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जापान में सहेजी है भारतीय संस्कृति

टूटीफूटी अंग्रेजी भाषा में ताकुया ने कहा कि उन्हें म्यूजिक पसंद है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 11 Jan 2019 09:16 PM (IST)Updated: Fri, 11 Jan 2019 09:16 PM (IST)
जापान में सहेजी है भारतीय संस्कृति
जापान में सहेजी है भारतीय संस्कृति

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : सितार और तबला, हैं तो दोनों भारतीय वाद्य यंत्र, मगर इसमें जापान की रंगत आती है, जब तोशीदा और ताकुया इन्हें अपने अंदाज में बजाते हैं। तोशीदा दायकिती और ताकुया कुरी इदा, दोनों ही दो दशकों से भारतीय शास्त्रीय संगीत की अराधना में व्यस्त हैं। शुक्रवार को प्राचीन कला केंद्र-35 की 254वीं मासिक बैठक में भारतीय कलाकार अरुणंग्शू चौधरी और सौभाग्य गंधर्व के साथ प्रस्तुति देने पहुंचे। अपने लंबे बाल को संवारते हुए और जापानी एक्सेंट में थोड़ी टूटीफूटी अंग्रेजी भाषा में ताकुया ने कहा कि उन्हें म्यूजिक पसंद है। इसकी कोई भाषा नहीं होती। मगर इससे जुड़ा एक इतिहास और संस्कृति जरूर होती है। संगीत में विविधता है, मगर ये किसी से कोई भेदभाव नहीं करता। जैसे भाषा है, ये तय है। आप किसी दूसरे देश में हैं तो ये मुश्किल है कि आप उस देश की भाषा उसी एक्सेंट में बोल पाएं। मगर किसी भी देश के संगीत में आप यकीनन महारत हासिल कर सकते हैं। मुझे इसी वजह से भारतीय शास्त्रीय संगीत में रूचि पैदा हुई। दरअसल, संगीत बचपन से ही पसंद था। एक बार जापान में एक भारतीय कलाकार तबला वादन करने पहुंचे। ये मुझे पसंद आया, तो ऐसे में मैंने इसे सीखने की कोशिश की। मगर जापान में इसे सीखना मुश्किल था। ऐसे में 90 के दशक के अंत में मैंने भारत में आकर इसकी तालीम लेना शुरू किया। शुरुआत में भाषा को लेकर दिक्कत थी, मगर फिर इसकी ताल ही ऐसी थी कि मैंने इसे सीखना नहीं छोड़ा। जापानी लोक गीतों को सितार से सजाता हूं

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तोशीदा दायकिती ने कहा कि उन्हें संगीत से प्यार है। सितार एक ऐसा वाद्य यंत्र है, जो कानों से होते हुए सीधा दिल पर असर करता है। जापान और भारत के संगीत की बात करूं, तो इसमें काफी समानता है। भारतीय गायिकी में जहां राग है, तो वहीं जापानी लोक गीतों में धुन के आधार पर स्वर बनते हैं। मेरे लिए भारत में आकर संगीत सीखना, एक दूसरी दुनिया का अनुभव था। यहां संगीत संस्कृति के साथ जुड़ा है, राग मौसम के अनुसार बने हैं। ऐसे में इसकी विविधता जानना और फिर उसे खुद महसूस करना एक अलग ही सफर रहा। हालांकि, मैंने भारतीय संस्कृति को केवल संगीत के जरिये ही जाना है, ये ज्यादातर आध्यात्मिक हैं। भारत और जापान के संगीत को पेश करते हैं

प्राचीन कला केंद्र-35 में प्रस्तुति को साजरंग नाम दिया गया। अरुणंग्शू चौधरी ने कहा कि उन्होंने चारों का एक बैंड बनाया, जो अभी तक देशभर और विभिन्न देशों में प्रस्तुति दे चुका है। चौधरी ने कहा कि वह छह वर्ष की उम्र से तबला वादन में लीन है। ऐसे में उनकी दोस्ती ताकुया कुरी इदा से हुई, जिसके बाद मुझे तोशीदा भी मिले। फिर क्या था, हमें लगा कि हमारी दिलचस्पी एक है, मगर हमारे देश अलग हैं। ऐसे में हमारे संगीत में कुछ अलग बात थी। जहां दोनों जापानी कलाकार अपनी संस्कृति भी संगीत में पेश करते हैं, तो एक तरफ से हम भारतीय संस्कृति। ऐसे में ये जुगलबंदी काफी अच्छी रहती है। हमने अभी तक कई देशों में प्रस्तुति दी है, मेरे अनुसार जब दो देशों की संस्कृति मिलती है, तो हमें मानवता से जुड़ी कितनी ही बातें जानने को मिलती है। एकता के लिए संगीत ही बेहतर है।


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