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पद्मश्री मिलने पर बोले 'लंगर बाबा'- अरे! एक रेहड़ी चलाने वाले को इतना बड़ा सम्मान दे दिया...

दैनिक जागरण की तरफ से जगदीश आहूजा को जब उनके घर जाकर पद्मश्री मिलने की बधाई दी गई तो उनकी जुबां से एक ही वाक्य निकाल ...अरे एक रेहड़ी चलाने वाले को इतना बड़ा सम्मान दे दिया...।

By Vikas KumarEdited By: Published: Sun, 26 Jan 2020 02:43 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 10:12 AM (IST)
पद्मश्री मिलने पर बोले 'लंगर बाबा'- अरे! एक रेहड़ी चलाने वाले को इतना बड़ा सम्मान दे दिया...
पद्मश्री मिलने पर बोले 'लंगर बाबा'- अरे! एक रेहड़ी चलाने वाले को इतना बड़ा सम्मान दे दिया...

चंडीगढ़ [डॉ. सुमित सिंह श्योराण]। पीजीआइ चंडीगढ़ के सामने बीते 38 वर्षों से गरीब और भूखे लोगों के लिए रोटी का इंतजाम करने वाले जगदीश आहूजा को देश के प्रतिष्ठित पद्मश्री अवॉर्ड के लिए चुना गया है। जिस समय अवॉर्ड की लिस्ट जारी हुई उस समय भी आहूजा लंगर लगाने में जुटे हुए थे। 85 साल के आहूजा लंगर बाबा के नाम से विख्यात हैं। जिंदगी की सारी कमाई इन्होंने गरीब लोगों को खाना खिलाने में लगा दी। हालात ऐसे भी आए कि उन्हें लंगर जारी रखने के लिए करोड़ों की संपत्ति, यहां तक कि पत्नी के नाम जमीन भी बेचनी पड़ी। दैनिक जागरण की तरफ से जगदीश आहूजा को जब उनके सेक्टर-23 स्थित घर पर जाकर पद्मश्री मिलने की बधाई दी गई तो उनकी जुबां से एक ही वाक्य निकाल ...अरे एक रेहड़ी चलाने वाले को इतना बड़ा सम्मान दे दिया...।

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 उन्होंने कहा, मेरी इच्छा है कि मेरे न रहने पर भी लंगर जारी रहे। उनकी सरकार से अपील है कि उनका टैक्स माफ कर दिया जाए, ताकि उनके परिवार पर अतिरिक्त बोझ न पड़े। बातचीत के दौरान अपनी जिंदगी के कई कड़वे अनुभवों को याद कर वे कई बार भावुक हो गठे। उन्होंने इस मिशन में अपनी पत्नी निर्मल आहूजा को खास श्रेय दिया। वर्षों से उनकी गाड़ी चलाने वाले ड्राइवर धर्मबीर ने कहा कि ऐसा त्याग और जज्बा उन्होंने किसी और में नहीं देखा।

कैंसर के कारण भी कम न हुआ हौसला, 38 साल से जारी है लंगर

जगदीश लाल आहूजा को 2008 में कैंसर हो गया, लेकिन पीजीआइ और शहर की कालोनियों में भूखों के लिए लगना वाला लंगर कभी नहीं रुका। लंगर में दो हजार से अधिक लोग खाना खाते रहे हैं। आहूजा का नियम एक ही रहा, सभी को लाइन में लगकर खाना मिलेगा।

लंगर बाबा को बेचनी पड़ी 45 एकड़ जमीन और कोठियां

लंगर के लिए बीते वर्षों में लंगर बाबा ने 45 एकड़ जमीन के साथ ही पंचकूला, चंडीगढ़ और मनीमाजरा में करोड़ों की कोठियां बेच दी, लेकिन कभी लंगर के लिए किसी से एक पैसा नहीं लिया। हर भूखे को लंगर बाबा अपना बच्चा मानते हैं और कहते हैं कि उनके लाखों बच्चे हैं। इनके लिए भूखों के समय पर रोटी खिलाना ही मंदिर-मस्जिद जाने के बराबर है।   

जगदीश लाल आहूजा ने कभी रेहड़ी पर शुरू किया था कारोबार

जगदीश वह परिवार के साथ पाकिस्तान से आए थे। आर्थिक हालत अच्छे नहीं थे। पंजाब के पटियाला, मानसा में रहते हुए रेलवे स्टेशन पर दाल बेचकर गुजारा किया। कई बार तो एक वक्त का खाना तक नहीं मिला। 1956 में चंडीगढ़ आए और रेहड़ी पर कारोबार किया। सेक्टर-26 में आहूजा फ्रूट के नाम दुकान शुरू की। लंगर की शुरुआत बेटे के जन्मदिन से की और यह क्रम आज तक जारी है।

यूटी प्रशासन दे चुका है स्टेट अवॉर्ड

जगदीश लाल को चंडीगढ़ प्रशासन की ओर से 15 अगस्त 2018 को स्टेट अवॉर्ड सहित ढेरों संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। पंजाब के पूर्व राज्यपाल और प्रशासक एसएफ रोड्रिक्स तो इनसे मिलने इनके घर तक आए हैं।


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