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इस शख्‍स ने दाग मिटाने के लिए 18 साल लड़ी लड़ाई, नौकरी संग हासिल किया सम्‍मान भी

लुधियाना के अमृतपाल सिंह ने खुद पर लगे दाग को मिटाने के लिए 18 साल कानूनी लड़ाई लड़ी। अपने जज्‍बे की बदौलत गणित के इस गोल्‍डमेडलिस्‍ट ने सम्‍मान की जंग जीती।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 21 Jan 2020 04:32 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jan 2020 09:59 AM (IST)
इस शख्‍स ने दाग मिटाने के लिए 18 साल लड़ी लड़ाई, नौकरी संग हासिल किया सम्‍मान भी
इस शख्‍स ने दाग मिटाने के लिए 18 साल लड़ी लड़ाई, नौकरी संग हासिल किया सम्‍मान भी

चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। 'सवाल नौकरी पाने का नहीं था, यह तो सरकार ने देनी थी, लेकिन मेरे माथे पर पैसे देकर नौकरी पाने का दाग लगे, यह मुझे बर्दाश्त नहीं था। मैं हमेशा गोल्ड मेडलिस्ट रहा। बीएससी ऑनर्स और पंजाब यूनिवर्सिटी से एमएससी मैथ में गोल्ड मेडल हासिल किया। इसके बावजूद 18 साल तक उस केस में इंसाफ पाने की लड़ाई लड़ता रहा, जिसमें मैंने कोई अपराध किया ही नहीं था।' यह कहना है लुधियाना के अमृतपाल सिंह का। अमृतपाल पर रिश्‍वत देकर नौकरी पाने का आरोप लगा था और इस कारण नौकरी के साथ-साथ सम्‍मान गंवानी पड़ी। उसने हार नहीं मानी और 18 साल तक कानूनी जंग लड़कर सम्‍मान के संग नौकरी भी हासिल की।

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एमएससी (मैथ) गोल्ड मेडलिस्ट अमृतपाल सिंह पर लगा था पैसे देकर नौकरी पाने का आरोप

अमृतपाल सिंह को 2002 में पंजाब लोक सेवा आयोग के पूर्व चेयरमैन रवि सिद्धू के रिश्वत कांड में पकड़े जाने पर हाईकोर्ट की ओर से सभी भर्तियां रद करने के कारण नौकरी से बाहर कर दिया गया था। अमृतपाल कॉलेज लेक्चरर के रूप में सिलेक्ट हुए थे। उन्हें मेडिकल के बाद नियुक्ति पत्र मिलना बाकी था, लेकिन कोर्ट ने भर्ती रद कर दीं।

केस पर नहीं था स्टे, फिर भी डेढ़ दशक तक लटके रहे 69 अध्यापक, अब मंत्री ने क्लीयर की फाइल

अमृतपाल ने कहा, 'मैं तो चुप होकर बैठ गया था। सोचा मैथ में ही पीएचडी कर लेता हूं, लेकिन 2003 में सरकार ने अखबारों में एक इश्तिहार दिया, जिसमें पैसे देकर नौकरी पाने वाले लोगों को निकाले जाने की सूची छाप दी। इसमें मेरा नाम भी था। तब मैंने ठान लिया था कि यह दाग मिटाना है। मैंने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। वहां पता चला कि सरकार ने कॉलेज अध्यापकों की भर्ती पर स्टे लिया है। वास्तव में यह स्टे अदालत ने लगाया ही नहीं था।'

अमृतपाल ने कहा, 'मैं कई जगह भटका। उच्च शिक्षा सचिवों, डीपीआइ कॉलेज से मिला। उन्हें बताया कि अदालत ने कोई स्टे नहीं लगाया है, लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी। चार महीने पहले पहली बार हिम्मत करके उच्च शिक्षा मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा से उनके ओएसडी गुरदर्शन बाहिया के जरिए मिला। उन्हें हाईकोर्ट के आदेश दिखाए कि कोर्ट ने कहीं स्टे नहीं लगाया है। हमें भी पीसीएस अफसरों की तरह नौकरी दी जा सकती है। उन्होंने पहली बार मेरे केस को देखा। इस दौरान मैं ट्यूशन पढ़ाकर गुजार करता रहा और अब एक अकेडमी चला रहा हूं।'

फाइल में कहीं नहीं था स्टे का जिक्र

अमृतपाल की लड़ाई यहीं खत्म नहीं हुई। जब मंत्री बाजवा ने अपने हायर एजुकेशन सेक्रेटरी अनुराग वर्मा से पूछा, तो उन्होंने भी यही जवाब दिया था कि कॉलेज टीचर्स की भर्ती पर स्टे लगा है। मंत्री ने केस उनके सामने रखा और पूछा कि बताएं कहां लगा है स्टे? तो पूरी फाइल पढऩे के बाद उन्होंने कहा कि स्टे नहीं लगा है।

अब दिक्कत यह हुई कि इन सभी कॉलेज अध्यापकों को नौकरी देने की फाइल मुख्यमंत्री ऑफिस में चली गई। जहां एडिशनल चीफ सेक्रेटरी विनी महाजन, हायर एजुकेशन सेक्रेटरी और एजी पंजाब के नुमाइंदे की एक कमेटी गठित की गई। जो लोग नौकरी पाने से वंचित रह गए थे, उनमें से 48 के नाम तो पहले ही क्लीयर कर दिए थे, इस कमेटी ने 19 नाम और क्लीयर कर दिए।

69 अध्यापकों को जल्द सौंपे जाएंगे नियुक्ति पत्र

जागरण से बातचीत में मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा ने कहा, समझ में नहीं आता कि जिस केस में कोई स्टे ही नहीं है, उसे इतने सालों से लटका कर रखा गया। क्या किसी भी सेक्रेटरी, मंत्री ने फाइल पढऩे की कोशिश नहीं की? इन पर क्यों कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? कॉलेजों में बच्चों की पढ़ाई का इससे कितना नुकसान हुआ है? बाजवा ने बताया कि अब 69 अध्यापकों के मामलों की फाइल क्लीयर कर दी गई है। जल्द ही उन्हें नियुक्ति पत्र सौंंपे जाएंगे।

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