2008 में परमाणु समझौते के मुद्दे पर संकट में घिरी मनमोहन सरकार के खेवनहार बने लिबड़ा का निधन
यूपीए सरकार की संकट की घड़ी में खेवनहार बनकर उभरने वाले तत्कालीन अकाली सांसद सुखदेव सिंह लिबड़ा का शुक्रवार को निधन हो गया।
चंडीगढ़ [जय सिंह छिब्बर]। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की संकट की घड़ी में खेवनहार बनकर उभरने वाले तत्कालीन अकाली सांसद सुखदेव सिंह लिबड़ा का शुक्रवार सुबह निधन हो गया। 87 वर्षीय लिबड़ा काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके परिवार में पत्नी और दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं।
पंथ रत्न जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा के करीबी रहे लिबड़ा 1985 में पहली बार विधायक बने थे। वह लगभग 17 वर्ष तक शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) से जुड़े रहे। वर्ष 2004 में उन्होंने अकाली दल से रोपड़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनी पहली यूपीए सरकार के कार्यकाल में वे संसद में अकाली दल के व्हिप रहे।
साल 2008 में जब डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को अमेरिका से परमाणु समझौता करने पर विपक्षी दलों का तीखा विरोध झेलना पड़ रहा था तो लिबड़ा ने अपनी राजनीतिक बंदिशों से अलग फैसला किया। सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के समय उनकी नामौजूदगी के चलते मनमोहन सरकार बच गई थी।
लिबड़ा को इस कदम के लिए जहां कांगे्रस में काफी सम्मान मिला वहीं अकाली नेताओं की तीखी नाराजगी झेलनी पड़ी। अकाली दल ने उन्हें बाहर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्हें फतेहगढ़ साहिब की आरक्षित सीट से लड़ाया और उन्होंने जीत हासिल की। पिछले विधानसभा चुनावों से पहले वे एक बार फिर अपने सियासी जीवन की शुरुआत वाले अकाली दल में शामिल हो गए थे।
कैप्टन ने जताया शोक
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पूर्व सांसद सुखदेव सिंह लिबड़ा के निधन पर शोक जताया है। कैप्टन ने लिबड़ा को सिद्धांतों की राजनीति करने वाले राजनेता बताते हुए कहा है कि वे जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़े हुए थे। उनके जाने से राज्य एक सीधे और सच्चे सिख राजनेता से विहीन हो गया है। लिबड़ा ने पद और ताकत की बजाए हमेशा सिद्धांतों को अहमियत दी।
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