चंडीगढ़ की पेड पार्किंग्स को लेकर दीपा दूबे ने निगम कमिश्रर को लिखा पत्र, कहा- पार्किंग से स्मार्ट फीचर गायब
चंडीगढ़ में पेड पार्किंग्स को लेकर महिला कांग्रेस अध्यक्ष दीपा दूबे ने नगर निगम कमिश्नर आनंदिता मित्रा को पत्र लिखा है। उन्होंने पेड पार्किंग्स को लेकर नगर निगम पर कई आरोप भी लगाए हैं। वहीं कमिश्रर से इन पार्किंग्स को रिव्यू करने की मांग की है।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। शहर में चल रही पेड पार्किंग्स (Paid Parkings) को लेकर महिला कांग्रेस अध्यक्ष दीपा दूबे ने नगर निगम कमिश्नर आनंदिता मित्रा को पत्र लिखा है। दूबे ने कहा कि कमिश्नर का ध्यान शहर की कथित स्मार्ट पेड पार्किंग की और दिलाना चाहती हैं। ताकि कमिश्रर इन पेड पार्किंग्स को बेहतर तरीके से रिव्यू कर इनकी समीक्षा कर सके।
दीपा दूबे ने कहा कि शहर में स्मार्ट पार्किंग का कांसेप्ट साल 2016-17 से शुरू हुआ था। साल 2017 जून में स्मार्ट सिटी के तमाम प्रोजेक्ट्स के बीच स्मार्ट पार्किंग की आधिकारिक लॉचिंग की गई थी। स्मार्ट पैकिंग को लेकर शहरवासियों के सामने बड़े बड़े दावे किए गए। यहां तक कि मोबाइल से स्मार्ट पार्किंग एप की भी शुरुआत की गई। जुलाई 2018 और उसके बाद लोकसभा चुनाव से ठीक पहले फरवरी 2019 में स्मार्ट पार्किंग कंपनी का दो बार कांट्रैक्ट कैंसिल किया गया। पहली बार कंपनी ने हाई कोर्ट से स्टे लेकर पार्किंग का कब्जा वापस ले लिया था। इन दो वर्षों में शहरवासियों से स्मार्ट पार्किंग के नाम पर बढ़े हुए रेट और घंटों के हिसाब से पैसा वसूल किया गया। समय के साथ स्मार्ट पार्किंग एप भी फेल हो गई। इस योजना में घर बैठे कोई भी मोबाइल से पार्किंग स्पेस बुक करा सकता था। साल 2019 में जोन में शहरभर की पार्किंग्स नई कंपनियों बांट दी गई। अब भी हाल पहले जैसे ही है। नगर निगम ने साल 2017 में आंखें मूंद कर पहले वाली कंपनी को स्मार्ट पार्किंग होने की हरी झंडी दे दी थी। इसके बाद दिसंबर 2017 और अप्रैल 2018 में रेट तक बढ़ा दिए गए। जबकि पार्किंग में स्मार्ट फीचर जैसे कोई सुविधा तक नहीं थी। पार्षदों की एक कमेटी ने भी 2018 में निगम सदन बैठक में रिपोर्ट सौंप कर निगम अधिकारियों के दावों की हकिकत बताई थी।
दीपा दूबे ने कहा कि कमिश्रर से निवदेन है कि आप पुरानी फाइल और सदन बैठक के मिनट्स भी खंगाले। जब फरवरी 2019 में पहली कंपनी का ठेका कैंसिल किया गया, तब करीब 100 से 200 कंपनी के साथ पार्किंग लॉट्स में तैनात कर्मी भी बेघर हो गए। जिनको निगम आउटसोर्स के माध्यम से अपने अधीन रख सकता था। अब समस्या पार्किंग लॉट्स में नया कांट्रैक्ट होने से पहले निगम के कर्मियों पर तैनाती की अतरिक्त जिम्मदारी आ पड़ी है, जबकि इनका यह काम नहीं था। निगम की अलग विंग के कर्मी की ड्यूटी पार्किंग में लागई गई। जहिर है इससे मैनपावर भी प्रभावित हुई। जिन नई कंपनी को पिछले कोविड काल मे फीस माफी देने से इन्कार की निगम हाउस की मीटिंग में सहमति बनी तब कंपनी ने पेड पार्किंग चलने में असमर्थता जाताकर निगम को फीस माफी के लिए मजबूर कर दिया।
पहले कर्मचारियाें को ही निगम के साथ जोड़ा जाना चाहिए था
दीपा दूबे ने कहा कि आउटसोर्स से पहले कर्मी निगम के साथ जोड़ लेते तो इस तरह की नौबत नहीं आती। हमारा तर्क है कि जब निगम की अन्य विंग से जुड़ी सेवा में आउटसोर्स कर्मी होते हैं तो पेड पार्किंग में क्यों नही। बिना सुविधा के इस वर्ष 20 प्रतिशत के हिसाब से लोगों से पैसे भी चार्ज किए जाने लगे। स्मार्ट फ़ीचर तो दूर की बात पार्किंग में बिना वर्दी, मास्क कर्मचारी तैनात होते हैं। यह पर्ची काटने वाले और वाहन चालक दोनों की सेहत के लिए भी घातक है। उम्मीद है कि वह जल्द ही इस समस्या का कोई हल निकाला जाए।