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पराली से खाद बनाने में पंजाब के कृषि विभाग का कानून बना बाधा, फिर कैसे रुकेगा खेतों में दहन

पंजाब में पराली दहन बड़ी समस्‍या बन गई है। इस समस्‍या से निपटने के लिए पराली से खाद बनाने का रास्‍ता किसानों खोजने लगे हैं। लेकिन इसमें पंजाब के कृषि विभाग का कानून ही बड़ी बाधा बन गई है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 07 Oct 2020 08:04 PM (IST)Updated: Wed, 07 Oct 2020 08:04 PM (IST)
पराली से खाद बनाने में पंजाब के कृषि विभाग का कानून बना बाधा, फिर कैसे रुकेगा खेतों में दहन
पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं इस साल भी जारी हैं।

चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब में हर साल निकलने वाली 185 लाख टन पराली हमेशा से ही सरकारों, किसानों और आम लोगों के लिए परेशानी का कारण रही है। ऐसा नहीं है कि इस पराली का उपयोग नहीं किया जा सकता। दूसरे शब्दों में कहें तो पराली से बायोगैस, सीएनजी या बिजली पैदा करने के प्रोजेक्ट लगाए जा सकते हैं, लेकिन इनसे तैयार होने वाले अन्य उत्पादों को लेकर सरकार के अपने ही कानून बाधा बना रहे हैं। इनमें सबसे अहम उत्पाद खाद है। कमाल की बात यह है कि कई वर्षो से बाधा बन रहे इन कानूनों में संशोधन करने के लिए भी कोई काम नहीं हुआ है। बायोगैस प्लांट से बनने वाली खाद का स्टैंडर्ड मापने का कोई कानून नहीं है। आज भी पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में इसको लेकर केस चल रहा है।

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पराली के बायोगैस प्लांट से बनने वाली खाद का स्टैंडर्ड मापने का कोई कानून नहीं

फाजिल्का के किसान संजीव नागपाल ने पराली से बायोगैस बनाने का प्लांट लगाया है। वह किसानों से जितनी पराली लेते हैं, बदले में उतनी ही खाद लौटा देते हैं। यानी जिस किसान का यूरिया आदि पर प्रति एकड़ दो से तीन हजार रुपये खर्च आता है, वह आधा रह जाता है। यही नहीं, नेचुरल खाद से न केवल खेत की मिट्टी उपजाऊ रहती है, बल्कि उससे पैदा होने वाले अनाज की गुणवत्ता भी बनी रहती है।

पंजाब में आज यही सबसे बड़ी जरूरत है, लेकिन इस खाद को वह पैक करके नहीं बेच सकते, क्योंकि खाद की क्वालिटी तैयार करने के लिए जो कानून बनाया गया है, उसमें कहा गया है कि खाद में संबंधित तत्वों की एक निश्चित मात्रा होनी चाहिए। अगर वह उससे कम है तो खाद को नहीं बेचा जा सकता।

कानून में संशोधन के लिए सरकार कर रही विचार, हाई कोर्ट में चल रहा केस

संजीव नागपाल बताते हैं कि पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू) व केंद्र सरकार इस खाद को बेचने की मंजूरी देते हैं, लेकिन पंजाब का कृषि विभाग इसकी इजाजत नहीं देता। 1960 के फर्टिलाइजर एक्ट के अनुसार खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस जैसे तत्वों की निश्चित मात्रा होनी चाहिए।

केमिकल से तैयार होने वाली खाद में तो ऐसा संभव है, लेकिन नेचुरल खाद में ऐसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें मिलाया जाने वाले गोबर व पराली की क्वालिटी आदि में विभिन्नता होती है। इसमें कई तरह की चीजें शामिल हैं। नागपाल का कहना है कि हमने कृषि विभाग से कहा कि यह नेचुरल खाद है, लेकिन वह नहीं मानते। हमने इसके खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

खुले में बेच सकते हैं, पैक करके नहीं

कृषि विभाग के कमिश्नर डॉ. बलविंदर सिंह सिद्धू का कहना है कि खुले में खाद बेचने पर हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन पैक करके खाद बेचने के कानून में कुछ मानक हैं। कानून की अवहेलना नहीं की जा सकती। एक अन्य सीनियर अधिकारी ने माना कि यह दिक्कत आ रही है, जो लोग पराली से बायोगैस प्लांट, सीएनजी के प्लांट लगाना चाहते हैं, उनकी मांग है कि नेचुरल खाद बेचने की इजाजत मिलनी चाहिए। हम इस पर काम कर रहे हैं। 


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