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पंजाब में 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को होगी मुश्किल, गले की फांस बन सकते हैं ये मुद्दे

पंजाब में विधानसभा चुनाव वर्ष 2022 की शुरुआत में होने हैं। सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए इस दौरान कुछ मुद्दे गले की फांस बन सकते हैं। बेअदबी मामलों पर कार्रवाई न होने पर भी विपक्षी कांग्रेस को घेर सकते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 11 Apr 2021 09:47 AM (IST)Updated: Sun, 11 Apr 2021 09:47 AM (IST)
पंजाब में 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को होगी मुश्किल, गले की फांस बन सकते हैं ये मुद्दे
पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की फाइल फोटो।

चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। बेअदबी मामलों को लेकर कोटकपूरा गोलीकांड की जांच कर रही स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआइटी) को भंग करके नई एसआइटी बनाने और उसमें कुंवर विजय प्रताप सिंह को बाहर रखने का हाई कोर्ट का फैसला कैप्टन सरकार के लिए गले की फांस बन सकता है। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर कांग्रेस की ओर से चलाई गई मुहिम ने अकाली दल की हालत पतली हो गई थी। इसका लाभ लेते हुए कांग्रेस पंजाब में सत्ता में आई और लोगों को उम्मीद थी कि कैप्टन सरकार इस मामले में कोई कड़ा कदम उठाएगी।

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कैप्टन ने जांच आयोग गठित कर एसआइटी भी बनाई। एसआइटी ने अब चालान अदालत में पेश कर दिए और सुनवाई आगे बढ़नी थी तो अब हाई कोर्ट ने एसआइटी भंग कर जांच को रद कर दिया। अब कांग्रेस सरकार के पास इस फैसले के खिलाफ अपील करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। अन्यथा कांग्रेस के समक्ष लोगों को यह बताने की चुनौती होगी कि सरकार ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी व इससे जुड़े मामलों में किन लोगों को सलाखों के पीछे धकेला, जिसे लेकर चुनाव से पहले दावा किया था।

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श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी, कोटकपूरा व बहिबल कलां गोलीकांड जैसे मामलों के अलावा कैप्टन सरकार ने फूडग्रेन के 31 हजार करोड़ रुपये का मामला भी चुनाव से पहले खूब उछाला। आरोप लगाया कि विगत अकाली-भाजपा सरकार यह बोझ पंजाब पर डाल गई है। इसे लेकर केंद्र से बातचीत की जाएगी लेकिन इस मामले में भी कुछ नहीं हुआ।

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तीन निजी थर्मल प्लांटों के साथ हुए समझौते का मामला भी कांग्रेस ने खूब उछाला। पार्टी प्रधान सुनील जाखड़ ने तो दावा किया कि सत्ता में आने पर इन समझौतों को रद किया जाएगा। परंतु चार वर्ष बीतने के बावजूद सरकार ने न तो इन समझौतों को रद कर पाई और न ही समझौतों की शर्तों पर पुनर्विचार के लिए कंपनियों से बात की। बिजली नहीं लेने के बावजूद सरकार पिछले पांच वर्ष में 5429 करोड़ रुपये तीनों थर्मल प्लांटों को दे चुकी है।

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इसी तरह नशे का मुद्दा भी है जिसके लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एसटीएफ का गठन किया। एसटीएफ की सीलबंद रिपोर्ट हाई कोर्ट में पिछले साढ़े तीन वर्ष से लंबित है। सरकार के एडवोकेट जनरल (एजी) ने इस सीलबंद रिपोर्ट को खुलवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। नवजोत सिंह सिद्धू तो इसे लेकर प्रेस कान्फ्रेंस भी कर चुके हैं। अदालतों में इस तरह केस हारने को लेकर कांग्रेस प्रधान सुनील जाखड़ पिछले वर्ष एजी अतुल नंदा पर सार्वजनिक तौर पर खूब बरसे थे।

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