प्राचीन कला केंद्र में ऑनलाइन जमी रागों की महफिल, कोलकाता की रोज़ी दत्ता ने बांधा समा
रोज़ी दत्ता पंडित कोलकाता शास्त्रीय संगीत पारंगत गायिका हैं। संगीत इनको विरासत में मिला उन्होंने अल्पायु से ही संगीत की शिक्षा अपनी माता से प्राप्त करनी प्रारंभ कर दी थी
चंडीगढ़, जेएनएन। प्राचीन कला केंद्र-35 द्वारा वेब बैठक का आयोजन हुआ। कोरोना वायरस की वजह से हर हफ्ते ऑनलाइन शास्त्रीय संगीत से जुड़े कार्यक्रमों की कड़ी में कोलकाता की शास्त्रीय गायिका रोज़ी दत्ता ने अपने मधुर गायन से दर्शकों को मंत्र मुग्ध किया। इसका आयोजन केंद्र के अधिकारिक फेसबुक पेज और यूटयूब चैनल पर किया।
रोज़ी दत्ता पंडित कोलकाता शास्त्रीय संगीत पारंगत गायिका हैं। संगीत इनको विरासत में मिला, उन्होंने अल्पायु से ही संगीत की शिक्षा अपनी माता से प्राप्त करनी प्रारंभ कर दी थी। इसके उपरांत इन्होने बहुत से महान गुरुओं जैसे पंडित जे. वी. एस. राव, पंडित बीरेश रॉय एवं गुरु सुनंदा पटनायक सरीखे गुरुओं के शिष्यत्व में संगीत की शिक्षा एवं बारीकियां सीखी, आज रोज़ी अपनी कड़ी मेहनत और लगन से संगीत की दुनिया में अपना मुकाम बना चुकी है। उन्होंने देश ही नहीं विदेशों में में भी अपनी कला प्रतिभा का बखूबी प्रदर्शन करके तालियां बटोरी हैं।
आज के कार्यक्रम के शरुआत इन्होने राग मिया की मल्हार से की जिस में आलाप से आरम्भ करके रॉय ने विलम्बित एक ताल से सजी रचना 'जे जान शरण गए' प्रस्तुत की उपरांत उन्होंने द्रुत एक ताल में निबद्ध रचना 'मोहम्मद सा रंगीला रे' पेश की। कार्यक्रम का समापन रोज़ी ने एक खूबसूरत तराने से किया। इनके साथ तबले पर निमाई कुमार दत्ता एवं हारमोनियम पर मोइनाक दास ने बखूबी संगत की।
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