रोये थे मिल्खा सिंह
खुद पर बनी बॉलीवुड फिल्म भाग मिल्खा भाग को देख भावुक हुए थे मिल्खा सिंह। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, जेएनएन। Milkha sing passed away: अक्सर हर किसी से मुस्करा कर मिलने वाले मिल्खा सिंह अंदर से बेहद संजीदा इंसान थे। मिल्खा सिंह खुद बताते थे कि उनके जीवन पर बनी बॉलीवुड फिल्म भाग मिल्खा भाग में उनके जीवन का पांच फीसद संघर्ष भी नहीं दिखाया गया है। जीवनभर के संघर्ष को आप दो-तीन घटों की फिल्म में नहीं समेट सकते हैं। मेरे लिए हर दिन चुनौतीपूर्ण रहा। बचपन में मेरे सामने मेरे परिवार को मार दिया गया, बचपन से लेकर जवानी तक मैंने गरीबी में धक्के खाए। बावजूद मैंने कभी हार नहीं मानी, हर चुनौती को खुशी-खुशी स्वीकार किया और अपनी किस्मत को मेहनत से बदला।

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मिल्खा सिंह के खेल का सफर

उड़न सिख पद्मश्री मिल्खा सिंह बताते थे कि उनका बचपन और जवानी ऐसे माहौल में बीते थे कि उन्हें एथलेटिक्स की स्पेलिंग तक नहीं आती थी। सेना में जाने के बाद उन्हें अच्छे कोच मिले, जिन्होंने ऐसा तराशा की उनके नाम के आगे फ्लाइंग सिख लग गया। मिल्खा सिंह ने अपने खेल करियर में 1958 के एशियाई खेलों में 200 मीचर (21.6 सेकेंड) व 400 मीटर ( 46.6 सेकेंड) में गोल्ड मेडल जीते। 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मेडल जीता। 1962 की एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीता। रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह चौथे स्थान पर रहे।

इन पलों में कमजोर पड़े थे मिल्खा सिंह

मिल्खा सिंह 91 वर्ष के थे। जब जीवित थे तो अपनी जीवन यात्रा के बारे में बात करते हुए बताते थे कि उनकी दौड़ हमेशा ही मुश्किल रही, बावजूद अपने जीवन में कभी नहीं रोये। उनके जीवन में सिर्फ पाच ऐसी घटनाएं थी, जब वह अपनी आंखों से आंसू नहीं रोक पाए। पहली बार 1947 में बंटवारे के दौरान आखों के सामने परिजनों की हत्या हुई तब वह खूब रोये थे। दूसरी बार 1960 में रोम ओलंपिक में जब वह मेडल जीतने से चूक गए थे। तीसरी बार पाकिस्तान में धावक अब्दुल बासित को पाकिस्तान में हराया तो भी वह बहुत रोये थे। जीतने के बावजूद बंटबारे का सारा दर्द दोबारा उनकी आखों के सामने आ गया था, हालाकि यह खुशी के आंसू थे, लेकिन मेरे लिए यह आसान नहीं था। 1958 में जब कॉमनवेल्थ गेम्स में जब गोल्ड मेडल जीता तो भी मेरी आखों में खुशी के आंसू थे। आखिरी बार मेरी आखों में आंसू 2013 में फिल्म भाग मिल्खा भाग को देखकर आए थे। इस फिल्म में अपने जीवन के अहम पलों को पर्दे पर देखकर मैं भावुक हो गया था। इसके अलावा मेरे जीवन में जो भी मुझे मिला उसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया।


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