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तीन महीने तक पाकिस्तानी सेना में रहे कर्नल चीमा, दंगे होने पर छोड़ना पड़ा था गांव

91 वर्ष के कर्नल बीआइएस चीमा बंटवारे के बाद पाकिस्तान में ही रहना चाहते थे। हालांकि उस दौरान हुए दंगों के कारण उनके परिवार को जालंधर आकर बसना पड़ा था।

By Edited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 07:07 AM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 03:21 PM (IST)
तीन महीने तक पाकिस्तानी सेना में रहे कर्नल चीमा, दंगे होने पर छोड़ना पड़ा था गांव
तीन महीने तक पाकिस्तानी सेना में रहे कर्नल चीमा, दंगे होने पर छोड़ना पड़ा था गांव

चंडीगढ़ [सुमेश ठाकुर]। हिंदुस्तान से ही निकला पाकिस्तान अपने अस्तित्व के बाद से ही हमारा दुश्मन रहा है। दोनों ही देशों की सेनाएं कई बार आमने-सामने आ चुकी हैं। कई बार मात खाने के बाद भी पाक समय-समय पर पीठ में छुरा घोंपने का काम करता रहता है। लेकिन शहर में एक सैन्य अधिकारी ऐसे भी हैं, जो कि आजादी से पहले ब्रिटिश सरकार की ओर से बनाई गई आर्मी, बंटवारे के बाद पाकिस्तान की सेना और वहां दंगे शुरू होने के बाद हिंदुस्तान आकर हमारी सेना में सेवा दे चुके हैं। सेवाएं दिसंबर 1946 से शुरू हुई थी और आजादी के बाद भी जारी रही।

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कर्नल बीआइएस चीमा एक ऐसा नाम हैं, जिनकी आयु अब 91 साल की है और वे शहर के सेक्टर-33 में रह रहे हैं। कर्नल चीमा रविवार को सेक्टर-36 स्थित डीएसओआइ में मिलिट्री स्कूल के गेट टू गेदर के लिए पहुंचे। कर्नल ने आजादी से पहले ब्रिटिश इंडियन आर्मी ज्वाइन की। आजादी के बाद बंटवारा हुआ और पाक बना। कर्नल पाक में रह गए और तीन माह तक वहां की सेना में काम किया।

आइएमए के तीसरे बैच के हैं कर्नल चीमा

कर्नल चीमा ने बताया कि उन्होंने मिलिट्री स्कूल झेलम से पढ़ाई की और इंडियन मिलिट्री एकेडमी से तीसरे बैच में पास हुए। आइएमए दिसंबर 1946 में पास की। जिसके बाद तुरंत नौकरी भी शुरू की दी। 15 अगस्त को देश का बंटवारा हो गया। उन्होंने बताया कि मेरा परिवार रावी के किनारे पाकिस्तान में रहता था। उनके पिताजी नंबरदार थे। उनके पास 35 गांवों की रियासत थी। वह नहीं चाहते थे कि बंटवारे के बाद हम वहां से हटें, लेकिन हिंदू-मुस्लिम की ऐसी लड़ाई शुरू हुई कि हमें पाकिस्तान छोड़कर भारत आना ही पड़ा।

आजादी के बाद तीन माह रहे पाकिस्तान

आजादी के बाद तीन महीने तक पाकिस्तान की फौज में काम करने के बाद दिसंबर 1947 में भारतीय सेना को ज्वाइन कर लिया। भारत आने का कोई इरादा नहीं था, लेकिन हिंदू-मुस्लिम, सिखों के नाम पर जो मारकाट शुरू हुई, तो मुझे पिताजी और भाई-बहनों के साथ पंजाब के जालंधर में आकर बसना पड़ा। आजादी के बाद पांच साल तक पंजाब बॉर्डर पर अपनी सेवाएं दी और उसके बाद 12 साल तक जम्मू-कश्मीर के बॉर्डर पर भी तैनात रहे।

आजादी से पहले नहीं थी हिंदू-मुस्लिम की लड़ाई

कर्नल चीमा ने बताया जब देश आजाद नहीं था तो हिंदू-मुस्लिम की कोई लड़ाई नहीं थी। उनके पिताजी हरनाम सिंह चीमा दो भाई थे। उनके चाचा ने एक मुस्लिम लड़की से शादी की थी। दादाजी ने उन्हें अपनाने से इन्कार कर दिया था लेकिन वे भी उसी गांव में रहते थे। ऊंच-नीच जरूर थी, लेकिन हिंदू-मुस्लिम की लड़ाई नहीं थी। रावी के नजदीक बने घर पर हिंदू-मुस्लिम, सिख, ईसाई हर समुदाय के लोग आते थे और सबका स्वागत होता था।

बंटवारे ने हिला दी जड़ें

कर्नल चीमा ने बताया कि उनके चाचा ने मुस्लिम लड़की से शादी की थी। जिसके कारण बंटवारे के समय पर वे पाकिस्तान के उसी गांव में रह गए। हम हिंदू थे, जिसके कारण भारत आ गए। हिंदुस्तान आने वाला परिवार बिखर गया है। मैं चंडीगढ़ में रहता हूं, तो मेरे बच्चे अमेरिका में रह रहे हैं। वहीं, मेरी बहन भी विदेश में रहती है, लेकिन जो परिवार पाकिस्तान रह गया था, वह आज भी वहीं है और अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है।


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