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तो सत्‍ता विरोधी लहर से बचने काे कांग्रेस ने पंजाब में खेला मुख्यमंत्री बदलने का कार्ड, चुनावी वादे न पूरा ह‍ोने से बढ़ा दबाव

Punjab CM Change पंजाब में कांग्रेस द्वारा मुख्‍यमंत्री पद में बदलाव का बड़ा कारण अगले विधानसभा चुनाव में एंटी इनकंबेंसी से होने वाले नुकसान का डर भी है। पिछले चुनाव के समय किए गए वादे पूरे नहीं होने से कांग्रेस पर दबाव बढ़ गया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 19 Sep 2021 02:21 PM (IST)Updated: Sun, 19 Sep 2021 06:52 PM (IST)
तो सत्‍ता विरोधी लहर से बचने काे कांग्रेस ने पंजाब में खेला मुख्यमंत्री बदलने का कार्ड, चुनावी वादे न पूरा ह‍ोने से बढ़ा दबाव
पंजाब के निवर्तमान सीएम कैप्‍टन अमरिंदर सिंह और कांग्रेस की राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष सोनिया गांधी की फाइल फोटो।

चंडीगढ़, [कैलाश नाथ]। Punjab CM Change: पंजाब में मुख्‍यमंत्री को बदलना कांग्रेस की अगले विधानसभा चुनाव में सत्‍ता विरोधी लहर के नुकसान से बचने की काेशिश मानी जा रही है। ऐसे में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का तख्ता पलट कोई अकास्मिक घटना नहीं है। कांग्रेस ने एक साल पहले ही इस बात का अंदाजा लगा लिया था कि सरकार और कांग्रेस के प्रति जो एंटी इनकंबेंसी है, उसका बोझ उठाकर वह 2022 के विधान सभा चुनाव में वह अपनी नाव को पार नहीं लगा पाएगी।

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कांग्रेस की चिंता यह भी थी कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के सत्‍ता में रहते हुए वह पंजाब में नई लीडरशिप को कभी भी डेवलप नहीं कर सकती है। इसीलिए कांग्रेस ने योजनाबद्ध तरीके से नवजोत सिंह सिद्धू को कैप्टन के खिलाफ खड़ा किया और बाद में कैप्टन को मुख्यमंत्री पद से हटाकर सरकार के प्रति एंटी इनकंबेंसी को भी खत्म करने की कोशिश की।

 ब्यूरोक्रेसी की आड़ में 2017 के चुनावी वायदों पर डाला पर्दा

कांग्रेस ने 12 सितंबर 2020 को उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व पार्टी के महासचिव हरीश रावत को पंजाब कांग्रेस का प्रभारी बनाया। रावत ने पंजाब का चार्च लेते ही सबसे पहले एक साल से अलग-थलग पड़े नवजोत सिंह सिद्धू को सक्रिय किया। पंजाब के सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को पता था कि सिद्धू ही हैं जो कैप्टन के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं। सिद्धू कांग्रेस के एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के कप्तान हैं। उनके कप्तान तो राहुल गांधी है।

हरीश रावत के प्रभारी बनने के बाद सिद्धू ने धीरे-धीरे ट्विटर पर कैप्टन के खिलाफ माहोल को गर्म करना शुरू कर दिया। सिद्धू सीधे-सीधे कैप्टन अमरिंदर सिंह पर हमला करते लेकिन पार्टी हाईकमान ने कभी इसकी तरफ तवज्जो नहीं दिया और उन्‍हें रोकने की कोशिश नहीं की। एक बारगी स्थिति तो ऐसी भी आ गई जब कैप्टन ने खुल कर कह दिया कि सिद्धू अगर चाहे तो पटियाला से उनके खिलाफ चुनाव लड़ सकते है। उनको उनकी लोकप्रियता का पता चल जाएगा।

कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ बगावत

सिद्धू के बोलने के बाद धीरे-धीरे माझा ब्रिगेड कहे जाने वाले सुखजिंदर सिंह रंधावा, तृप्त राजिंदर सिंह रंधावा, सुखबिंदर सिंह ने भी कैप्टन के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया। मामला इतना उलझा की कांग्रेस हाईकमान को तीन सदस्यीय एक कमेटी बनानी पड़ी। इस कमेटी ने पंजाब के सभी विधायकों व नेताओं के साथ मुलाकात की। इसके बाद कांग्रेस ने कैप्टन की आपत्ति के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनाया गया।

सिद्धू के प्रधान बनने के बाद पंजाब में दो पावर सेंटर तैयार हो गए। कैप्टन ने पहले भले ही कहा कि जब तक सिद्धू उनसे माफी नहीं मांगते है तब तक वह उनके ताजपोशी समारोह में शामिल नहीं होंगे। हालांकि बाद में कैप्टन ने नरम रुख अपनाया और वह सिद्धू के ताजपोशी समारोह में पहुंचे। इसके बाजवूद कांग्रेस सिद्धू और कैप्टन खेमे में बंट गया।

एंटी इनकंवेंसी को खत्म करना था मिशन

2017 में कांग्रेस ने घर-घर रोजगार, कर्जा माफी, बेअदबी कांड के दोषियों को सजा दिलवाने, निजी थर्मल प्लांटों के साथ हुए समझौतों को रद्द करने, ड्रग्स को खत्म करने जैसे बड़े-बड़े वायदे किए थे। यह वायदे पूरे न होने के कारण सरकार के प्रति खासी एंटी इनकंवेंसी देखी जा रही थी। ऐसे में कांग्रेस ने कैप्टन को मुख्यमंत्री पद से हाटकर इस एंटीइनकंपेंसी को खत्म करने की कोशिश की।

नया मुख्यमंत्री के पास यह कहने को होगा कि वह अगले कार्यकाल में इन वायदों को पूरा करेंगे, क्योंकि उनके पास 2017 के वायदों को पूरा करने के लिए समय नहीं था। यही कारण है कि कांग्रेस द्वारा सबसे ज्यादा फोकस ब्यूरोक्रेसी पर किया गया। क्योंकि ब्यूरोक्रेसी कैप्टन अमरिंदर सिंह की कमजोर नब्ज थी। कैप्टन ब्यूरोक्रेसी पर सबसे ज्यादा भरोसा करते रहे।


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