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मां-बाप की लड़ाई में बच्चे के साथ खड़ा हुआ High Court, एक गुहार पर पलट दिया निचली अदालत का फैसला

जज ने अपने फैसले में कहा कि बच्चे की इच्छा के खिलाफ जाना न सिर्फ उसके साथ क्रूरता होगी बल्कि उसके लिए एक आघात भी होगा जो उसके भावी जीवन पर एक दाग छोड़ सकता है।

By Vikas KumarEdited By: Published: Sat, 16 Nov 2019 11:13 AM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 03:49 PM (IST)
मां-बाप की लड़ाई में बच्चे के साथ खड़ा हुआ High Court, एक गुहार पर पलट दिया निचली अदालत का फैसला
मां-बाप की लड़ाई में बच्चे के साथ खड़ा हुआ High Court, एक गुहार पर पलट दिया निचली अदालत का फैसला

चंडीगढ़ [कमल जोशी]। मां-बाप की लड़ाई में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट 13 साल के बच्चे की भावना के साथ खड़ा नजर आया है। कोर्ट में बच्चे ने कहा, जज साहब मैं अपने पापा के साथ रहना चाहता हूं। जज ने अपने फैसले में कहा कि बच्चे की इच्छा के खिलाफ जाना न सिर्फ उसके साथ क्रूरता होगी बल्कि उसके लिए एक आघात भी होगा जो उसके भावी जीवन पर एक दाग छोड़ सकता है। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए बच्चे को पिता के साथ रहने के आदेश दिए हैं।

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वर्ष 2015 में हुआ तलाक, बच्चे की कस्टडी को लेकर कानूनी लड़ाई जारी

तेरह वर्ष के बच्चे की कस्टडी को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहे मां-बाप का वर्ष 2015 में तलाक हो गया था। कानूनी तौर पर तलाक लेने से पहले निचली अदालत में मां ने बच्चे की कस्टडी लेने के लिए दबाव न बनाने की बात स्वीकार की थी। तलाक के बाद से बेटा पिता के साथ रह रहा है, लेकिन बाद में बेटे की कस्टडी के लिए मां की याचिका स्वीकार करते हुए निचली अदालत ने मार्च, 2019 में आदेश दिया था कि नाबालिग बच्चे के कल्याण के लिए उसका पिता के बजाय मां के साथ रहना बेहतर होगा।

जज के सामने बच्चे ने पिता के साथ रहने की जताई इच्छा

इस फैसले के खिलाफ बच्चे के पिता हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जिला लीगल सर्विस अथॉरिटी के सचिव से बच्चे के पिता के साथ उसके रहन-सहन और पालन-पोषण पर रिपोर्ट मांगी थी। सचिव ने रिपोर्ट में कहा कि बच्चा अपनी दादी और पिता के साथ रह रहा है और पढ़ाई के साथ वह क्रिकेट कोचिंग भी ले रहा है। इस रिपोर्ट के बाद जस्टिस राजन गुप्ता और जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने बच्चे को अपने चैंबर में बुलाकर उससे बात की। इसके बाद अपने आदेश में कहा कि बच्चे ने पूरे उत्साह के साथ अपने पिता के साथ रहने की इच्छा जताई है। उसने अपनी मां के घर जाने की अनिच्छा भी अदालत को बताई।

बच्चे का हित देखना कोर्ट की सबसे बड़ी जिम्मेदारी 

कोर्ट ने कहा कि अगर बच्चे की कस्टडी एक अभिभावक के पास हो तो दूसरे अभिभावक को उसकी कस्टडी हासिल करने के लिए काफी मजबूत आधार की जरूरत होती है। कस्टडी के मामले में बच्चे का हित देखना अदालत की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है। अगर बच्चा स्वयं समझदार हो और अपनी इच्छा जाहिर करे तो उसे तवज्जो देना जरूरी है।

हर दूसरे व चौथे रविवार को बच्चे से मिल सकेगी मां

हाई कोर्ट ने कहा कि बच्चे की मां हर दूसरे और चौथे रविवार को बच्चे से मिल सकती है। मां को बच्चे के जन्मदिन पर तीन घंटे उसके साथ रहने की छूट होगी। गर्मियों और सर्दियों की छुट्टियों के दौरान भी वह बच्चे को क्रमश: दो और एक सप्ताह के लिए अपने साथ रख सकेगी। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बच्चे की मां भविष्य में बदले हालात में फिर से बच्चे की कस्टडी की मांग कर सकती है।

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