मुफलीसी लेकर आई मुंबई तक.. फिल्म 'रॉकस्टार' व 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' से मिली पहचानः पीयूष मिश्रा
पीयूष ने कहा कि रंगमंच की खूशबू से ही उन्हें अभिनय मिला। वो रंगमंच में इतना रच बस गए थे कि फिल्म को कुछ नहीं समझते थे।
चंडीगढ़, [शंकर सिंह]। 80 के दशक में रंगमंच मेरा जीवन था। यहां तक कि सूरज बड़जात्या फिल्म मैंने प्यार किया के लिए एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) पहुंचे। उन्होंने मेरा नाटक देखा, तो मुझे फिल्म का ऑफर किया। मुझे लगा वो मजाक रहे हैं। उस दौरान एनसडी के डायरेक्टर मोहन महार्षी ने मुझे कहा कि सूरज को तुम पसंद आए, और उन्होंने तुम्हारा अभिनय देखा है। वो चाहते हैं, तुम मुंबई जाओ, तुम्हारा सिलेक्शन फिल्म के लिए हो गया है। कमस से, उस समय सिनेमा ऐसा बनता था कि मुझे पसंद नहीं था। मैंने सोचा ये मजाक होगा। मैंने कभी दोबारा उस पर बात नहीं की, न ही मुंबई से दोबारा मुझे कोई कॉल आया। एक्टर पीयूष मिश्रा कुछ इसी अंदाज में मैंने प्यार किया में जुड़े अपने सिलेक्शन पर बात करते हैं। वह शहर के शिक्षाविद मितुल दीक्षित के साथ हुए वेबिनार में जुड़े।
दिल्ली से मुंबई का वो सफर..
पीयूष ने कहा कि रंगमंच की खूशबू से ही उन्हें अभिनय मिला। वो रंगमंच में इतना रच बस गए थे कि फिल्म को कुछ नहीं समझते थे। 90 के दशक में उन्होंने तीन-तीन घंटे के लंबे नाटक एकल अभिनय में किए। पीयूष बताते हैं कि रंगमंच से जो आमदनी होती थी, वो जरूरतें पूरी करने में खर्च हो जाती थी। हालात ज्यादा अच्छे नहीं थे, हालांकि मंडी हाउस जहां एनएसडी है, वहां मेरे अभिनय के चर्चे थे। लेकिन सभी दोस्त, मेरे से बाद वाले बैच के एक्टरऔर उसके भी बाद वाले एक्टर सभी मुंबई जा चुके थे। इसी दौरान मेरा एक नाटक देखने के बाद वर्ष 1998 में मुझे मणिरतनम ने फिल्म दिल से के लिए बुलाया। फिल्म में काम करके मैं वापस दिल्ली आ गया, मुझे फिल्म में काम करना भाया नहीं, लेकिन हालात बुरे हो चुके थे। घर में कुछ नहीं था, ऐसे में मैंन सोचा कि परिवार के साथ मैं बुरा कर रहा हूं। वर्ष 2003 में राजकुमार संतोषी ने मुझे लैजेंड ऑफ भगत सिंह लिखने के लिए बुलाया। मैं तैयार हो गया, इसके बाद मैंने अपने परिवार को भी मुंबई बुला लिया। लेकिन, फिर मैं कई वर्षों तक बेकार रहा। इसी बीच मेरी मुलाकात अनुराग कश्यप से हो गई। उसने अपनी फिल्म गुलाल के लिए बुलाया। फिल्म बनते-बनते सालों लग गए। उम्मीद ही नहीं थी कि फिल्म बनेगी। फिल्म बनी, तो मेरी लेखनी और अभिनय की चर्चा होने लगी, उस दौरान देव-डी भी आ गई। इसके एक साल तक मैं खाली बैठा रहा, ऐसे में इमतियाज अली ने मुझे रॉकस्टार के लिए बुलाया फिर गैंग्स ऑफ वासेपुर भी आ गई। जिसकी वजह से मुझे पहचान मिलने लगी।
इरफान ने टीवी करने के बावजूद अपना एक्टर बचा कर रखा था..
पीयूष ने कहा कि फिल्म मकबूल के दौरान विशाल भारद्वाज के साथ काम करने का मौका मिला। वो गजब के निर्देशक हैं। उनके और अनुराग के बीच यही फर्क है कि विशाल बहुत ऑर्गनाइज है। उस दौरान इरफान से पहली बार मिला, वो टीवी में काम करने के बावजूद अपनी आग बचाकर लाया था। उसके अंदर गजब का अभिनय था। फिर ओम पुरी और नसीरुद्दीन शाह जैसे बड़े कलाकार फिल्म में थे, ऐसे में एनएसडी के अपने सीनियर के साथ काम करना मेरे लिए एक चुनौती था। मगर वो समय मेरे लिए बहुत खूबसूरत था, जब मैं समझा कि फिल्म में ऐसे फनकार भी होते हैं।