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लिटराटी 2020 में बोले आशीष विद्यार्थी- रोज जीवन को नए अंदाज में देखता हूं, इसी में खुशी मिलती है

रविवार को चंडीगढ़ लिटरेरी सोसाइटी द्वारा आयोजित लिटराटी-2020 में आशीष विद्यार्थी ने लेखक सुपर्णा सरस्वति पुरी से चर्चा की। उन्होंने कहा कि मेरे लिए अनुभव बाद में होता है पहले मौका होता है। मुझे जो भी जीवन में मौका मिला मैंने उसे खुलकर जीया। चाहे वो फिल्म हो या जिंदगी।

By Vinay KumarEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 07:47 AM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 07:47 AM (IST)
लिटराटी 2020 में बोले आशीष विद्यार्थी- रोज जीवन को नए अंदाज में देखता हूं, इसी में खुशी मिलती है
एक्टर आशीष विद्यार्थी लेखक सुपर्णा सरस्वति पुरी से चर्चा करते हुए।

चंडीगढ़, जेएनएन। मेरे लिए हर दिन नया होता है। हर नया दिन, नए अंदाज में देखता हूं, तो लगता है जीवित हूं। इसके लिए ये नहीं सोचता हूं कि मैं कौन हूं। मेरी क्या इमेज है। मैं बस सुबह उठता हूं, तो कुछ अलग करने की सोचता हूं। चाहे वो लोगों से बात करना ही क्यों न हो। ये ऊर्जा मेरे लिए खास रहती है। एक्टर आशीष विद्यार्थी कुछ इसी अंदाज में अपनी ऊर्जा पर बात करते हैं। रविवार को चंडीगढ़ लिटरेरी सोसाइटी द्वारा आयोजित लिटराटी-2020 में उन्होंने लेखक सुपर्णा सरस्वति पुरी से चर्चा की। उन्होंने कहा कि मेरे लिए अनुभव बाद में होता है, पहले मौका होता है। मुझे जो भी जीवन में मौका मिला, मैंने उसे खुलकर जीया। चाहे वो फिल्म हो या जिंदगी।

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हिंदी के अलावा कई क्षेत्रीय भाषाओं में काम किया। कुछ फिल्म तो रिलीज भी नहीं हो पाई थी। क्षेत्रीय फिल्म में श्यामानंद जालान जैसे निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिला। कुत्ते की मौत फिल्म में सईद मिर्जा के साथ काम किया। वो फिल्म रिलीज नहीं हुई, मगर उनके साथ बातचीत और दोस्ती ने जीवन जीने की कला सिखाई। मेरे जीवन में एक ही रंज है कि मेरे पिता को मैं काफी देर से समझा। जब मैं बड़ा हो रहा था, तो उन्होंने चुप रहना शुरू कर दिया था। शायद उनके न बोले शब्द ही थे, जिसने मुझे कामयाब बनाया।

प्रेरित नहीं रास्ता दिखाता हूं...

आशीष मोटीवेशनल स्पीकर के रूप में भी लोगों के बीच आते हैं, उन्होंने कहा कि मैं खुद को मोटीवेशनल नहीं इग्नीशर मानता हूं। जो लोगों को रास्ता दिखाता है। दरअसल, अपने करियर के दौरान मैं कई लोगों को मिला जो काफी दुखी रहते थे। जबकि उनके पास सब कुछ था। मैं अपने मां बाबा को देखता था, जिनके पास ज्यादा पैसे नहीं होते थे, फिर भी वो खुश रहते थे। ऐसे में लगता है कि मैं भी उनकी तरह हूं, मगर लोगों को भी सुखी रहने की तरकीब सिखाता हूं। पुराने दिनों को याद करते हुए आशीष ने कहा कि एक बार मैं किसी को इंटरव्यू दे रहा था, इंटरव्यू के बाद एक पीआर मेरे पास आई और बोली कि आपको इंग्लिश भी आती है। दरअसल, मेरे किरदार की वजह से सबको लगता था कि मैं ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूं।


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