खुद के खर्च पर गरीब बच्चों को पढ़ा रहे मोहम्मद इंतजार, किताबों और खाने का भी करते हैं इंतजाम
कई जरूरतमंद परिवारों के लिए तो मोहम्मद अब उनके जीवन का सहारा हैं। वह हर महीने कुछ दिव्यांगों के घरों में कपड़े और जरूरत के मुताबिक राशन तक पहुंचाते हैं।
चंडीगढ़ [डॉ. सुमित सिंह श्योराण]। समाज में बेहतर बदलाव के लिए किसी आम इंसान की भागीदारी भी खास हो सकती है। शुरुआत में यह काफी मुश्किल हो सकता है, लेकिन अपनी मेहनत और लोगों को जोड़कर दूसरों के लिए मिसाल पेश की जा सकती है। यह मानना है पेशे से शिक्षक मोहम्मद इंतजार का। वह कई बच्चों की किताबों से लेकर खाने तक का इंतजाम खुद करते हैं। कई जरूरतमंद परिवारों के लिए तो मोहम्मद अब उनके जीवन का सहारा हैं। वह हर महीने कुछ दिव्यांगों के घरों में कपड़े और जरूरत के मुताबिक राशन तक पहुंचाते हैं। उनका कहना है कि जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं है। कुछ अच्छा और बेहतर करने की सोच के बल पर कोई भी आम इंसान समाज के बाकी लोगों के लिए रोल मॉडल बन सकता है।
चंडीगढ़ के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले जेबीटी शिक्षक मोहम्मद इंतजार गरीब परिवारों के बच्चों को खुद के प्रयास से शिक्षित करने का काम कर रहे हैं। इसके लिए कुछ साल पहले उन्होंने जो मिशन शुरू किया था, वह अब अभियान बनने लगा है। शुरुआत में उन्हें पैसे की तंगी सहित कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, लेकिन जुनून के साथ डटे रहने पर मेहनत रंग लाई। अब इस मामले में उन्हें अन्य लोगों का साथ भी मिल रहा है।
स्कूल में बच्चों को संबोधित करते मोहम्मद इंतजार।
समाज में बेहतर बदलाव लाना एक शिक्षक का काम
सरकारी स्कूल में कांट्रेक्ट टीचर होते हुए भी मोहम्मद इंतजार ने वह कर दिखाया है जो दूसरे शिक्षक सुविधाएं होने पर भी नहीं कर पाते। शहर की कालोनी और गांवों में रहने वाले गरीब परिवारों के शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षित करना हो या फिर दिव्यांग बच्चों के जीवन को संवारने की पहल.. मोहम्मद के लिए यह एक जुनून है। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में मोहम्मद इंतजार ने कहा कि उन्हें लगता है कि एक शिक्षक का काम समाज में बेहतर बदलाव लाने के लिए अपना योगदान देना है।
इस समय जरूरतमंद परिवारों के कई बच्चे मोहम्मद इंतजार से शिक्षा का लाभ ले रहे हैं।
पॉजिटिव सोच से कामयाबी जरूर मिलेगी
हरियाणा के करनाल जिले के इंद्री कस्बे के मूल निवासी मोहम्मद इंतजार साल 2008 में शिक्षा विभाग में भर्ती हुए। स्कूल से छुट्टी के बाद उनका असल मकसद शुरू होता है। मोहम्मद बताते हैं शुरुआत में बस्ती में रहने वाले गरीब परिवारों के लोग अपने बच्चों को पढ़ने नहीं भेजते थे। इन बच्चों के हाथों में किताबें थमाना बहुत मुश्किल था, लेकिन लगातार कोशिशों से लोगों की सोच बदलने लगी। बेहतर काम के लिए स्टेट अवॉर्ड मोहम्मद इंतजार की मेहनत को सम्मान भी मिला। कांट्रेक्ट टीचर होते हुए भी 26 जनवरी 2018 को स्टेट अवॉर्ड और फिर टीचर्स डे पर भी विशेष सम्मान इन्हें मिल चुका है। दिव्यांग बच्चों के लिए खास साइन लैंग्वेज की वीडियो बनाकर यू-ट्यूब पर डालनी शुरू कर दी, जिसका काफी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। पत्नी तरनूम और बेटा भी इसमें सहयोग करते हैं।