इस पद्मश्री पर्यावरणविद ने उठाया सवाल, पेरिस से तय नहीं हो सकता कि पटना की हवा कैसी हो
चंडीगढ़ में आयोजित सेमीनार पर्यावरणविदों ने पर्यावरण अौर प्रदूषण मानक पर सवाल उठाए। उन्होंने हिमालय क्षेत्र में बिगड़ते पर्यावरण पर गंभीर चिंता जताई।
चंडीगढ़, जेएनएन। हिमालय क्षेत्र के बिगड़ते पर्यावरण का प्रभाव खेती पर भी पड़ रहा है। इसके दुष्प्रभाव पर चर्चा के लिए प्रसिद्ध एग्रो पॉलिसी एक्सपर्ट दविंदर शर्मा की अगुवाई में 'डायलॉग हाईवे' की ओर से करवाए गए दो दिवसीय सेमीनार मेें देश भर से विशेषज्ञ चंडीगढ़ में इकट्ठा हुए। सभी विशेषज्ञ काफी उग्र नजर आए और पैसे को प्रमुख रख कर बनाई जा रही नीतियों पर चिंता जताई। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्मश्री अनिल जोशी ने कहा कि यह पेरिस से कैसे तय किया जा सकता है पटना की कैसी हो। हमें ऐसे फैसले खुद लेने होंगे।
'डायलॉग हाईवे' में कहा- चुनाव में मुख्य मुद्दा हो क्लाइमेट चेंज, भावी पीढिय़ों के लिए पानी व हवा नहीं बचेगी
हिमालयन एन्वायर्नमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन देहरादून से आए पद्मश्री अनिल जोशी ने कहा कि हमें अपने पर्यावरण के प्रति खुद चिंतित और जागरुक होगा पड़ेगा। हमें अपने यहां पर्यावरण के बारे में खुद फैसले लेने होंगे। हम तय करना होगा कि पेरिस में बैठकर कोई यह तय नहीं करेगा कि पटना की हवा कैसी हो? ऐसे फैसले हमें खुद लेने होंगे।
विशेषज्ञों ने कहा कि अगर अब भी आंखें न खोलीं तो आने वाली पीढिय़ों की क्या हालत होगी, इसके बारे में कहना मुश्किल है। सेमीनार में विभिन्न यूनिवर्सिटियों व शोध संस्थानों के स्कॉलर भी शामिल हुए। सभी ने पर्यावरण पर अपने शोध व अध्ययन के परिणाम साझा किए।
भावी पीढिय़ों का ध्यान रखें: जस्टिस राजीव शर्मा
जस्टिस राजीव शर्मा ने उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन की खराब होती स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इसे बचाने के लिए ज्यादा लोग आगे नहीं आ रहे हैं। जिस तरह से हिमालय के पहाड़ों का रंग प्राचीन सफेद से भूरे रंग में बदल रहा है, उससे पर्यावरण में बदलाव स्पष्ट हो रहे हैं। हम जब भी कोई नीतिगत निर्णय लेते हैं, तो हमें भावी पीढ़ी को ध्यान में रखना चाहिए। हम अभी भी पर्यावरण को बचाने के लिए अपना दायित्व निभा सकते हैं और इसका दायित्व अगली पीढ़ी को भी सौंप सकते हैं।
पानी खो रहे ग्लेशियर: दविंदर शर्मा
डायलॉग हाईवे के मैनेजिंग ट्रस्टी दविंदर शर्मा ने कृषि और जलवायु परिवर्तन और डायलॉग हाइवे के पीछे के इरादे के बीच संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर जमे हुए पानी की तीसरी सबसे बड़ी मात्रा का भंडार, जलवायु परिवर्तन के चलते अत्यधिक असुरक्षित है। कम ऊंचाई वाले हिमालयी ग्लेशियर बढ़ते तापमान के कारण पानी खो रहे हैं। हम सभी को यह नहीं भूलना चाहिए कि हमें अपनी भावी पीढिय़ों से पर्यावरण विरासत में मिला है और हमें आने वाले वर्षों के लिए उन्हें बनाए रखना है।
पानी को बचाने वाली किस्मों पर रिसर्च हो: सुरेश कुमार
पंजाब के मुख्यमंत्री के चीफ प्रिंसिपल सेक्रेटरी सुरेश कुमार ने कहा कि आज हम कृषि संकट का सामना कर रहे हैं। इसके लिए कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है। ज्यादा से ज्यादा उपज लेने के लिए आज कल किसान एक दिन भी जमीन को खाली नहीं छोड़ रहे हैं, जिसका प्रभाव उपज की गुणवत्ता पर पड़ रहा है। उन्होंने खेती माहिरों से जमीन की गुणवत्ता और पानी बचाने वाली किस्मों पर रिसर्च करने की वकालत की।
टिकाऊ खेती सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण: डॉ. तेज प्रताप
उत्तराखंड के जीबी पंत नगर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. तेज प्रताप ने हिमालयी कृषि के परिदृश्य को सामने लाने के लिए ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि कार्बन डाइऑक्साइड गेम-चेंजर है। हिमालय में जलवायु परिवर्तन से गर्म सर्दियों, कम हिमपात, अनियमित वर्षा, लंबे समय तक सूखा अवधि और तीव्र वर्षा के कम दिनों का मार्ग प्रशस्त होगा। ऐसी स्थिति में, हमें कुछ अलग सोचना होगा और टिकाऊ खेती सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
जीडीपी को देखकर बन रही पॉलिसी: अनिल जोशी
पद्मश्री अनिल जोशी ने भी इस बात पर चिंता जताई कि हर नीति जीडीपी को देखकर बन रही है, लेकिन हमें यह भी तय करना होगा कि इतने सालों में इस जीडीपी वाली पॉलिसी के चलते क्या हमने विकास किया है या विनाश। कभी केदारनाथ तो कभी केरल जैसी त्रासदियों का असर भी ग्रामीण आबादी को झेलना पड़ता है। उन्होंने आहवान किया कि ऐसे मुद्दों को चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाना होगा, लेकिन मैं जानता हूं कि हम कभी हिंदू-मुस्लिम के मुद्दों से बाहर नहीं आ पाएंगे।