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रोम ओलंपिक में मेडल न फिसलता तो आज देश में जमैका की तरह होते एथलीट : मिल्खा सिंह

मेडल जीत जाता तो आज देश में जमैका की तरह हर घर से एथलीट निकलते।

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Jun 2020 07:29 PM (IST)Updated: Mon, 22 Jun 2020 07:29 PM (IST)
रोम ओलंपिक में मेडल न फिसलता तो आज देश में जमैका की तरह होते एथलीट : मिल्खा सिंह
रोम ओलंपिक में मेडल न फिसलता तो आज देश में जमैका की तरह होते एथलीट : मिल्खा सिंह

विकास शर्मा, चंडीगढ़ : रोम ओलंपिक में अगर मैं मेडल जीत जाता तो आज देश में जमैका की तरह हर घर से एथलीट निकलते। मैं मेडल जीतने से नहीं चूका, बल्कि मैं इस देश को रोल मॉडल और सपने देने से चूक गया। आज एथलीटों के पास कोई ऐसा रोल मॉडल नहीं है, जिसे देखकर वे बड़े सपने देख सकें। यह कहना है उड़नसिख पद्मश्री मिल्खा सिंह का। ओलंपिक डे पर दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए मिल्खा सिंह बताते हैं कि मैं ही नहीं चूका, पीटी ऊषा और श्रीराम सिंह जैसे एथलीट भी मेडल जीतने से चूक गए, जिनसे देश को खासी उम्मीदें थी। मैं इतने सालों से इंतजार कर रहा हूं कि जो मैं नहीं कर सका, वो कारनामा कोई दूसरा इंडियन कर दिखाए। रोम ओलंपिक के बाद भी 60 साल बीत गए, लेकिन मेरा इंतजार अब तक खत्म नहीं हुआ है। एथलीट्स को चाहिए कोई रोल मॉडल

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मिल्खा बताते हैं कि अपने संघर्षमय जीवन में उन्होंने कभी हार नहीं मानी। जीवन में इतने उतार-चढ़ाव आए, लेकिन वे सिर्फ तीन बार रोये हैं। पहली बार बंटवारे के दौरान अपने स्वजनों की आंखों के सामने हुई मौत पर, दूसरी बार रोम ओलंपिक में मेडल नहीं जीत पाने पर और तीसरी बार अपनी जिंदगी पर आधारित बनी फिल्म को देखने के बाद। बावजूद इसके जब भी रोम ओलंपिक का जिक्र होता है तो उनका मन उदास हो जाता है और यह उदासी ताउम्र मेरे साथ रहेगी। अगर मैं मेडल जीत जाता तो एथलेटिक्स गेम्स के प्रति भी युवाओं में वही आकर्षण होता, जो ध्यानचंद के समय हॉकी का और 1983 में क्रिकेट व‌र्ल्ड कप जीतने के बाद क्रिकेट का था। क्रिकेट की तरह एथलेटिक्स गेम्स को प्रमोट करे मीडिया

मिल्खा कहते हैं कि क्रिकेट सिर्फ 10 से 14 देश खेलते हैं, लेकिन एथलेटिक्स गेम्स 200 से ज्यादा देश खेलते हैं। इसलिए एथलेटिक्स में महत्व को हमें समझना होगा। पिछले कुछ सालों में एथलेटिक्स खेलों के प्रति परिजनों का नजरिया बदला है और परिजन अब बच्चों को खुद एथलेटिक्स खेलने के लिए प्रमोट करते हैं, लेकिन अच्छे ग्राउंड, अनुभवी कोच मिलने के बावजूद एथलीट्स में जीत के प्रति वैसा जुनून नहीं देखने को मिलता था। नतीजा बड़े टूर्नामेंट में हमारे एथलीट मेडल जीतने से चूक जाते हैं। हम पहले से अच्छा कर रहे हैं, लेकिन यह प्रयास काफी नहीं हैं।


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