जूनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में चंडीगढ़ के बॉक्सर रोहित ने जीता गोल्ड, छोटी सी उम्र में इनकी बड़ी उपलब्धियां
रोहित चमोली के पिता जयप्रकाश ने बताया कि वह मूल रूप से उत्तराखंड के टिहरी के रहने वाले हैं। रोजी रोटी की तलाश में वह चंडीगढ़ आए थे और यही बस गए हैं। उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए ही नहीं पूरे देश के लिए गर्व की बात है।
विकास शर्मा, चंडीगढ़। चंडीगढ़ के साथ सटे मोहाली के नयागांव में रहने वाले रोहित चमोली ने जूनियर एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता है। जीएमएसएसएस - 16 में 11वीं कक्षा में पढ़ने वाले रोहित के पिता जय प्रकाश मोहाली में एक निजी कंपनी में बतौर कुक हैं। रोहित इससे पहले भी कई प्रतियोगिताओं में खुद को साबित कर चुके हैं।
उनकी जीत से उत्साहित उनके कोच जोगिंदर कुमार ने बताया कि रोहित उनके पास तब बॉक्सिंग सीखने आए थे, जब वह पांचवी कक्षा में पढ़ते थे। अपनी दो तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद रोहित ने मेडल जीतने शुरू कर दिए। उन्होंने पिछले साल इंटर स्कूल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में ब्रांज मेडल, चंडीगढ़ स्टेट में गोल्ड मेडल और उसके बाद सोनीपत आयोजित जूनियर नेशनल प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता था।उन्होंने बताया कि रोहित काफी शानदार बॉक्सर हैं और उन्हें पूरा भरोसा है कि एक दिन जरूर ओलिंपिक में देश के लिए मेडल जीतेंगे।
रोहित चमोली के पिता जयप्रकाश ने बताया कि वह मूल रूप से उत्तराखंड के टिहरी के रहने वाले हैं। रोजी रोटी की तलाश में वह चंडीगढ़ आए थे और यही बस गए हैं। उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए ही नहीं पूरे देश के लिए गर्व की बात है कि रोहित ने जूनियर एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर तिरंगे की शान को बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि परिवार में खुशी का माहौल है लेकिन वह अभी ड्यूटी पर हैं इसलिए इस खुशी का हिस्सा नहीं बन पाए। यकीनन वह इस जीत की खुशी परिवार व रोहित के कोच जोगिंदर कुमार के साथ मिलकर मनाएंगे।
गौरतलब है कि जोगिंदर कुमार नयागांव के बच्चों को शौकिया तौर पर कोचिंग देते हैं। जोगिंदर कुमार बताते है कि उन्हें स्पोर्ट्स कोटे से पंजाब पुलिस की नौकरी मिली, इसके बाद उन्होंने बॉक्सिंग करना भी छोड़ दिया, लेकिन फिर भी बॉक्सिंग के प्रति उनका हमेशा लगाव रहा। उन्होंने खुद ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी में तीन गोल्ड मेडल जीते हैं, देश के लिए मेडल नहीं जीत पाने का आज भी उन्हें मलाल है। इसी मलाल के चलते वर्ष 2009 में उन्होंने अपनी बेटी को पार्क में बॉक्सिंग सीखना शुरू किया था। धीरे -धीरे बेटी की फ्रेंड्स व आसपास के बच्चे भी उनके पास बॉक्सिंग सीखने के लिए आने लगे। उन्होंने किसी को मना नहीं किया और सबको कोचिंग देने लगे। इन्हीं बच्चों में रोहित भी उनके पास बॉक्सिंग सीखने आए थे।