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पंजाब में हर साल 900 मेगावाट से ज्यादा बढ़ रही बिजली की मांग, ये हैं इसके प्रमुख कारण

पंजाब में हर वर्ष पीक समय में बिजली की डिमांड बढ़ जाती है। राज्य में हर वर्ष 900 मेगावाट तक बिजली की डिमांड बढ़ रही है। इसका प्रमुख कारण गिरते भूजल के कारण मोटरों की क्षमता बढ़ना है। साथ ही एसी और अन्य उपकरण बिजली खपत का बड़ा कारण हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 11 Jul 2021 03:22 PM (IST)Updated: Sun, 11 Jul 2021 03:22 PM (IST)
पंजाब में हर साल 900 मेगावाट से ज्यादा बढ़ रही बिजली की मांग, ये हैं इसके प्रमुख कारण
पंजाब में हर वर्ष बढ़ रही 900 मेगावाट बिजली की डिमांड। सांकेतिक फोटो

इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। पंजाब में हर साल पीक समय में बिजली की मांग 900 मेगावाट तक बढ़ रही है, लेकिन उत्पादन बढ़ाने के बजाय सरकार ने अपने प्लांटों को बंद कर दिया, जिससे सरकार की अपनी 880 मेगावाट उत्पादन क्षमता को खत्म कर दिया। लिहाजा इस साल बिजली की बढ़ी मांग पूरी न होने से सरकार की खासी किरकिरी हुई है। बड़ा सवाल यह है कि आजकल कम बिजली खपत वाले बिजली उपकरण आने के बावजूद मांग क्यों बढ़ती जा रही है? ट्रांसमिशन लाइनें क्यों नहीं बढ़ाई जा रही हैं?

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पावरकाम के पूर्व सीएमडी बलदेव सिंह सरां के अनुसार पिछले चार साल से बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है। साल 2017 में पीक मांग 11705 मेगावाट थी जो साल 2018 में बढ़कर 12636 मेगावाट, 2019 में 13633 मेगावाट हो गई। साल 2020 में कोविड के कारण इंडस्ट्री, दुकानें, माल , सिनेमा आदि के खोलने पर पाबंदियां लग गईं, जिस कारण मांग 13148 मेगावाट रही, लेकिन 2021 में यह 14500 मेगावाट को पार कर गई है और इसके अगले साल 15500 को पार करने की संभावना है।

पंजाब के अपने उत्पादन संयंत्र, प्राइवेट थर्मल प्लांटों और गैर पारंपरिक स्रोतों से मिलने वाली ऊर्जा व बाहर के संयंत्रों में हमारे हिस्से की बिजली को यदि मिला लिया जाए तो यह मात्र 11200 मेगावाट बनती है। शेष मांग दूसरे राज्यों के साथ बैंङ्क्षकग या कुछ समय के लिए खरीदकर पूरी की जा रही है। बिजली की खपत बढ़ने में सबसे बड़ी हिस्सेदारी ट्यूबवेलों पर लगी मोटरों की हैं।

साल 1991 में औसतन मोटर पांच हार्स पावर की थी। बहुत थोड़ा इलाका ऐसा था, जहां पर यह 7.5 हार्स पावर की लगी हुई थी, लेकिन आज संगरूर, बरनाला, कंडी जिलों में किसानों के पास 25 हार्स पावर की मोटरें भी लगी हैं, जबकि पावरकाम के रिकार्ड मेें कोई भी मोटर 20 हार्स पावर से ज्यादा नहीं है। अकेले संगरूर जिले की बात करें तो यहां धान की रोपाई के सीजन में खेती सेक्टर को दी जाने वाली बिजली 600 मेगावाट को क्रास कर जाती है।

खपत बढ़ने का बड़ा कारण

बेशक पावरकाम के खातों में किसानों के पास दस से पंद्रह और जिन क्षेत्रों में भूजल गहरा है, उनमें 20 हार्स पावर की मोटर लगी हैं, लेकिन किसानों ने बड़ी गिनती में इसे पावरकाम को बिना बताए बढ़ा लिया है। इसीलिए बिजली की खपत भी बढ़ती जा रही है। अपना लोड बढ़ाने के खर्च से बचने के लिए न तो किसान और शहरों में न ही आम लोग इस बारे में पावरकाम को जानकारी देते हैं।

धान का विकल्प खोजना जरूरी

एग्रीकल्चर कमिश्नर डा. बलविंदर सिंह सिद्धू का कहना है कि धान का विकल्प खोजे बिना बिजली की खपत को कम करना संभव नहीं है। सवाल सिर्फ बिजली का नहीं है, बल्कि भूजल का है। क्या किसान हर दो से तीन साल बाद अपने बोर गहरे करते रहेंगे। आज एक नई मोटर 85 हजार से ज्यादा की आती है। उसके साथ जो सामान आदि लगता है और बोर को गहरा करने जो पैसा लगता है, वह किसानों को मिलने वाली आधी सब्सिडी खा जाता है।

ऐसे बढ़ रही मांग

वर्ष          मांग (मेगावाट में)

2017      11705

2018      12636

2019      13633

2020      13148

2021      14500

(2022 में 15500 को पार करने की संभावना)


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