चंडीगढ़ में जाति प्रमाणपत्र बनवाने के नियमों में संशोधन की मांग, मध्यप्रदेश की तर्ज पर बने नियम
चंडीगढ़ में जाति प्रमाणपत्र बनाने के नियमों में संशोधन की मांग की जा रही है। इस विषय में चंडीगढ़ भाजपा अध्यक्ष अरुण सूद के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने उपायुक्त से मुलाकात कर उन्हें एक मांगपत्र सौंपा। मांग की गई कि मध्यप्रदेश की तर्ज पर चंडीगढ़ में भी नियम बने।
चंडीगढ़, जेएनएन। चंडीगढ़ में रहने वाले अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ी जाति के लोगों को जाति प्रमाणपत्र को बनवाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को लेकर चंडीगढ़ भाजपा अध्यक्ष अरुण सूद ने अन्य नेताओं के साथ मिलकर डीसी के साथ मुलाकात की। अन्य नेताओं में पिछड़ी जाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष नाथी राम मेहरा, महामंत्री ओम प्रकाश मेहरा और राजिंद्र बग्गा, अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कृष्ण कुमार और महामंत्री भरत कुमार भी शामिल थे।
चंडीगढ़ के डीसी मनदीप सिंह बराड़ के साथ बैठक में सूद ने कहा शहर में लगभग 60 प्रकार की जातियां इस वर्ग में आती हैं। वर्तमान में चंडीगढ़ में इस श्रेणी के लोगों को प्रमाणपत्र बनवाना एक युद्ध को जीतने के समान है। प्रमाणपत्र बनवाने के लिए दो राजपत्रित अधिकारियों से हस्ताक्षर करवाने होते हैं और साथ ही जिन अधिकारियों ने उस पर हस्ताक्षर किए हो, उनका पहचान पत्र भी साथ लगाना पड़ता है।
प्रशासन के नियमों के अनुसार अधिकतर तो राजपत्रित अधिकारी न तो लोगों के जानकार होते हैं और दूसरा कोई भी अपना पहचान पत्र देने में हिचकाता है। इससे अधिकतर लोग प्रमाण पत्र हासिल करने में असहाय महसूस करते हैं। उन्होंने उपयुक्त से आग्रह किया कि चंडीगढ़ में रहने वाले इन लोगों को प्रमाणपत्र आसानी से उपलब्ध हो सके इसके लिए नियमों में परिवर्तन करना जरूरी है। चंडीगढ़ के आसपास के प्रदेशों की तर्ज पर नियमों में परिवर्तन कर इस जाति प्रमाणपत्र के आवेदन को सत्यापित करने का अधिकार वार्ड के पार्षद को देना चाहिए। उनके सत्यापन के उपरांत चंडीगढ़ प्रशासन जाति प्रमाणपत्र को जारी करे। प्रतिनिधिमंडल की इस मांग को लेकर उपयुक्त मनदीप सिंह बराड ने सब डिविजनल मजिस्ट्रेट ( सेंट्रल ) हरजीत सिंह संधू को बुधवार तक इस समस्या को हल करने से जुड़े पहलुओं को बारीकी से चेक करने के लिए कहा और आश्वासन दिया कि आने वाले दिनों में जल्द ही इस परेशानी का समाधान किया जाएगा।
प्रशासन के पास नहीं है साल 1966 का रिकॉर्ड
उधर, अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र को हासिल करने को लेकर आ रही परेशानियों के बारे में प्रतिनिधिमंडल ने उपायुक्त को बताया कि इस श्रेणी के लोगों को प्रमाणपत्र लेने के लिए वर्ष 1966 का रिहायशी प्रमाणपत्र संलग्न करना होता है। इस विषय पर प्रदेश अध्यक्ष अरुण सूद ने उपायुक्त को बताया कि चंडीगढ़ प्रशासन के पास खुद का रिकॉर्ड भी वर्ष 1966 का नहीं है, ऐसे में आवेदन करने वाला व्यक्ति कहां से रिहायशी प्रमाणपत्र संलग्न करेगा। उन्होंने मध्यप्रदेश की सरकार के नियम का हवाला देते हुआ कहा कि वहां पर यदि कोई व्यक्ति कम से कम 5 वर्षों का अपना वोटर कार्ड और आधार कार्ड संलग्न करता है तो उसका जाति प्रमाणपत्र जारी हो जाता है। क्यों न चंडीगढ़ में भी मध्यप्रदेश की तर्ज पर प्रमाण पत्र जारी करने के लिए चंडीगढ़ के नियमों में संशोधन किया जाए और साथ ही जो व्यक्ति प्रमाणपत्र का आवेदन कर रहा हो उसी के दस्तावेजों को लिया जाए न की उनके बुजुर्गों का। इस संशोधन से चंडीगढ़ में अनुसूचित जाति के लोगों को भी आसानी से प्रमाणपत्र प्राप्त हो सके।
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