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पंजाब विधानसभा उपचुनाव में हार से भाजपा के लिए मिशन 2022 की चुनौती बढ़ी

पंजाब में हुए विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की हार ने उसे बड़ा झटका दिया है। इससे पार्टी के मिशन 2022 के मद्देनजर उसकी चुनौती बढ़ गई है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 26 Oct 2019 09:35 AM (IST)Updated: Sun, 27 Oct 2019 08:23 AM (IST)
पंजाब विधानसभा उपचुनाव में हार से भाजपा के लिए मिशन 2022 की चुनौती बढ़ी
पंजाब विधानसभा उपचुनाव में हार से भाजपा के लिए मिशन 2022 की चुनौती बढ़ी

चंडीगढ़, जेएनएन। पंजाब में विधानसभा उपचुनाव के परिणाम में अगर किसी पार्टी ने खोया, तो वह है भारतीय जनता पार्टी। फगवाड़ा और मुकेरियां में मिली हार से भाजपा ने न सिर्फ अपनी सीट गंवा दी, बल्कि इससे उसके मिशन-2022 की तैयारियों को भी झटका लगा है। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा लगातार शिरोमणि अकाली दल पर इस बात का दबाव बढ़ा रही थी कि  गठबंधन में उसे ज्यादा सीटें दी जाएं। वहीं, जिस प्रकार से हरियाणा में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन टूटा और भाजपा सरकार बनाने के जादुई आंकड़े से पीछे रह गई, इससे भी शिअद को खासी राहत मिली है।

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पार्टी के संगठनात्मक ढांचे पर भी उठने लगी अंगुलियां

उपचुनाव में हार का सीधा असर भाजपा के प्रदेश संगठन पर पड़ना तय माना जा रहा है। भाजपा चाहती है कि उसे 2022 में शिरोमणि अकाली दल से ज्यादा सीटें मिले। इसके लिए उसे अपने संगठन के कील-कांटे कसने होंगे। भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव दिसंबर में होना है। भाजपा के लिए उपचुनाव में मिली हार इसलिए भी खासी परेशानी वाली है। क्योंकि पार्टी केंद्रीय राज्य मंत्री सोमप्रकाश की सीट भी हार गई, जहां से भाजपा ने विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक बनाई थी।

पार्टी नेताओं ने साधी चुप्पी, प्रदेश अध्यक्ष श्वेत मलिक के इस्तीफे की चर्चा भी शुरू

महत्वपूर्ण यह है कि दो उपचुनाव हारने के बाद भाजपा ने चुप्पी साध ली है। हरियाणा में भाजपा आशानुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई, तो वहां के प्रधान सुभाष बराला ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन पंजाब में सौ फीसद हार के बाद पार्टी के किसी भी नेता ने न तो हार की जिम्मेदारी ली है और न ही इस संबंध में कोई आधिकारिक बयान जारी किया है।

पार्टी के अंदर यह चर्चा शुरू हो गई है कि हार के बाद प्रदेश प्रधान श्वेत मलिक को इस्तीफा देना चाहिए, क्योंकि भाजपा न सिर्फ दोनों सीटें हारी, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को सबसे करारी हार उन्हीं के गृह क्षेत्र में हुई थी। अमृतसर से केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी चुनाव हार गए थे। फगवाड़ा ही ऐसी सीट रही, जहां कांग्रेस के प्रत्याशी बलविंदर सिंह धालीवाल 26,116 वोट लेकर चारों उपचुनाव में सबसे बड़ी जीत हासिल की।

ऐसे में मिशन 2022 के लिए भाजपा के लिए नई चुनौती पैदा हो गई है। ऐसे में शिरोमणि अकाली दल पर भाजपा की ओर से ज्यादा सीटें देने का दबाव भी कम हो जाएगा। गौरतलब है कि 117 विधानसभा क्षेत्रों वाले पंजाब में भाजपा 23 सीटों पर चुनाव लड़ती है।

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