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चंडीगढ़ बन रहा VVIP का आशियाना, जनरल वीपी मलिक, रि. एयर चीफ मार्शल बिरेंद्र सिंह धनोआ सहित कई बड़ी हस्तियों के घर यहां

सिटी ब्यूटीफुल के नाम से मशहूर शहर चंडीगढ़ में कई वीवीआइपी हस्तियों का आशियाना है। इनमें खेल जगत के बड़े सितारे और सेना के बड़े अधिकारी भी शामिल हैं। ट्राईसिटी में जनरल वीपी मलिक रि. एयर चीफ मार्शल बिरेंद्र सिंह धनोआ सहित कई बड़े अधिकारी रहते हैं।

By Ankesh KumarEdited By: Published: Fri, 19 Feb 2021 01:46 PM (IST)Updated: Fri, 19 Feb 2021 01:46 PM (IST)
चंडीगढ़ बन रहा VVIP का आशियाना, जनरल वीपी मलिक, रि. एयर चीफ मार्शल बिरेंद्र सिंह धनोआ सहित कई बड़ी हस्तियों के घर यहां
सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ बन रहा वीवीआइपी हस्तियों का आशियाना।

चंडीगढ़ [बलवान करिवाल]। चंडीगढ़ केवल अपनी प्लानिंग और मॉर्डन आर्किटेक्चर वर्क के लिए विश्व में पहचान नहीं रखता। यह कई मायनों में दूसरे शहरों से बिल्कुल अलग है। एक तरफ डेवलपमेंट की होड़ में जंगल कंक्रीट में तब्दील हो रहे हैं। ग्रीन एरिया कम होता जा रहा है। वहीं चंडीगढ़ देश का ऐसा शहर है जिसके कुल भौगोलिक एरिया का 47 फीसद ग्रीनरी से कवर है।

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दूसरे शहरों की अपेक्षा चंडीगढ़ में यह ग्रीन कवर ट्री कवर लगातार बढ़ रहा है। इस कारण जब देश की राजधानी दिल्ली सहित एनसीआर एरिया प्रदूषण की भयंकर चपेट में होता है। चंडीगढ़ की हवा तब भी इन शहरों के मुकाबले बेहद अच्छी होती है। इस शहर की यही ग्रीनरी और खुलापन देश के वीवीआइपी लोगों को यहां बसने के लिए आकर्षित कर रहा है।

चंडीगढ़ को देखा देखी बसे शहर पंचकूला और मोहाली भी अब ट्राईसिटी के तौर पर डेवलप हो चुके हैं। चंडीगढ़ के पास बसने की हसरत पूरी नहीं हो रही तो पंचकूला में कई वीवीआइपी अपने सपनों के आशियाना गढ़ रहे हैं। रि. जनरल वीपी मलिक, रि. एडमिरल सुनील लांबा और रि. एयर चीफ मार्शल बिरेंद्र सिंह धनोआ भी ट्राईसिटी में रह रहे हैं। इसी तरह चंडीगढ़, पंचकूला और मोहाली में सेना से रिटायर्ड कई नामी और बड़े अधिकारी रह रहे हैं। कई आइएएस और आइपीएस अधिकारी भी रिटायरमेंट के बाद यहां बस गए हैं।

इन वीवीआइपी का घर भी चंडीगढ़ में

उड़न सिख मिल्खा सिंह, स्वर्गीय लेजेंड बलबीर सिंह सीनियर, क्रिकेटर हरभजन सिंह, केसरी फेम गायक बी पराक, गायक रैपर बादशाह, अभिनव बिंद्रा, क्रिकेटर युवराज सिंह, जीव मिल्खा सिंह, क्रिकेटर शुभमन गिल हाल ही में कंगना रणौत ने भी मोहाली में फ्लैट लिए हैं।

लाहौर, अमृतसर जैसे शहरों से आने वालों के लिए प्लान किया चंडीगढ़

पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चंडीगढ़ डिजाइन करने के लिए आर्किटेक्ट्स की जो टीम अप्वाइंट की, उसमें एल्बर्ट मेयर को कहा था कि यहां वह लोग आकर रहेंगे, जो पहले लाहौर, अमृतसर, पंजाब के अन्य गांवों से होंगे। उन्हें वहां खुले घरों और एरिया में रहने की आदत है, इसलिए शहर भी खुला होना चाहिए। इस शहर की प्लानिंग भी ऐसी ही की जाए। इसके बाद आइएएस एएल फ्लैचर ने गार्डन सिटी के कान्सेप्ट पर चंडीगढ़ को डेवलप करने का प्लान तैयार करने के लिए कहा। एक ऐसा शहर जिसमें सिर्फ बिल्डिंग सड़कें और इंफ्रास्ट्रक्चर न हो ग्रीनरी और गार्डन को भी बराबर जगह दी जाए। आर्किटेक्ट टीम के प्रमुख स्विस आर्किटेक्ट ली कार्बूजिए ने इन्हीं बातों का ध्यान रखते हुए चंडीगढ़ को डिजाइन करते समय पेड़ों के लिए जगह छोड़ी।

पेड़ों को पानी देने खुद निकल पड़ते थे डॉ. रंधावा

ली कार्बूजिए ने शहर को डिजान कर दिया। उसी हिसाब से रोड, पार्क, बिल्डिंग और मार्केट जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए जगह छोड़ दी।  लेकिन छोड़ी गई इस खाली जगह को हरा-भरा बनाने में जिस व्यक्ति का अहम रोल रहा, वह चंडीगढ़ के पहले चीफ कमिश्नर डॉ. एमएस रंधावा थे। डा. रंधावा को ग्रीनरी से खास लगाव था। वह विदेश में या जहां कहीं भी जाते वहां से अच्छे बीज और पौधे साथ ले आते थे। लाने के बाद यह बीज उगाने का काम किसी दूसरे के भरोसे नहीं छोड़ते थे। बल्कि खुद रोजाना सुबह इन्हें लगाने और पानी देने निकल जाते थे। ली कार्बूजिए सेंटर की डायरेक्टर दीपिका गांधी ने बताया कि चंडीगढ़ को गार्डन सिटी बनाने के लिए डॉ. एमएस रंधावा ने खूब मेहनत की। डॉ. रंधावा खुद सुनिश्चित करते थे कि पौधों को समय पर पानी दिया गया या नहीं।

ग्रीन चंडीगढ़ एक्शन प्लान होता है तैयार

शहर की ग्रीनरी बढ़ाने और बचाए रखने के लिए हर साल फॉरेस्ट एंड वाइल्ड लाइफ डिपार्टमेंट ग्रीन चंडीगढ़ एक्शन प्लान तैयार करता है। इसमें हर चीज के लक्ष्य निर्धारित होते हैं। पूरे साल कितने पौधे लगाए जाएंगे। बीज कितने बिखेरे जाएंगे। कितने पेड़ों की प्रूनिंग होगी। सूखे पेड़ कितने हैं। दीमक से ग्रस्त कितने पेड़ों का इलाज किया जाएगा। साथ ही फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, प्रशासन के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट और नगर निगम की होर्टिकल्चर विंग की जिम्मेदारी पहले से तय होती है। सभी को पेड़ लगाने का अलग-अलग लक्ष्य दिया जाता है। हर साल तीन लाख से अधिक नए पौधे लगाए जाते हैं।


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