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..जब कबूतरबाज जैसे शब्द सुनने को मिले

वर्ष 2003 में आई फिल्म जी आया नूं से पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री को दोबारा शुरू करने वाले मनमोहन सिंह को उन दिनों कबूतर बाज जैसे शब्द तक सुनने को मिले थे।

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Aug 2018 10:21 AM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2018 12:10 PM (IST)
..जब कबूतरबाज जैसे शब्द सुनने को मिले
..जब कबूतरबाज जैसे शब्द सुनने को मिले

शंकर सिंह, चंडीगढ़

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मेरे लिए पंजाब में फिल्म बनाना मुश्किल था। करीबन एक दशक बाद फिल्म बनाने लौटा था। जब जी आया नूं फिल्म बनाई तो लोगों ने आरोप लगाए की कितने कबूतर भेज रहे हो? ये मेरे लिए दुखद था, मगर मैंने फिल्म बनाई और वो कामयाब भी हुई। दरअसल वो फिल्म नहीं बल्कि एक मिशन था, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बाद पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री को एक नई राह दिखानी थी। इसके तहत हरभजन मान के साथ पाच फिल्म की सीरिज की थी। उन दिनों हरभजन का साथ मिला तो मैंने इस मिशन को पूरा करने की ठानी। अब पीछे मुड़कर देखता हूं तो ये कबूतरबाज जैसा शब्द मुझे सुनाई नहीं देता। खुशी होती है कि पंजाब का सिनेमा बढ़ रहा है। निर्देशक मनमोहन सिंह करीबन चार वर्ष बाद फिल्म इंडस्ट्री में वापसी कर रहे हैं। सोमवार को होटल हयात पहुंचे तो उन्होंने नए प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले इंडस्ट्री के शुरुआती दिनों की याद भी ताजा की। पहले विदेश से पंजाब आने का संदेश दिया अब जाने का दे रहा हूं..

मुझे दुख होता है आज के पंजाब को देखकर। अब पंजाब के युवाओं के पास नौकरी नहीं है। वो बेरोजगार भटक रहे हैं। इस वजह से नशा या गैंगस्टर बनना ही उनके लिए शेष रह जाता है। मेरी फिल्म का अगला विषय यही है। जहां कई हजारों लाखों पंजाबी नौजवान विदेश में जा रहा है। उनके जाने की वजह और स्थिती दोनों पर ही केंद्रित होगी फिल्म। ये भी सवाल मैं उठाना चाहता हूं कि ये युवा आखिर जाएगा भी कहां, उसे पंजाब में ही रोटी नहीं मिल रही तो विदेश ही उसे अपनाएगा। इसमें मैं सीधे-सीधे तो नहीं हां दूसरी तरह से सरकार को ही निशाने में ले रहा हूं, जिसने पंजाब के युवाओं की ये हालत की। अच्छा है फिल्म बन रही है, मगर क्वालिटी कम है

आप जिस तरह से फिल्म बनाते थे, अब जैसे बन रही है, कितना फर्क है? इस पर मनमोहन बोले कि अब फिल्म जल्दी बन जाती है। 30 दिनों में फिल्म तैयार। इससे क्वालिटी में बहुत असर पड़ा है। आपको समय लेना चाहिए, आप क्या बना रहे हैं, क्यों बना रहे हैं, ये सब पता होना चाहिए। मगर ये जरूरी चीज ही गायब लगती है। चार साल खुद को समय दिया

चार साल का लंबा गैप क्यों? पर बोले कि चार साल खुद को दिए। मैं पिछले 10 वर्षो में हर वर्ष कोई फिल्म बना रहा था। थोड़ा समय चाहता था। अलग रहकर कुछ न कुछ देखता रहा। पंजाबी फिल्म देखी, अच्छी भी लगी। अच्छा ये भी लगा कि लोग इंतजार करते हैं इन दिनों पंजाबी फिल्म के रिलीज होने का। पुराना पंजाब दिखाना चाहता था रह गया

आपका ड्रीम प्रोजेक्ट कुछ है? इस पर मनमोहन बोले हां, दरअसल मैं पुराने पंजाब पर फिल्म बनाना चाहता था। मगर इससे पहले ही अंग्रेज बन गई। मगर समस्या ये भी हुई कि इसके बाद कितनी ही फिल्म बन गई, जिसमें पुराना पंजाब दिखाया गया, मगर क्वालिटी नहीं थी। मेरे अनुसार समकालीन समय का सिनेमा बनना गायब हो गया। मैंने इक कुड़ी पंजाब दी बनाई थी, जो समय से आगे की बात करती थी। ऐसी फिल्म बनाने की ज्यादा से ज्यादा कोशिश होनी चाहिए। इससे पंजाबी फिल्म की क्वालिटी और गंभीरता दोनों बढ़ेगी।


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