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Punjab New CM: कांग्रेस के दो जट्ट सिख नेताओं की लड़ाई में दलित नेता चन्‍नी ने मारी बाजी, जानें आखिरी वक्त में कैसे बदली तस्वीर

Punjab New CM पंजाब कांग्रेस के दो जट्ट सिख नेताओं की लड़ाई का फायदा दलित नेता चरणजीत सिंह चन्‍नी को मिला। चन्‍नी शुरू में कहीं रेस में नहीं थे लेकिन सुखजिंदर सिंह रंधावा और नवजोत सिंह सिद्धू की सीएम पद को लेकर खींचतान से अंतिम क्षणों में तस्‍वीर बदल गई।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 20 Sep 2021 12:28 AM (IST)Updated: Mon, 20 Sep 2021 06:56 AM (IST)
Punjab New CM: कांग्रेस के दो जट्ट सिख नेताओं की लड़ाई में दलित नेता चन्‍नी ने मारी बाजी, जानें आखिरी वक्त में कैसे बदली तस्वीर
चरणजीत सिंह चन्‍नी, सुखजिंदर सिंह रंधावा और नवजोत सिंह सिद्धू की फाइल फोटो।

चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। Punjab New CM: कांग्रेस ने पंजाब के विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह एक दलित को सीएम बनाने का प्रयोग किया गया है, वह पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं के गले से नहीं उतर रहा। दरअसल, असली कहानी किसी दलित के हाथ में कमान देने के प्रयोग की नहीं, बल्कि दो जट सिख नेताओं सुखजिंदर सिंह रंधावा और नवजोत सिंह सिद्धू की लड़ाई में दलित नेता चरणजीत चन्‍नी के हाथ बाजी लगने की है। पार्टी की ओर से अब यह प्रचार किया जा रहा कि पंजाब में 32 फीसद दलित वोट के लिए कांग्रेस ने एक बड़ा फैसला लिया है, लेकिन ऐसा नहीं है। बस कोई राह न मिलने पर उठाया गया कदम है।

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चन्नी का नाम आने पर सहमत हुए सिद्धू, रंधावा के घर बंटने लगी थी मिठाई

शुक्रवार से शनिवार शाम तक चरणजीत सिंह चन्नी का नाम कहीं नहीं था। शनिवार को हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक के दौरान जब हिंदू नेता के रूप में सुनील जाखड़ का नाम आया, तो सुखजिंदर सिंह रंधावा ने इसका विरोध किया। रंधावा ने कहा कि पंजाब में जट्ट सिख को ही मुख्यमंत्री के रूप में आगे किया जाना चाहिए, क्योंकि पंजाब सिख बहुल राज्य है। उन्होंने मीटिंग में यह भी दलील दी कि हिंदू को मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए कई राज्य हैं, लेकिन सिखों के पास केवल पंजाब ही है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो विधानसभा के चुनाव में सिखों के वोट नहीं मिलेंगे।

रंधावा ने यह भी कहा कि उनके नाम पर विचार क्यों नहीं किया जा रहा है। उनके इतना कहते ही चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा कि अगर जट्ट सिख को मुख्यमंत्री बनाया जाता है, तो दलित को उपमुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। पंजाब में सबसे ज्यादा आबादी उन्हीं की है।

वहीं, रंधावा का नाम आगे आने पर पार्टी के प्रदेश प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू ने तब तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उन्होंने हाईकमान से साफ कर दिया कि यदि कोई जट्ट सिख मुख्यमंत्री बनाना है तो मुझे सीएम बनाया जाए। पार्टी ने शुक्रवार को ही सुखजिंदर सिंह रंधावा को मना लिया था कि वह जाखड़ का विरोध न करें, लेकिन शनिवार सुबह से ही उन्होंने फिर से अपने नाम की रट लगानी शुरू कर दी।

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इसके चलते चंडीगढ़ के एक होटल में पर्यवेक्षकों ने सभी विधायकों को बुलाया और उनका विचार जाना। इस मीटिंग के दौरान भी सुनील जाखड़ को ही सबसे ज्यादा 40 विधायकों ने वोट दिया, जबकि सुखजिंदर सिंह रंधावा को केवल 20, सिद्धू को 12 विधायकाें का समर्थन मिला। परनीत कौर सबसे पीछे रहीं।

दोपहर बाद ही इस वोटिंग के आधार पर सूचनाएं आने लगीं कि सुनील जाखड़ को मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। इसी दौरान चर्चा चली कि अगर नवजोत सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाया जाता है, तो उनकी जगह खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशू को कांग्रेस के प्रदेश प्रधान की कमान क्यों न सौंप दी जाए, लेकिन इस पर सहमति नहीं बनी।

इसके बाद सुखजिंदर रंधावा का नाम मुख्यमंत्री के रूप में चल पड़ा और सभी विधायक उनके घर पर उन्हें बधाइयां देने लगे। टीवी चैनलों पर ऐसी खबरें देख कर पार्टी हाईकमान ने रंधावा को संदेश भिजवाया कि वह मुख्यमंत्री के लिए अपना नाम वापस ले लें। संदेशवाहक जब रंधावा के घर पहुंचे तो बाहर समर्थकों का तांता लगा था और मिठाइयां बांटी जा रही थीं। उन्होंने रंधावा को बताया कि वह मुख्यमंत्री पद की रेस में नहीं हैं।

रंधावा का नाम चलने पर फोन बंद कर होटल से पौना घंटा गायब रहे नवजोत सिंह सिद्धू

नवजोत सिंह सिद्धू का दबाव इतना था कि जब उनकी (सिद्धू की) बात सुनी नहीं जा रही थी तो वह नाराज होकर होटल से निकल गए। लगभग पौना घंटा हाईकमान के नेता व पर्यवेक्षक उन्हें ढूंढ़ते रहे। उन्होंने अपना फोन भी बंद कर लिया। सिद्धू व रंधावा जट्ट सिख समुदाय से हैं। उनकी लड़ाई के कारण अंतत: दलित नेता को मुख्यमंत्री के रूप में आगे किया गया। इस बीच फतेहगढ़ साहिब से सांसद डा. अमर सिंह का नाम भी आया, लेकिन उनके नाम पर सहमति नहीं बन सकी, तो चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर नवजोत सिद्धू ने सहमति दे दी।

हालांकि, रंधावा ने कहा कि उन्हें पद का कोई लालच नहीं है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि वह इस बात से खासे नाराज दिखाई दिए। उन्होंने इस बारे अपने समर्थक विधायक कुलबीर सिंह जीरा, मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा से से सलाह की, लेकिन तब तक बाजी हाथ से निकल चुकी थी और तय हो गया था कि पंजाब को अपना पहला दलित मुख्यमंत्री मिलेगा।


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