परिवार ही एकमात्र संगठन, जहां से मनुष्य को मिलते हैं संस्कार : मुनि विनय कुमार आलोक
मुनि विनय आलोक ने चंडीगढ़ के सेक्टर-24 स्थित अणुव्रत भवन के तुलसी सभागार में मनुष्य को मिलने वाले संस्कारों को लेकर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि मनुष्य जब पैदा होता है तब उसमें कोई मानवीय गुण नहीं होते। वह दूसरों के सान्निध्य में रहकर सभी गुणों को सीखता है।
चंडीगढ़, जेएनएन। संस्कार ऐसी चीज हैं, जोकि हम दुनिया में आने के बाद अपने परिवार से सीखते हैं। यह ऐसी चीज है जोकि हमें मिलती तो घर से है लेकिन एक बार मिलने के बाद पूरा जीवन हमारे साथ चलती है। यह शब्द मुनि विनय कुमार आलोक ने सेक्टर-24 स्थित अणुव्रत भवन के तुलसी सभागार में कहे। उन्होंने कहा कि व्यक्ति और समाज के जीवन का महत्व साधारण नहीं बल्कि व्यापक और गहरा है। मनुष्य जब पैदा होता है तब न तो उसमें कोई मानवीय गुण होते हैं और न ही कोई सामाजिक गुण। दूसरों के सान्निध्य और संपर्क में रह कर ही वह सभी गुणों को सीखता है। पहली बार बालक का परिचय अपने समाज में प्रचलित विभिन्न धारणाओं से होता है।
परिवार ही एकमात्र संगठन है जो उसे सुसंस्कारित बनाने की दिशा में सबसे पहले प्रवृत्त होता है और उसे यह बताना प्रारंभ करता है कि समाज में रहते हुए उसे किन आचरणों को करना है और किनसे दूरी कायम करनी है। समाज में रहते हुए किन परंपराओं के अनुकूल चलना है और किन परंपराओं के प्रतिकूल। समाज की आधारभूत मान्यताओं और विश्वासों को व्यक्ति के मन में प्रतिष्ठित करने का कार्य भी परिवार के द्वारा ही किया जाता है, क्योंकि वही व्यक्ति को समाज की सांस्कृतिक परंपराओं के हस्तांतरण का माध्यम होता है। ऐसा करके वह व्यक्ति और समाज के बीच तथा एक पीढ़ी और दूसरी के बीच संस्कृति की निरंतरता को कायम करता है।
कार्य-कारण पर निर्भर
मुनि विनय कुमार ने कहा कि कार्य यदि किसी भी कारण पर निर्भर हो तो वह सफल होता है। उन्होंने कहा कि हमें जो भी कुछ सीखया जाता है, तो उसके साथ ही उसके सीखने के फायदों के बारे में भी बताया जाता है। जिस समय हमें कोई बोल रहा होता है तो शायद हम उस बात को समझ नहीं पाते लेकिन जब मौका आता है तो हमें पूरानी बातें याद आती है कि किसी ने हमें कहा था और उसे किस प्रकार से करना है इसके बारे में भी बताया गया था।