एमसीएम चंडीगढ़ में इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस के अवसर पर करवाई स्लोगन लेखन प्रतियोगिता
चंडीगढ़ सेक्टर-36 एमसीएम कॉलेज में इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस के अवसर पर राष्ट्रीय स्तर की स्लोगन लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया। प्रतियोगिता में 63 प्रतिभागियों ने भाग लिया। सभी प्रतिभागियों को ई-प्रमाण पत्र दिया गया और विजेताओं को नकद पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
चंडीगढ़, जेएनएन। मेहर चंद महाजन डीएवी कॉलेज फॉर वुमेन सेक्टर-36 की गीतांजलि परामर्श हेल्पलाइन समिति ने इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस के अवसर पर एक राष्ट्रीय स्तर की स्लोगन लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया। इस वर्ष इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस की थीम कीप काम, स्टे वाइज, बी काइंड रखी गई थी। इस गतिविधि का उद्देश्य वैश्विक समुदाय में चेतना और संवेदनशीलता को बढ़ाकर समाज में खुशी के महत्व के प्रति जागरूक करने और कोरोना महामारी के समय में मानवीय उपलब्धियों का उत्सव मनाने के लिए किया गया। प्रतियोगिता में 63 प्रतिभागियों ने भाग लिया। सभी प्रतिभागियों को ई-प्रमाण पत्र दिया गया और विजेताओं को नकद पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
स्लोगन लेखन प्रतियोगिता के अलावा साइकोलॉजिकल फर्स्ट एड फॉर एंग्जाइटी एंड डिप्रेशन इन यूथ विषय पर एक प्रासंगिक कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला का संचालन कॉलेज के पीजी डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. निताशा खेहरा ने किया। जिसमें उन्होंने कहा कि कोरोना वैश्विक महामारी जैसी आपदाओं के दौरान युवाओं की जरूरतों को प्राथमिकता देना अत्यावश्यक है। क्योंकि उन्हें मनोवैज्ञानिक आघात का अनुभव हो सकता है जो अवसाद, चिंता विकार, निराशा, भय, अकेलापन, मादक द्रव्यों का सेवन या आत्महत्या में विकसित हो सकता है।
उन्होंने कहा कि आमतौर पर हम डिप्रेशन एवं एंग्जाइटी को उतनी गंभीरता से नहीं लेते जितनी जरूरत है और इस कारण युवाओं को सही समय आवश्यक मानसिक चिकित्सा परामर्श एवं मदद नहीं मिल पाती। यही वजह है कि आजकल युवाओं के बीच एंग्जाइटी डिसऑर्डर के मामले बढ़ रहे हैं। इस कार्यशाला में मानसिक स्वास्थ्य प्राथमिक चिकित्सा प्रदाताओं के रूप में स्वयं तथा साथियों में प्रारंभिक लक्षण पहचान के लिए अवसाद और विभिन्न प्रकार के चिंता विकारों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी शामिल थी।
डॉ. खेहरा ने शारीरिक, व्यवहारिक और भावनात्मक चेतावनी संकेतों पर भी चर्चा की, जिन्हें अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे समय के साथ स्थिति को और चिंताजनक बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न बायोप्सीकोसियल कारणों के कारण चिंता विकार और अवसाद उपजते हैं। उन्होंने कार्यशाला के दौरान शारीरिक स्वास्थ्य या दीर्घकालिक चिकित्सा स्थितियों, नशीली दवाओं या शराब की लत, धमकाने या अस्थिर पारस्परिक संबंधों, उपेक्षा या भावनात्मक दुरुपयोग, पर्यावरण तनाव, परिवार इतिहास, बचपन के अनुभव, व्यक्तित्व लक्षण सहित विभिन्न कारकों के प्रभाव पर भी चर्चा की।