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प्रदेश प्रधान न बनाया तो अमरिंदर अगले साल होंगे कांग्रेस से अलग!

कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा पंजाब कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव नहीं करने का रुख अपनाने से नाराज कैप्टन अमरिंदर सिंह के सब्र का बांध आखिर टूट रहा है। समझा जाता है कि यदि उन्‍हें पार्टी का प्रदेश प्रधान नहीं बनाया गया तो वह अगले साल तक कांग्रेस छोड़ सकते हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2015 07:59 PM (IST)Updated: Wed, 23 Sep 2015 08:35 PM (IST)
प्रदेश प्रधान न बनाया तो अमरिंदर अगले साल होंगे कांग्रेस से अलग!

चंडीगढ़ [हरिश्चंद्र]। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा पंजाब कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव नहीं करने का रुख अपनाने से नाराज कैप्टन अमरिंदर सिंह के सब्र का बांध आखिर टूट रहा है। समझा जाता है कि यदि उन्हें पार्टी का प्रदेश प्रधान नहीं बनाया गया तो वह अगले साल तक कांग्रेस छोड़ सकते हैं।

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सोनिया-राहुल की दिल्ली रैली के दिन 1965 की भारत-पाक जंग पर अपनी पुस्तक रिलीज करने के मौके पर उन्होंने इस बार सोनिया गांधी को आमंत्रित नहीं किया। उल्टे उसी दिन उन्होंने राहुल की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाते हुए अपने सभी विकल्प खुले रखने की बात भी कह डाली।

पार्टी नेतृत्व अब अमरिंदर सिंह को लेकर खासा गंभीर हो गया है, क्योंकि उनके पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में पंजाब के कई वरिष्ठ नेताओं के अलावा पड़ोसी हिमाचल प्रदेश व हरियाणा के पहली कतार के कांग्रेसी भी मौजूद थे।

कैप्टन अमरिंदर व प्रताप सिंह बाजवा के साथ राहुल गांधी। (फाइल फोटो)

लंबे समय से पंजाब के करीब तीन दर्जन विधायक और करीब इतने ही पूर्व विधायक व वरिष्ठ नेता पार्टी हाईकमान पर अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में दबाव डाल रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव किया जाए। उनका कहना है कि प्रदेश कांग्रेस प्रधान प्रताप सिंह बाजवा की नेतृत्व क्षमता बेहद कमजोर साबित हुई है। उनके नेतृत्व में पार्टी सूबे की सत्ता में नहीं आ सकती।

कैप्टन अमरिंदर के समर्थकों का कहना है कि पिछले करीब छह माह में रैलियां कर पंजाबभर में पार्टी के हक में माहौल बनाने के अलावा अपना कद साबित करने के बावजूद अमरिंदर को राहुल कैंप किनारे करने में लगा है। लंच-डिनर के जरिए अपने समर्थक वरिष्ठ पार्टी नेताओं को जुटाकर उन्होंने हाईकमान के समक्ष साबित भी किया कि सूबे के 80 फीसद वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की एकमात्र पसंद वही हैं। जनता का उत्साह भी उनकी रैलियों में दिखाई दिया।

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अमरिंदर कैंप का कहना है कि बाजवा को अपना घोषित किया करीब हर कार्यक्रम को अधर में छोड़ना पड़ा है। यहां तक कि गत लोकसभा चुनाव में बाजवा प्रधान होने के बावजूद अपनी गुरदासपुर सीट तक नहीं बचा सके। इसके बावजूद राहुल बाजवा को प्रधान बनाने के अपने फैसले को गलत मानने को तैयार नहीं हैं।

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अमरिंदर के एक करीबी विधायक ने कहा कि अब किसी पार्टी की विचारधारा नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष की राजनीति का दौर है। बात चाहे नरेंद्र मोदी की हो या अरविंद केजरीवाल की, लोगों ने पार्टी को नहीं बल्कि चेहरे को वोट दिया। पंजाब में भी कांग्रेस के कार्यक्रमों के बजाय अमरिंदर सिंह के नाम पर भीड़ जुटती है, क्योंकि इस समय वही पार्टी में करिश्माई व्यक्तित्व हैं।

रैलियों का दौर चलाकर जनता में अपने हक में हवा बनाने के बाद लेंगे बड़ा फैसला

सूत्रों की मानें तो फिलहाल कैप्टन अमरिंदर कांग्रेस में ही रहकर रैलियों का दौर चलाएंगे और जनता में अपने हक में हवा बनाने के बाद ही कोई बड़ा फैसला लेंगे। उनके भाजपा में जाने के कयास हालांकि पिछले कई माह से चल रहे हैं, लेकिन इसके आसार कम हैं। पार्टी के 35 विधायक चाहे उनके कार्यक्रमों में मौजूद रहते हों, मगर पार्टी छोडऩे की नौबत आई तो यह तादाद 20 के आसपास ही ठहरेगी। यह बात पार्टी के उनके समर्थक विधायक स्पष्ट कर चुके हैं। करीब इतने ही पूर्व विधायक भी ऐसे कदम पर उनके साथ जाने की तैयारी में हैं।

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अमरिंदर ने एक लंबे-चौड़े साक्षात्कार में जिस तरह से राहुल को निशाने पर रखा था, इसके तुरंत बाद ही बाजवा ने भी अपने आका को खुश करने के लिए बयान दाग दिया था।

इस बारे में प्रदेश कांग्रेस प्रभारी शकील अहमद का कहा है कि किसी भी पार्टी नेता को एक-दूसरे के खिलाफ बयान नहीं देना चाहिए। इससे पार्टी कमजोर होती है। सार्वजनिक मंच से इस तरह की बयानबाजी की किसी को अनुमति नहीं दी जा सकती। पार्टी नेताओं को बयान देने से पहले संयम रखना चाहिए।


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