लीज होल्ड की बेड़ियों में जकड़ी है चंडीगढ़ की इंडस्ट्री
चंडीगढ़ में इंडस्ट्री की हाल ठीक नहीं है। इंडस्ट्री को लेकर बहुत सी दिक्कतें हैं। कुछ तो चार दशकों से चल रही हैं। इनमें सबसे मुख्य लीज होल्ड प्रापर्टी को फ्री होल्ड करने का मामला है।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ :
चंडीगढ़ में इंडस्ट्री की हाल ठीक नहीं है। इंडस्ट्री को लेकर बहुत सी दिक्कतें हैं। कुछ तो चार दशकों से चल रही हैं। इनमें सबसे मुख्य लीज होल्ड प्रापर्टी को फ्री होल्ड करने का मामला है। प्रापर्टी के टाइटल ही क्लीयर नहीं हैं। इंडस्ट्रियलिस्ट कई दशकों से इसे लीज होल्ड की बेड़ियों से मुक्त कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा। नगर निगम चुनाव में भी इंडस्ट्री के मामलों का बड़ा मुद्दा है। सत्ता में भाजपा पर लीज टू फ्री होल्ड प्रापर्टी कराने का दबाव है। कई चुनाव में राजनीतिक दल इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल करते हैं। 70 फीसद प्रॉपर्टी लीज होल्ड बेस्ड
चंडीगढ़ की 70 फीसद से अधिक कॉमर्शियल और इंडस्ट्रियल प्रॉपर्टी लीज होल्ड बेस पर है। इसमें एस्टेट ऑफिस, नगर निगम और चंडीगढ़ हाउंसिग बोर्ड की प्रॉपर्टी शामिल है। अधिकतर प्रॉपर्टी 99 सालों के लिए लीज पर है। पिछले 37 सालों से प्रॉपर्टी ट्रांसफर का इंतजार है। बड़ी बात तो यह है कि अभी तो लीज से लीज भी प्लॉट ट्रांसफर नहीं हो रहे, लीज से फ्री होल्ड तो अभी दूर की बात है। प्रशासन ने फेज-1 और 2 दोनों ही एरिया में इंडस्ट्रियलिस्ट को प्लॉट 1973 से 1982 के बीच अलॉट किए थे। यह प्लॉट इस शर्त पर अलॉट किए गए थे कि 15 साल बाद अनअर्न्ड प्रॉफिट पर प्रशासन ट्रांसफर की मंजूरी देगा। लेकिन 35 साल बीत जाने के बाद भी प्रशासन आज तक ट्रांसफर के लिए कोई पॉलिसी नहीं बना पाया है। सिर्फ नाम बदला, सुंदरीकरण का इंतजार
इंडस्ट्रियल एरिया का नाम प्रशासन ने बदल दिया है। नाम बदलकर इंडस्ट्रियल एंड बिजनेस पार्क कर दिया गया। नाम जरूर बदल गया है लेकिन हालात कब बदलेंगे, यह नहीं पता। इंडस्ट्रियल एरिया में कबाड़खाने में तब्दील हो रहा है। हर प्लॉट लाइन में एक कबाड़ीवाला मिल जाएगा। इंडस्ट्रियल एरिया का एरियल व्यू लें तो हैरान करने वाली तस्वीर उभरती है। इंडस्ट्रियल प्लॉट में कबाड़ के ढेर लगे नजर आते हैं। सवाल यह उठता है कि सिर्फ नाम बदलने से क्या इंडस्ट्रियल एरिया की तस्वीर बदल जाएगी। यहां जगह-जगह गंदगी पसरी है। ब्यूटीफिकेशन के नाम पर कई वर्षो से केवल बातें होती रही हैं। इस वजह से पिछले दो साल में यहां से करीब 150 इंडस्ट्रीज पलायन कर चुकी हैं। इस पलायन के दो मुख्य कारण रहे हैं, एक तो इंडस्ट्रियल प्लॉट का लीज टू लीज और लीज टू फ्री होल्ड ट्रांसफर नहीं होना। इससे प्लॉट का टाइटल ही क्लीयर नहीं है जिससे इंडस्ट्री शुरू करने या आगे बढ़ाने के लिए बैंक लोन तक नहीं देते। चंडीगढ़ में इंडस्ट्री चलाना आसान नहीं है। दिक्कतों के कारण छोटे उद्योग तो बंद हो ही रहे हैं, दूसरी इंडस्ट्री भी पलायन कर रही हैं। चंडीगढ़ में लीज टू लीज प्रॉपर्टी ट्रांसफर तक की मंजूरी नहीं है। टाइटल क्लीयर नहीं होने से बैंक लोन तक नहीं देते जिससे इंडस्ट्री को आगे बढ़ाना आसान नहीं है। वह जनप्रतिनिधियों से उम्मीद करते हैं कि उनके मुद्दों को अपने मंच पर उठाएं।
- नवीन मंगलानी, प्रेसिडेंट, चैंबर ऑफ चंडीगढ़ इंडस्ट्री। दिल्ली पैटर्न पर लीज से फ्री होल्ड प्रॉपर्टी ट्रांसफर को मंजूरी मिलनी चाहिए। यह उनकी पुरानी मांग है। इससे प्रॉपर्टी सेल परचेज में बूम आएगा। प्रशासन को रेवेन्यू मिलेगा। साथ ही ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा मिलेगा। चंडीगढ़ में कलेक्टर रेट कम किए जाने के बाद भी मोहाली और पंचकूला से कहीं ज्यादा हैं। जिस कारण कोई नया बिजनेस सेटअप करना काफी मुश्किल है।
- कमलजीत सिंह पंछी, चेयरमैन, प्रॉपर्टी कंसल्टेंट एसोसिएशन।