Move to Jagran APP

प्रकृति और संस्कृति की झलक है इको फ्रेंडली गणेश चतुर्थी

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़: शुभ दिन, यानी त्योहारों के दिन। जब हवा में भी खुशी लहरा रही होती है। गणेश चतुर्थी पर प्रकृति और संस्कृति की झलक है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Sep 2018 11:34 AM (IST)Updated: Fri, 14 Sep 2018 11:34 AM (IST)
प्रकृति और संस्कृति की झलक है इको फ्रेंडली गणेश चतुर्थी
प्रकृति और संस्कृति की झलक है इको फ्रेंडली गणेश चतुर्थी

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़: शुभ दिन, यानी त्योहारों के दिन। जब हवा में भी खुशी लहरा रही होती है, ऐसे में आती है गणेश चतुर्थी। जिसे शुभ शुरूआत कहा जाता है। इसी शुरूआत को इको फ्रेंडली होकर मना रहे हैं मराठी लोग। जिन्होंने महाराष्ट्र भवन-19 में वीरवार को इको फ्रेंडली तकनीक से बनी गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना की। शाम 7.00 बजे इसके लिए सभी समुदाय के लोगों पूजा पाठ कर मूर्ति स्थापना की। इसके बाद अब से 10 दिनों तक पूजा और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता रहेगा।

loksabha election banner

प्रकृति और संस्कृति दोनों का ध्यान रखकर करते हैं सामूहिक स्थापना

सोसाइटी के प्रेसिडेट एमबी साने ने कहा कि गणेश चतुर्थी यूं तो महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाया जाता है, मगर अपने राज्य से दूर रहकर हम इसे सामूहिक रूप से मनाते हैं। सोसाइटी में शहर के बड़े डॉक्टर्स, इंजीनियर, प्रोफेसर और हर तबके के लोग जुड़े हैं। ऐसे में हम सब रोज शाम को इकट्ठा होकर पूजा पाठ करते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद उठाते हैं।

गणेश जी हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं

इसरो की एससीएल लेब से जुड़े वैज्ञानिक उदय खमबेटे अपने पूरे परिवार के साथ महाराष्ट्र भवन-19 पहुंचे। उन्होंने बताया कि चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, गणेश चतुर्थी के दस दिनों का जश्न हम हर शाम मनाने आते हैं। पुणे में हमारे घर में हर चतुर्थी पर गणेश जी की स्थापना से लेकर विसर्जन होता है, लेकिन साल 2001 में चंडीगढ़ आने के बाद से इसे इसी भवन में मनाते आ रहे हैं।

गणपति जी घर की याद दिलाते हैं ..

क्राइम इनवेस्टिगेशन ब्रांच में इंस्पेक्टर राहुल मूले साल 2014 में महाराष्ट्र से चंडीगढ़ आए। उन्होंने बताया कि हमारे घर में पारंपरिक तौर पर गणेश चतुर्थी को मनाया जाता है। मैं बचपन से इस त्योहार के साथ जुड़ा हूं। मूर्ती को सजाने से लेकर पकवान बनाने तक हर कार्य मैं करता था। आज जब घर से दूर हूं तो यहीं भवन में आकर ही इसे मनाता हूं। इस उत्सव के साथ ही मैं अपने घर में बिताए बचपन की यादों में भी खो जाता हूं।

अपने समुदाय के लोग मुझे गणपति बप्पा की वजह से ही मिले..

डॉ. मनोज पीजीआइ में कार्यरत हैं। वह अपने पूरे परिवार के साथ हर साल गणपति चतुर्थी मनाने आते हैं। चंडीगढ़ में आने के बाद मुझे अपने समुदाय के लोग यहीं आकर मिले। मैं हर किसी को यहीं से जान पाया। हॉस्पिटल में कितनी भी व्यस्तता हो, यहां हर शाम तीन से चार घंटे परिवार समेत जरूर आता हूं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.