सरकार का फैसला, मोरनी के विद्यार्थियों के लिए बना संकट
25 से कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक स्कूलों को बंद करने की सरकार की योजना के बाद जिले के मोरनी क्षेत्र के कई स्कूलों के अस्तित्व का संकट छा गया है।
संवाद सहयोगी, मोरनी : 25 से कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक स्कूलों को बंद करने की सरकार की योजना के बाद जिले के मोरनी क्षेत्र के कई स्कूलों के अस्तित्व का संकट छा गया है। स्कूलों के बंद होने की सूचना से ही अभिभावकों में बच्चों के लिए नए स्कूल ढूंढने को लेकर चिता बढ़ा दी है। यदि सरकार ने पहाड़ी इलाके में स्थित स्कूलों को रियायत न दी तो तीन दर्जन स्कूलों पर ताला लग सकता है। मोरनी खंड शिक्षा कार्यालय के अंतर्गत 38 ऐसे स्कूल हैं, जिनमें छात्रों की संख्या 25 से कम है। स्कूलों व छात्रों के लिए संतोष की खबर केवल यह है की यदि इन स्कूलों के एक किलोमीटर के दायरे में कोई प्राथमिक स्कूल न हुआ तो इन्हें बंद नही किया जाएगा।
हालांकि शिक्षा विभाग ने खंड स्तर के अधिकारियों से जानकारी मांगी है कि कितने स्कूल ऐसे हैं जिनमे 25 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को आसपास के स्कूलों में समायोजित किया जा सकता है। खंड शिक्षा अधिकारी अपनी क्या रिपोर्ट देते हैं उसके आधार पर इन स्कूलों का भविष्य का निर्णय होगा। ये स्कूल हैं बंद होने की कगार पर
सरकार ने 1057 कम संख्या वाले स्कूलों को बंद करने के फैसले के बाद खंड मोरनी के 38 प्राथमिक स्कूल बंद होने की कगार पर हैं। इन प्राथमिक स्कूलों में धारला में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 23 है। थाना-बडियाल में 22, मोरनी व सिल्यों स्कूलों में 21, टिक्कर व बिजलाग व कांगरघाट में 20 छात्र, शेरला, महमल में 19, बैहलों व मोहड़ी में 18 ही छात्र पढ़ रहे है। गझान, शेरजवैन, खरक में 17, दयोड़ा व भोगपुर में 16, धारड़ा, साहलयों, रूणजाढाकर, लेट बटोली, खोपर, जिया में 15 छात्र संख्या है। जबकि काजड़, दाबसू, पथरोटी और मस्यून तथा बराट स्कूल में बच्चों की संख्या 12-12 है। इसके अलावा भयाल, मांजयों, बालग, भींवर और लेद स्थित प्रथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या प्रत्येक स्कूल में 10 है। मलौन, समलौठा, छामला, चपलाना, कटली व मतोली स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या का आंकड़ा 10 से भी कम है। दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में क्या हैं छोटे बच्चों की मुश्किलें
मोरनी इलाका अधिकतर दुर्गम है और यहां आने-जाने के साधन सीमित हैं। कई स्कूलों में तो अध्यापक भी प्रतिदिन पैदल जाकर छात्रों को पढ़ाई करवाते हैं। प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाई कर रहे छोटे बच्चों को या तो अभिभावक स्वयं स्कूल तक छोड़ते और लेकर आते हैं या बड़ी कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्रों के साथ भेजते हैं। अधिकतर स्कूलों तक पहुंचने के लिए छोटे बच्चों को जंगल का रास्ता तय करना पड़ता है। यदि स्कूल बंद होते हैं तो छोटी कक्षाओं के छात्रों व अभिभावकों की समस्या काफी बढ़ सकती है। क्योंकि गर्मी-बारिश में इन छात्रों को स्कूल तक लेकर जाना व लाना पेरेंट्स के लिए काफी परेशानी का कार्य होगा। कोट्स
स्कूलों के समायोजन को लेकर रिपोर्ट मांगी गई है। बंद होने की कगार पर आए सभी स्कूलों का समायोजन मुश्किल है। शिक्षा विभाग व उच्चाधिकारी इस विषय में फैसला लेंगे। जल्द उच्चाधिकारियों को इस विषय में रिपोर्ट दे दी जाएगी। -अंजू ग्रोवर, खंड शिक्षा अधिकारी, शिक्षा विभाग।