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चंडीगढ़ के प्रो. डॉ. लखवीर सिंह का रिसर्च वर्क, निरंजनी संप्रदाय के पहले धर्म ग्रंथ का किया देवनागरी लिपियांतरण

सिख धर्म के तीसरे गुरु अमरदास के शिष्य हिंदाला द्वारा शुरू किए गए निरंजनी संप्रदाय जिसे मनोहर दास निरंजनी द्वारा रचित पहले धर्म ग्रंथ का गुरमुखी भाषा से देवनागरी लिपियांतरण किया गया है। यह लिपियांतरण सेक्टर-42 कॉलेज में संस्कृत विभाग में कार्यरत डॉ. लखवीर सिंह ने किया है।

By Ankesh KumarEdited By: Published: Thu, 08 Apr 2021 04:51 PM (IST)Updated: Thu, 08 Apr 2021 04:51 PM (IST)
चंडीगढ़ के प्रो. डॉ. लखवीर सिंह का रिसर्च वर्क, निरंजनी संप्रदाय के पहले धर्म ग्रंथ का किया देवनागरी लिपियांतरण
चंडीगढ़ के प्रो. डॉ. लखवीर सिंह की फाइल फोटो।

चंडीगढ़, [सुमेश ठाकुर]। सिख धर्म के तीसरे गुरु अमरदास के शिष्य हिंदाला द्वारा शुरू किए गए निरंजनी संप्रदाय जिसे मनोहर दास निरंजनी द्वारा रचित पहले धर्म ग्रंथ का गुरमुखी भाषा से देवनागरी लिपियांतरण किया गया है। यह लिपियांतरण पोस्ट ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज फॉर गर्ल्स सेक्टर-42 में संस्कृत विभाग में कार्यरत डॉ. लखवीर सिंह ने किया है। डॉ. लखवीर सिंह 20 साल से इस पर रिसर्च वर्क कर रहे थे। इसे पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रकाशन विभाग ने ज्ञान ग्रंथावली के नाम से प्रकाशित किया है।

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यह लिपियांतरण निरंजनी संप्रदाय को मानने वाले लोगों के साथ-साथ धर्म पर रिसर्च वर्क करने वाले शोधकर्ता के लिए उपयोगी साबित होगा। 450 पेजों में देवनागरी लिपि में लिपियांतरण हुई ज्ञान ग्रंथावली में निरंजनी संप्रदाय के जुड़े विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है। उल्लेखनीय है कि पहली बार गुरमुखी भाषा से किसी धर्म ग्रंथ को देवनागरी लिपि में लिपियांतरण किया गया है।

लिपियांतरण और अनुवाद में फर्क

लिपियांतरण का अर्थ एक भाषा को उसी रूप में दूसरी भाषा में लिखना होता है, इसमें पहली भाषा के मूल को खत्म नहीं किया जाता। जिस भाषा में वह लिखा गया होता है उसी में उसे दूसरी लिपि में पेश किया जाता है जबकि अनुवाद में पहली भाषा का मूल खत्म हो जाता है और उसका अर्थ ही सामने दिखाई देता है।   

पांच पांडुलिपियां की शामिल

डॉ. लखवीर सिंह द्वारा लिपियांतरण हुई पुस्तक में पांच प्रकार की पांडुलिपियों को शामिल किया गया है जिसमें सबसे पहले ज्ञान मंजरी, शत प्रश्नोतरी, वेदांत परिभाषा, वेदांत छठप्रश्नी और ज्ञान चूर्ण वचनिका अहम है। यह धर्म ग्रंथ 16वी सदी में लिखा हुआ है।

कौन थे हिंदाला

हिंदाला गुरु अमरदास के शिष्य थे। जिन्होंने निरंकार पूजा को प्रोत्साहित किया है। नाम सिमरण के दौरान हिंदाला हमेशा निरंजन का जाप करते थे, जिसके कारण उन्हें मानने वाले निरंजनी संप्रदाय के नाम से जाने जाते हैं। हिंदाला के बाद निरंजनी संप्रदाय में विभिन्न संत हुए हैं, जिसमें विधि चंद, दया राम, आकल दास, गोबिंद दास, अपारदास, निहिाल दास, लेकिन मनोहर दास ऐसे संत थे जिन्होंने अपने नाम के साथ निरंजनी जोड़ा और उन्होंने हिंदाला से शुरू हुए संप्रदाय को धर्म ग्रंथ में इकट्ठा किया है।

एसी जोशी लाइब्रेरी और पंजाब भाषा विभाग पटियाला का लिया सहयोग

डॉ. लखबीर सिंह ने बताया कि वर्ष 2000 में जब मनोहर दास निरंजनी द्वारा लिखित ग्रंथ को गुरमुखी से बदलकर देवनागरी में करने का निर्णय लिया तो उसके लिए संप्रदाय पर लिखे हुुए हर पहलू पर काम करना था। इसी साेच के साथ पंजाब यूनिवर्सिटी के एसी जोशी लाइब्रेरी और पंजाब के पटियाला में स्थित भाषा विभाग का सहारा लिया। जो भी जानकारी मुझे मिली है उसे इस ग्रंथ में शामिल करने का प्रयास किया है।


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