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धार्मिक सौहार्द की अनोखी मिसालः मजहब की दीवार तोड़ किडनियां देकर बचाई जान

इफरा ने बताया कि चाहे उसने बदले में किडनी दी हो लेकिन फिर भी वह गीता की हमेशा शुक्रगुजार रहेगी जिसकी वजह से उसकी मां जिंदा है। इफरा ने बताया कि वह दो महीने अस्पताल में रही।

By Edited By: Published: Wed, 04 Mar 2020 09:20 PM (IST)Updated: Thu, 05 Mar 2020 04:58 PM (IST)
धार्मिक सौहार्द की अनोखी मिसालः मजहब की दीवार तोड़ किडनियां देकर बचाई जान
धार्मिक सौहार्द की अनोखी मिसालः मजहब की दीवार तोड़ किडनियां देकर बचाई जान

चंडीगढ़, [विकास शर्मा]।  देश में धार्मिक सौहार्द बिगड़ने की खबरों के बीच एक मिसाल शहर में देखने को मिली। पुलवामा निवासी जुबैदा बानो ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जब वह जिंदगी और मौत के बीच लड़ाई लड़ रही होगी तो उसे यमुनानगर की गीता किडनी देकर बचाएगी और न ही युमनानगर के अशोक को कभी ख्याल आया होगा कि कोई कश्मीरी लड़की इफरा जान उसे किडनी देकर मौत के मुंह से वापस लाएगी। अपनों से प्यार और जिंदा रहने के लिए दिए गए इस बलिदान ने धर्म के नाम पर उत्पात मचाने वालों के लिए उदाहरण पेश किया है।

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जुबैदा और अजय का ऐसा हुआ मेल

पंचकूला के अलकेमिस्ट अस्पताल के किडनी सर्जन नीरज गोयल ने बताया कि अजय की उम्र 33 वर्ष है। ब्लड प्रेशर की वजह से उसे 31 साल की उम्र में हार्ट अटैक आया। एंजियोप्लास्टी के बाद उसे स्टंट लगाया, लेकिन दोनों किडनी खराब हो गई। जिंदगी डायलिसिस पर आकर ठहर गई। पत्नी गीता किडनी देने के लिए तैयार थी, लेकिन ब्लड ग्रुप अलग-अलग होने की वजह से बात नहीं बन पा रही थी।

दूसरी तरफ जुबैदा बानो की कहानी भी ऐसी ही थी। जुबैदा के पति किडनी देने के लिए तैयार थे लेकिन वह इसके लिए पूरी तरह से फिट नहीं थे। इसके बाद जुबैदा की बेटी इफरा जान तैयार हुई तो उसका भी ब्लड ग्रुप जुबैदा से अलग था। दोनों की स्थिति लगभग एक जैसी थी। 

अनुच्छेद-370 हटाने के बाद फिर लटका मामला

इफरा जान ने बताया कि बात अभी ट्रांसप्लांट की हो रही थी कि केंद्र सरकार ने  जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया।  इसके बाद बात बिगड़ गई। ट्रांसप्लांट ह्यूमन ऑर्गन एक्ट के तहत जो तमाम तरह की औपचारिकताएं पूरी करनी थीं, वह लटक गई। मां को बचाने की हमारी उम्मीद कम होती जा रही थी, लेकिन तेजी से हालात सामान्य हुए। नई व्यवस्था बनी तो कुछ ही दिनों में तमाम औपचारिकताएं पूरी कर ली।

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

इफरा ने बताया कि चाहे उसने बदले में किडनी दी हो, लेकिन फिर भी वह गीता की हमेशा शुक्रगुजार रहेगी, जिसकी वजह से उसकी मां जिंदा है। इफरा ने बताया कि वह दो महीने अस्पताल में रही। इस दौरान उसके बहुत से दोस्त बने। उन्हाेंने बताया कि शायर इकबाल ने सच ही कहा है कि मजहब नहीं सिखाता, आपस में वैर रखना, हिंदी है, हम वतन है हिंदोस्तां हमारा। बाकी सब झूठ है।

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