इंटरनेशनल व्हाइट कैन-डे पर दिखा दिव्यांग के हाथों के हुनर
इनके हाथों में एक विशेष कला है। जो स्वाद के रूप में पहचानी जा सकती है। अपने हाथों का जादू इन्होंने सोमवार को आशा किरण-46 में दिखाया।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : इनके हाथों में एक विशेष कला है। जो स्वाद के रूप में पहचानी जा सकती है। अपने हाथों का जादू इन्होंने सोमवार को आशा किरण-46 में दिखाया। जहां इंटरनेशनल व्हाइट कैन-डे के रूप में पांच दिव्यांग बच्चों को पहली बार लाइव कुकिंग कांटेस्ट के लिए आमंत्रित किया गया। इसमें ट्राईसिटी और आसपास के पांच कुक को बुलाया गया, जो देखने में तो अक्षम थे, मगर इनके हाथों के जादू ने सभी को इनकी खासियत से अवगत करवाया। खुशबू से पता चल जाता है खाना पका या नहीं..
मीता चंडीगढ़ से हैं और इन्होंने कांटेस्ट में हलवा बनाया। उन्होंने कहा कि मुझे खुशबू से पता चलता है कि कोई डिश बनी या नहीं। कब हल्की आंच देनी है और कब तेज। बचपन से आखों की रोशनी कमजोर रही। मगर मुझे खाना बनाना हमेशा से पसंद रहा। शुरुआत से मेरी मां ने मुझे खाना बनाना सिखाया। फिर धीरे-धीरे मैंने खाना खुद बनाना सीखा। अब मैं हर तरह की डिश बना सकती हूं। मेरे लिए खाना बनाना, जैसे खुद को नए पंख लगाने जैसा है, जिससे की मैं अपनी एक अलग पहचान बना सकती हूं। खाना बनाने के लिए तीन महीने दिल्ली में कोर्स किया..
सोनी गुप्ता रामदरबार से हैं, सेट्रल बैंक ऑफ इंडिया में कर्ल्क के तौर पर कार्यरत सोनी को खाना बनाना इतना पसंद है कि इन्होंने इसके लिए खास तीन महीने का कोर्स दिल्ली जाकर किया। उन्होंने कहा कि खाना खाने का मुझे शुरू से ही शौक रहा। पढ़ाई के अलावा मुझे इसमें खास रुचि रही। मुझे लगता है कि आपको भगवान परफेक्ट बनाता है। आपमें कोई कमी नहीं होती, आपको विश्वास से खुद को प्रदर्शित करना आना चाहिए। मैं हर उस व्यक्ति और महिला को स्पोर्ट करना चाहुंगी, जो दिव्यांग है और आगे बढ़ना चाहता है। टीचर हूं दूसरों को रोशनी दिखाती हूं.
पूजा अंबाला से हैं और पटियाला के एक ब्लाइंड स्कूल में टीचर के रूप में कार्य कर रही हैं। उन्होंने कहा कि दिव्यांग होने का ये मतलब नहीं कि आप कमजोर हैं। मैंने कुकिंग सीखी, टीचिंग करती हूं। ऐसे में मैं खुद को कभी कमजोर नहीं मानती। दिव्यांग लड़कियों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत शादी के दौरान आती है, जब आपको देखने वाले सीधा मना कर देते हैं। मेरे अनुसार किसी की कमजोरी नहीं किसी की खासियत देखकर उसे चुना जाना चाहिए। खुद को बेहतर बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी.
वनिता शर्मा सेक्टर-34 स्थित गवर्नमेट मॉडल हाई स्कूल में अध्यापक के तौर पर कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि वह 17 वर्ष की उम्र से ही कुकिंग सीख रही है। शुरुआत मां के हाथों ट्रेनिंग लेकर हुई फिर विशेष रूप से दिल्ली में जाकर 3 महीने ट्रेनिंग ली। मैंने कभी खुद को नकारात्मक रूप से नहीं लिया। ऐसे में हमेशा खुद को बेहतर बनाना की सोची। मेरे पित और बेटे ने भी मेरा साथ दिया। मेरे अनुसार आपकी जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए आपका परिवार सबसे महत्तवपूर्ण कार्य करता है। सिखाने आई थी, मगर खुद सीख कर जा रही हूं..
कुकिंग सेशन में सभी दिव्यांग प्रतिभागियों की मदद कर रही थी प्रियंका। उन्होंने कहा कि मेरे लिए ये बहुत ही दिलचस्प रहा। मैं इन लोगों की मदद करने के लिए आई थी, मगर देखा कि ये लोग पहले ही अपने काम में निपुण हैं। ये खुद मसाले चुनने से लेकर विभिन्न कार्य कर लेते हैं। ऐसे में मैंने इनसे सीखा कि सिर्फ खुशबू से ही कैसे पता करें कि खाना पका या नहीं।