पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने उठाई थी साइमन कमीशन के खिलाफ बुलंद आवाज
आज लाला लाजपतराय का शहीदी दिवस है। उन्होंने साइमन कमीशन के विरोध में लाहौर में आयोजित बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया और अंग्रेजी की हुकूमत को हिला दिया था।
जेएनएन, चंडीगढ़। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में लाला लाजपतराय का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 3 फरवरी 1928 को जब साइमन कमीशन भारत आया था तो उसके विरोध में पूरे देश में आग भड़की थी। लाला लाजपतराय ने इसके विरोध में लाहौर में आयोजित बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया और अंग्रेजी की हुकूमत को हिला दिया। इस आंदोलन में अंग्रेजों ने जनता पर लाठियां बरसाई। लाठियों के वार के कारण लाला लाजपतराय 17 नवंबर 1928 को शहीद हो गए थे।
लाला लाजपतराय के प्रयासों से बिट्रिश शासन से मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त हुआ। लाला लाजपतराय के नेतृत्व में असहयोग आदोलन पंजाब में पूरी तरह से सफल रहा, जिस कारण लाला लाजपतराय को पंजाब का शेर व पंजाब केसरी के नाम से पुकारा जाने लगा। लाला लाजपत राय युवाओं के प्रेरणास्रोत थे। उनसे प्रेरित होकर ही भगत सिंह, उधम सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि देशभक्तों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था।
लाला लाजपत राय ने पंजाब में पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना भी की थी। लाला लाजपत राय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के मोगा जिले में हुआ था। उन्होंने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की।
लाला लाजपत राय ने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। लाला हंसराज के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया, लोग जिन्हें आजकल डीएवी स्कूल्स व कालेज के नाम से जाना जाता है। लालाजी ने अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा भी की थी। 30 अक्टूबर 1928 को इन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गए। 17 नवंबर 1928 को इन्हीं चोटों की वजह से उनका निधन हो गया।
लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया। इन जांबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसम्बर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया।